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Reading: Nepal Protest – कहीं अमेरिका दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन का खेल तो नहीं खेल रहा, जानिए Gen Z आंदोलन की पूरी दास्ताँ
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Nepal Protest
Telescope Times > Blog > Cover Story > Nepal Protest – कहीं अमेरिका दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन का खेल तो नहीं खेल रहा, जानिए Gen Z आंदोलन की पूरी दास्ताँ
Cover Story

Nepal Protest – कहीं अमेरिका दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन का खेल तो नहीं खेल रहा, जानिए Gen Z आंदोलन की पूरी दास्ताँ

The Telescope Times
Last updated: September 11, 2025 3:14 pm
The Telescope Times Published September 11, 2025
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Nepal Protest – विदेशी दूतावासों खासकर अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से मिली फंडिंग

Nepal Protest – बालेंद्र शाह और सुदन गुरुंग: “पीएम जोड़ी”

डॉ. संजय पांडेय

Contents
Nepal Protest – विदेशी दूतावासों खासकर अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से मिली फंडिंगNepal Protest – बालेंद्र शाह और सुदन गुरुंग: “पीएम जोड़ी”Nepal Protest – युवा आंदोलन पूरी तरह सिस्टम से मोहभंग का नतीजाNepal Protest – रूस का दृष्टिकोण: रंग क्रांति की परछाईNepal Protest – चीन का दृष्टिकोण: अमेरिका का रणनीतिक हस्तक्षेपNepal Protest – भारतीय विश्लेषकों का दृष्टिकोण: अमेरिका का संतुलन साधने का प्रयासNepal Protest – अमेरिका को हस्तक्षेप से बचना चाहिएNepal Protest – अमेरिका के लिए स्ट्रैटेजिक ब्रिज बन सकता है नेपालNepal Protest – बालेंद्र शाह को अमेरिकी कंपनियों के समर्थन का दावाNepal Protest – सोशल मीडिया की ताकत ने उखाड़ फेंकी सत्ता,#नेपोकिड्स और #नेपोबेबीज ने आग लगाईनेपोकिड्स और #नेपोबेबीज: आंदोलन की चिंगारीNepal Protest – नेताओं की संतानों के ऐशोआराम से जनता की नाराजगी बढ़ीNepal Protest – बालेंद्र शाह और सुदन गुरुंग: “पीएम जोड़ी”Nepal Protest – डिजिटल रणनीति: आंदोलन की नई भाषाNepal Protest – नेपाल की गूंज दुनिया तकNepal Protest – नेपाल अकेला नहींNepal Protest का संभावित वैश्विक असर

नेपाल में जेन-जी आंदोलन ने देश की राजनीति को अचानक अस्थिर कर दिया है। राजधानी से लेकर शहर-कस्बों तक युवा सड़कों पर हैं और उनके निशाने पर नेता हैं चाहे भी किसी भी दल के हों। काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह और सुदन गुरुंग का नाम आंदोलन के नए नायक के रूप में उभरा है। कई छात्र संगठन बालेंद्र को नेपाल का अगला प्रधानमंत्री बनाने की मांग कर रहे हैं।

सवाल यह उठ रहा है कि क्या इस उग्र आंदोलन के पीछे केवल घरेलू असंतोष है, या फिर अमेरिका जैसी बड़ी ताकतें भी इसे हवा देने की कोशिश कर रही हैं। कहीं नेपाल के बहाने दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन का खेल तो नहीं खेला जा रहा है।

सूदन गुरंग जिस सामाजिक संगठन हामी (हामरो अधिकार मंच इनीशिएटिव) से जुड़े रहे हैं, उस पर विपक्ष और मीडिया ने आरोप लगाया है कि इसे विदेशी दूतावासों खासकर अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से फंडिंग मिली है। खास तौर पर कहा जा रहा है कि यूएसएआईडी,एनईडी और कुछ यूरोपीय एनजीओ ने ‘हामी’ को परोक्ष सहायता दी है।

Nepal Protest – आलोचकों का दावा है कि इस तरह की संस्थाएं लोकतांत्रिक सुधार और सिविल सोसाइटी को मजबूत करने के नाम पर पश्चिमी प्रभाव फैलाने का काम करती हैं। हालांकि सार्वजनिक ऑडिट में अमेरिकी सरकारी एजेंसियों से सीधे फंडिंग का कोई ठोस प्रमाण अब तक सामने नहीं आया है।

काठमांडू स्थित अमेरिकी दूतावास ने सफाई देते हुए कहा है कि नेपाल में दी जाने वाली कोई भी सहायता पूरी तरह पारदर्शी और कानूनी है और यह केवल शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और प्रशासनिक क्षमता निर्माण जैसे क्षेत्रों तक सीमित है। बावजूद इसके विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल की संवेदनशील राजनीति में ऐसे आरोप आसानी से राजनीतिक हथियार बन जाते हैं।

खासकर तब जब आंदोलन में सुदन गुरुंग जैसे युवा आयोजक का नाम प्रमुखता से उभर रहा है। उनकी लोकप्रियता और आंदोलन में बढ़ती भूमिका को देखते हुए यह सवाल लगातार गूंज रहा है कि कहीं जेन-जी का विस्फोटक गुस्सा केवल घरेलू असंतोष का मामला न होकर, अंतरराष्ट्रीय राजनीति की बड़ी तस्वीर का हिस्सा तो नहीं।

Nepal Protest – युवा आंदोलन पूरी तरह सिस्टम से मोहभंग का नतीजा

पश्चिमी थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट और वाशिंगटन पोस्ट का मानना है कि नेपाल में युवा आंदोलन पूरी तरह सिस्टम से मोहभंग का नतीजा है। अमेरिका का इसमें प्रत्यक्ष हाथ होने की संभावना बहुत कम है, लेकिन अमेरिका ऐसे आंदोलनों को लोकतांत्रिक ऊर्जा कहकर समर्थन जरूर देता है। रैंड कॉरपोरेशन का आकलन है कि यदि नेपाल में नई पीढ़ी भ्रष्टाचार और वंशवादी राजनीति से दूरी बनाकर नई ताकत के रूप में उभरती है, तो यह दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए सकारात्मक हो सकता है। हालांकि रैंड यह भी चेतावनी देता है कि बाहरी शक्तियां चाहे अमेरिका, चीन या कोई और यदि इस प्रक्रिया में प्रत्यक्ष दखल देंगी तो नेपाल लंबे समय तक अस्थिर रह सकता है।

Nepal Protest – रूस का दृष्टिकोण: रंग क्रांति की परछाई

Nepal Protest – रूसी मीडिया संस्थान आरटी और स्पुतनिक ने नेपाल के छात्र-युवा आंदोलन की तुलना यूक्रेन (2004, 2014) और जॉर्जिया (2003) जैसे रंग क्रांति अभियानों से की है। इन आंदोलनों में जनता की असंतोषपूर्ण भावनाओं का इस्तेमाल कर पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका ने राजनीतिक सत्ता परिवर्तन की जमीन तैयार की थी। रूस का आरोप है कि नेपाल की मौजूदा अस्थिरता का पैटर्न भी वैसा ही है,जहां भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे असली मुद्दों के बीच विदेशी ताकतें अपने हित साधना चाहती हैं। रूस यह भी कह रहा है कि अमेरिका नेपाल में युवा शक्ति को एक सॉफ्ट टूल की तरह इस्तेमाल कर सकता है, ताकि भारत और चीन दोनों पर दबाव बनाया जा सके।

Nepal Protest – चीन का दृष्टिकोण: अमेरिका का रणनीतिक हस्तक्षेप

चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इसे भूराजनीतिक खेल करार दिया है। उनका तर्क है कि नेपाल की आंतरिक अशांति का फायदा अमेरिका उठाना चाहता है, ताकि भारत-चीन के बीच चल रही कूटनीतिक और आर्थिक साझेदारी को कमजोर किया जा सके। साथ ही रूस के साथ बढ़ते भारत-चीन ऊर्जा सहयोग को भी अमेरिका असहजता से देख रहा है। चीन का सीधा आरोप है कि नेपाल जैसे छोटे, संवेदनशील और भू-राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण देश में अशांति फैलाकर अमेरिका चीन की दक्षिण एशिया नीति को चुनौती देना चाहता है। बीजिंग की राय है कि नेपाल में अमेरिकी प्रभाव का बढ़ना भारत और चीन दोनों के लिए रणनीतिक चिंता का विषय होना चाहिए, क्योंकि इससे दक्षिण एशिया में अस्थिरता लंबे समय तक बनी रह सकती है।

Nepal Protest – भारतीय विश्लेषकों का दृष्टिकोण: अमेरिका का संतुलन साधने का प्रयास

भारत के दो प्रमुख थिंक टैंक, ऑब्जर्वर रिसर्च फाऊंडेशन (ओआरएफ) और इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस आईडीएसए (आईडीएस) ने नेपाल की स्थिति पर अमेरिका की भूमिका को प्रत्यक्ष हस्तक्षेप की बजाय रणनीतिक उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश बताया है। स्वतंत्र नीति-विश्लेषण संस्थान ओआरएफ मानता है कि नेपाल में अमेरिकी दूतावास और सहयोगी एनजीओ लगातार लोकतांत्रिक सुधार और गुड गवर्नेंस के नाम पर सक्रिय रहते हैं।

ओआरएफ के वरिष्ठ शोधकर्ताओं के अनुसार अमेरिका अब नेपाल को केवल दक्षिण एशिया की भू-राजनीति से नहीं बल्कि इंडो-पैसिफिक रणनीति के हिस्से के रूप में देख रहा है। उनका मानना है कि नेपाल की अस्थिरता से भारत को सुरक्षा और सीमा-प्रबंधन दोनों स्तरों पर नई चुनौतियां मिल सकती हैं। जबकि आईडीएसए के विश्लेषण में कहा गया है कि अमेरिका नेपाल में सॉफ्ट पावर और लोकतांत्रिक नैरेटिव के जरिए काउंटर- बैलेंस तैयार करना चाहता है।

Nepal Protest – हालांकि अमेरिका भारत को अपने साथ बनाए रखना चाहता है, लेकिन साथ ही वह नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में असर डालकर यह संदेश देना चाहता है कि दक्षिण एशिया की राजनीति में केवल भारत की प्रधानता नहीं है।

आईडीएसए का मानना है कि यदि नेपाल की युवा राजनीति को अमेरिका का परोक्ष समर्थन मिला तो इससे भारत-नेपाल संबंधों में अनिश्चितता बढ़ सकती है।

Nepal Protest – अमेरिका को हस्तक्षेप से बचना चाहिए

अमेरिका का एक और प्रभावशाली थिंक टैंक काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस मानता है कि नेपाल में युवाओं का आंदोलन व्यापक ग्लोबल जनरेशन-शिफ्ट का हिस्सा है। सीएफआर के विश्लेषकों के अनुसार, आज की जेन-जी राजनीति पारंपरिक नेतृत्व के प्रति असहिष्णु होती जा रही है और सोशल मीडिया के जरिए बेहद तेजी से संगठित होती है। सीएफआर यह मानता है कि अमेरिका को नेपाल की इस प्रक्रिया में सीधे हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए, क्योंकि चीन और रूस पहले ही वाशिंगटन पर आरोप लगा रहे हैं। संस्थान का सुझाव है कि अमेरिका को केवल लोकतांत्रिक संस्थाओं और शिक्षा-आधारित सहयोग तक सीमित रहना चाहिए, ताकि उसे रंग क्रांति भड़काने वाला न माना जाए।

Nepal Protest – अमेरिका के लिए स्ट्रैटेजिक ब्रिज बन सकता है नेपाल

दक्षिण एशिया की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ कूटनीतिज्ञों का मानना है कि नेपाल का जेन-जी आंदोलन न केवल आंतरिक राजनीतिक संकट है बल्कि यह दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन और अमेरिका-चीन की रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का दर्पण भी बन गया है। विशेषज्ञों के अनुसार सामरिक और मीडिया संस्थानों की राय को मिलाकर एक स्पष्ट तस्वीर उभरती है कि नेपाल का युवा आंदोलन भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और वंशवादी राजनीति से उपजे गुस्से की उपज तो है ही, लेकिन नेपाल की भौगोलिक स्थिति भारत और चीन के बीच उसे वैश्विक शक्ति संघर्ष का मैदान भी बनाती है।

Nepal Protest

विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका नेपाल में अपनी रणनीतिक मौजूदगी बढ़ाकर भारत के वर्चस्व को संतुलित करना चाहता है। दक्षिण एशिया की राजनीति में इस समय जब अमेरिकी टैरिफ की वजह से भारत-चीन संबंध सुधार की ओर हैं और रूस इन दोनों से ऊर्जा सहयोग लगातार मजबूत कर रहा है, नेपाल अमेरिका के लिए एक स्ट्रैटेजिक ब्रिज बन सकता है।

नेपाल की आंतरिक अस्थिरता, अमेरिका की लोकतांत्रिक नैरेटिव की नीति, और हामी से जुड़े सुदन गुरुंग की लोकप्रियता ने मिलकर एक ऐसा परिदृश्य बना दिया है जिसमें घरेलू राजनीति और वैश्विक रणनीति गहरे तौर पर उलझ गई है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि क्या यह आंदोलन केवल भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ जनविद्रोह रह जाता है, या फिर अमेरिका-चीन के भू-राजनीतिक टग ऑफ वार यानी रस्साकशी
का हिस्सा बन जाता है।

Nepal Protest – बालेंद्र शाह को अमेरिकी कंपनियों के समर्थन का दावा

काठमांडू के मेयर बालेंद्र शर्मा (बालेन शाह) को लेकर यह आरोप कई बार उभरा है कि उन्हें अमेरिकी कंपनियों और प्लेटफार्म्स से सोशल मीडिया पर अप्रत्यक्ष समर्थन मिला है। दरअसल, शाह की लोकप्रियता का बड़ा आधार टिकटॉक, फेसबुक और यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म्स रहे हैं, जहां उनके भाषण, रैप-स्टाइल वीडियो और प्रशासनिक फैसलों को लेकर बनाए गए कंटेंट वायरल हुए। नेपाली मीडिया में इस पर चर्चा हुई है कि अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनियों के एल्गोरिद्म ने शाह की पोस्ट और उनसे जुड़े कैंपेन को अधिक दृश्यता दी, जिससे वे युवाओं में और तेजी से लोकप्रिय हुए।

Nepal Protest – नेपाल के सभी राजनीतिक दलों ने इसे अमेरिकी सॉफ्ट पावर का उदाहरण बताते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियां नेपाल के राजनीतिक नैरेटिव को प्रभावित कर रही हैं।

हालांकि ठोस सबूत इस दावे का समर्थन नहीं करते। विशेषज्ञों का मानना है कि शाह की लोकप्रियता का असली कारण उनकी एंटी-एस्टैब्लिशमेंट इमेज, भ्रष्टाचार विरोधी भाषण और युवाओं को जोड़ने वाली शैली है, जिसे सोशल मीडिया ने केवल गति दी। अमेरिकी कंपनियां अपने एल्गोरिद्म के जरिए वही कंटेंट आगे बढ़ाती हैं जिसे लोग ज्यादा देख रहे हों या साझा कर रहे हों। इस लिहाज से यह कहना कठिन है कि समर्थन जानबूझकर दिया गया या यह सिर्फ शाह के संदेश की वायरल क्षमता का नतीजा है। फिर भी, नेपाल की संवेदनशील राजनीतिक स्थिति में यह धारणा मजबूत हो रही है कि वैश्विक डिजिटल प्लेटफार्म अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक समीकरण बदलने की ताकत रखते हैं जैसा कि नेपाल में हो चुका है।

Nepal Protest – सोशल मीडिया की ताकत ने उखाड़ फेंकी सत्ता,#नेपोकिड्स और #नेपोबेबीज ने आग लगाई

Nepal Protest – नेपाल में जेन-जी आंदोलन ने जिस नेपाल की सत्ता उखाड़ फेंकी उसका केंद्र है सोशल मीडिया की ताकत। एक तरफ #नेपोकिड्स और #नेपोबेबीज जैसे हैशटैग ने नेताओं की बेटा-बेटियों की आलीशान जिंदगी को बेनकाब कर दिया, दूसरी तरफ सुदन गुरुंग की डिजिटल रणनीति ने आंदोलन को सड़कों से स्क्रीन तक फैला दिया। इन दोनों ध्रुवों ने मिलकर इस विद्रोह को ऐसा आयाम दिया, जिसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया नई राजनीति की भाषा बता रहा है।

नेपाल में डिजिटल आंदोलन की बुनियाद रखते हुए सुदन गुरुंग इसका सबसे बड़ा चेहरा बने हैं। उन्हें अब डिजिटल नायक कहा जाने लगा है।गुरुंग की रणनीति साफ है-ऑफलाइन जितने लोग सड़क पर, ऑनलाइन उससे दोगुना स्क्रीन पर। वे फेसबुक लाइव, इंस्टाग्राम रील्स, टिकटॉक और एक्स (ट्विटर) पर लगातार कंटेंट अपलोड करते हैं।हर रैली, धरना और पुलिस कार्रवाई तुरंत लाइव होती है ताकि युवाओं को लगे कि वे घटनास्थल पर मौजूद हैं।

Nepal Protest – गुरुंग की टीम ने आंदोलन को केंद्रीकृत कमान से मुक्त रखा। उन्होंने दर्जनों छोटे-छोटे डिजिटल वॉलंटियर ग्रुप बनाए जो अलग-अलग शहरों और कॉलेजों से कंटेंट साझा करते हैं। यह मॉडल “लीडरलेस मूवमेंट” जैसा दिखता है। सरकार पर आरोप लगाना कठिन हो जाता है कि कोई खास नेता हिंसा भड़का रहा है।गुरुंग का सबसे ताक़तवर हथियार है हैशटैग यूनिटी।#नेपालयूथराइज और #करप्शनफ्रीनेपाल, महीनों तक नेपाल के टॉप ट्रेंड में रहे।

जून 2025 में #बालेनफारपीएम ने केवल 24 घंटे में 2.5 लाख ट्वीट्स हासिल किए। विदेशी नेपाली युवाओं को जोड़ने के लिए उन्होंने अंग्रेजी और नेपाली दोनों भाषाओं में हैशटैग चलाए। मई 2025 का #नेपालीजेनजी यूनाइट अभियान ब्रिटेन और अमेरिका में बसे प्रवासियों के बीच वायरल हुआ। जेन-जी की भाषा गुरुंग समझते हैं कि जेन-जी लंबे भाषण नहीं देखती, बल्कि छोटे-छोटे क्लिप चाहती है। इसके लिए उन्होंने हजारों 60 से 90 सेकंड के क्लिप बनाए, जो सीधे युवाओं के दिल में उतर जाते थे। एक टिकटॉक वीडियो जिसमें एक वरिष्ठ नेता का संसद भाषण रैप बीट पर एडिट किया गया।72 घंटे में 10 लाख व्यूज़ पार कर गया। पुलिस कार्रवाई को “गेमिंग लेवल” की शैली में दिखाने वाला वीडियो युवाओं को बेहद आकर्षित कर गया। मीम्स और व्यंग्यात्मक पोस्ट युवाओं को राजनीति से जोड़ने का आसान रास्ता बने।

नेपोकिड्स और #नेपोबेबीज: आंदोलन की चिंगारी

Nepal Protest को असली आग दी #नेपोकिड्स और #नेपोबेबीज ट्रेंड ने।ये शब्द नेताओं की संतानों खासतौर पर जो विदेशों में महंगी यूनिवर्सिटियों में पढ़ते हैं और आलीशान जिंदगी जीते हैं,के लिए इस्तेमाल हुए।सोशल मीडिया पर नेताओं के बच्चों की लग्जरी गाड़ियों, यूरोपीय पढ़ाई और छुट्टियों की तस्वीरें वायरल हुईं।

Nepal Protest – युवाओं ने सवाल उठाया

नेपोकिड्स के लिए यूरोप की यूनिवर्सिटी, हमारे लिए गल्फ की मजदूरी-क्या यही न्याय है? नेताओं की संतानें बीएमडब्ल्यू चलाती हैं और हम बस का किराया न चुका पाएं-अब यह और नहीं चलेगा।नेपोकिड्स न्यूयॉर्क का आनंद लेते हैं, जबकि नेपाली युवा कतर की गर्मी में पसीना बहाते हैं। अब बहुत हो चुका। हमारे दिए हुए टैक्स पर अब ऐश बर्दाश्त नहीं।

बीबीसी नेपाली सेवा और काठमांडू पोस्ट के मुताबिक ट्विटर पर #नेपोकिड्स नेपाल का टॉप ट्रेंड बन गया और छात्र संगठनों ने इसे आंदोलन का प्रतीक बना लिया।

Nepal Protest – नेताओं की संतानों के ऐशोआराम से जनता की नाराजगी बढ़ी

सोशल मीडिया रिपोर्टों में खुलासा हुआ कि पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के बेटे अमेरिका में पढ़ाई कर रहे हैं।के.पी. शर्मा ओली के परिजन यूरोप की यूनिवर्सिटियों में हैं।पुष्प कमल प्रचंड की बेटी गंगा दाहाल ने भी विदेश में शिक्षा ली है।ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका में कई नेताओं के बच्चों की मौजूदगी युवाओं को जमकर खटकने लगी। काठमांडू पोस्ट के अनुसार हर साल नेपाल से 80,000 छात्र विदेश पढ़ाई के लिए जाते हैं। लेकिन आम युवाओं और जनता को यह खर्च अपनी जेब से चुकाना पड़ता है, जबकि नेताओं की संतानें करप्शन से अर्जित धन से आराम से पढ़ती हैं।

Nepal Protest – बालेंद्र शाह और सुदन गुरुंग: “पीएम जोड़ी”

आंदोलन की खास पहचान बन चुकी है बालेंद्र शाह और सुदन गुरुंग की जोड़ी। सोशल मीडिया पर #बालेनफारपीएम और #सुदनफारचेंज साथ-साथ ट्रेंड कर रहे हैं। छात्र संगठन कहते हैं, बालेंद्र शाह प्रशासनिक चेहरा हैं, और सुदन गुरुंग आंदोलन की आत्मा।

Nepal Protest – डिजिटल रणनीति: आंदोलन की नई भाषा

मीम्स और कार्टून: नेताओं और उनके बच्चों पर बने व्यंग्यात्मक मीम्स लाखों बार शेयर हुए।
लाइव स्ट्रीमिंग: रैलियों को टिकटॉक और यूट्यूब पर हजारों दर्शकों ने देखा।
डिजिटल वॉल ऑफ शेम: ट्विटर पर नेताओं के बच्चों के विदेशी संस्थानों की लिस्ट वायरल हुई।
टैगलाइन: “राजनीति बदलो, नेता नहीं” जैसे नारे युवाओं की बोली में ढल गए।

Nepal Protest – नेपाल की गूंज दुनिया तक

पश्चिमी मीडिया बीबीसी, गार्डियन, वॉशिंगटन पोस्ट इसे नई राजनीति की मांग कह रहे हैं। वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा, नेपाल के जेन-जी युवाओं ने सोशल मीडिया को संसद बना लिया है। नेपाल का यह आंदोलन दिखाता है कि सोशल मीडिया अब महज मनोरंजन का मंच नहीं, बल्कि सत्ता को चुनौती देने वाला असली राजनीतिक हथियार है। सुदन गुरुंग की डिजिटल कैंपेनिंग और #नेपोकिड्स की चिंगारी ने मिलकर युवाओं को एकजुट किया। अब यह विद्रोह सिर्फ भ्रष्टाचार विरोध तक सीमित नहीं है, बल्कि नेतृत्व परिवर्तन करने में सक्षम है। नेपाल की सड़कों से उठी यह आवाज स्क्रीन पर गूंजते हुए अब अंतरराष्ट्रीय राजनीति की चर्चा का हिस्सा बन गई है।

Nepal Protest – नेपाल अकेला नहीं

पाकिस्तान: इमरान ख़ान और शरीफ परिवार की संतानें विदेशों में पढ़ाई और महंगी संपत्तियों के कारण निशाने पर रहीं।
श्रीलंका: राजपक्षे परिवार की आलीशान संपत्तियां आंदोलन का बड़ा मुद्दा बनीं।
बांग्लादेश: छात्रों ने मंत्रियों और नेताओं के बच्चों की विदेश पढ़ाई पर सवाल उठाए।

Nepal Protest का संभावित वैश्विक असर

विशेषज्ञों के अनुसार नेपाल के युवाओं का यह Nepal Protest सिर्फ घरेलू राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया को यह संदेश देता है कि डिजिटल पीढ़ी सत्ता संतुलन बदलने की ताकत रखती है। जिस तरह सोशल मीडिया को संसद और सड़क दोनों का विकल्प बनाया गया है, उससे दुनिया भर में चल रहे भ्रष्ट और वंशवादी व्यवस्था के खिलाफ आंदोलनों को भी नई प्रेरणा मिलेगी। यह मॉडल दिखाता है कि बिना भारी संसाधनों और पारंपरिक संगठनों के, केवल स्मार्टफोन और हैशटैग की मदद से कोई भी पीढ़ी भ्रष्ट और वंशवादी सत्ता के ढांचे को हिला सकती है। नेपाल का यह अनुभव आगे चलकर उन देशों के लिए मिसाल बन सकता है जहां युवा लंबे समय से भ्रष्ट और वंशवादी राजनीति से जूझ रहे हैं।

Nepal Protest

डॉ. संजय पांडेय

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