बिक चुके हैं …
मन बिक चुके हैं, तन बिक चुके हैं,
सदन बिक चुके हैं, चमन बिक चुके हैं।
बुजूर्गों की शान और ईमान खोकर,
पैसे के ख़ातिर अपन बिक रहे हैं।
जरा जाके उनकी माँ, बहनों से पूछो,
गोदी के जिनके ललन बिक रहे हैं।
अनोखा तमाशा यहाँ का है भाई,
सरे आम दुल्हा-दुल्हन बिक रहे हैं।
जमाने के मालिक जरा आँख खोलो,
लंगोटी से ज़्यादा कफ़न बिक रहे हैं।