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Reading: Global Warming Impact : 2024 के मार्च ने तोड़े गर्मी के पिछले रिकॉर्ड
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Telescope Times > Blog > Society & Culture > Global Warming Impact : 2024 के मार्च ने तोड़े गर्मी के पिछले रिकॉर्ड
GLOBAL-WARMING IMPACT
Society & Culture

Global Warming Impact : 2024 के मार्च ने तोड़े गर्मी के पिछले रिकॉर्ड

The Telescope Times
Last updated: April 16, 2024 4:11 pm
The Telescope Times Published April 11, 2024
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GLOBAL-WARMING IMPACT
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Global Warming Impact : हवा और समुद्र का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर

जालंधर । (Global Warming Impact ) हमारी धरती बड़ी तेजी से गर्म हो रही है, जिसके प्रभाव पूरी दुनिया में महसूस किए जा रहे हैं। यदि मार्च 2016 से तुलना करें तो 2024 में मार्च का तापमान 0.10 डिग्री सेल्सियस अधिक है। इससे पहले सबसे गर्म मार्च वर्ष 2016 में दर्ज किया गया था, लेकिन इस साल मार्च में बढ़ते तापमान ने उस रिकॉर्ड को तोड़ दिया है।

Contents
Global Warming Impact : हवा और समुद्र का तापमान रिकॉर्ड स्तर परGlobal Warming: यूरोप के लिए अब तक का सबसे गर्म मार्चHEAT WAVES DAYS ARE INCREASED

2024 में मार्च के दौरान ग्लोबल स्तर पर सतह के पास हवा का औसत तापमान 14.14 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो 1991 से 2020 के दौरान मार्च में दर्ज औसत तापमान से 0.73 डिग्री सेल्सियस अधिक है। यह जानकारी कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस)की नवीनतम रिपोर्ट में सामने आई है।

Global Warming: इससे पहले जनवरी और फरवरी 2024 ने भी बढ़ते तापमान का रिकॉर्ड बनाया था। आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2024 में जहां तापमान सामान्य से 1.66 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा। वहीं फरवरी 2024 में भी तापमान 20वीं सदी में फरवरी के औसत तापमान से 1.4 डिग्री सेल्सियस अधिक था।

जून 2023 से यह लगातार 10वां महीना है जब तापमान बढ़ा है।

Global Warming

रिपोर्ट के मुताबिक मार्च में न केवल धरती बल्कि समुद्र की सतह का भी तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया जो 21.07 डिग्री सेल्सियस था। यह फरवरी के तापमान से 21.06 डिग्री सेल्सियस से थोड़ा अधिक है। वहीं यदि पिछले 12 महीनों को देखें तो महासागर असाधारण रूप से गर्म बने हुए हैं।

Global Warming: यूरोप के लिए अब तक का सबसे गर्म मार्च

रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2024 में, यूरोप का औसत तापमान 1991 से 2020 के बीच मार्च के औसत तापमान से 2.12 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। इस तरह यह यूरोप के लिए अब तक का सबसे गर्म मार्च था। जब तापमान मार्च 2014 की तुलना में मामूली (0.02 डिग्री सेल्सियस) कम रहा।

इसी तरह पूर्वी उत्तरी अमेरिका, ग्रीनलैंड, पूर्वी रूस, मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के कुछ हिस्सों के साथ दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका के कुछ हिस्सों में तापमान औसत से अधिक था। हालांकि पूर्वी प्रशांत महासागर में अल नीनो कमजोर पड़ रहा है, लेकिन इसके बावजूद समुद्र का तापमान अब भी असामान्य रूप से गर्म बना हुआ है।

वहीं अंटार्कटिक में जमा समुद्री बर्फ के विस्तार को देखें तो फरवरी में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंचने के बाद इसमें फिर से इजाफा दर्ज किया गया है। मार्च 2024 में, अंटार्कटिक में जमा समुद्री बर्फ ने औसतन 35 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर किया। यह आंकड़ा 1991 से 2020 के बीच मार्च के दौरान वहां जमी औसत बर्फ से 20 फीसदी यानी नौ लाख वर्ग किलोमीटर कम है।

देखा जाए तो गर्मी बर्फ को भी पिघल आरही है. पिछले 46 वर्षों के इतिहास में यह मार्च के दौरान अंटार्कटिक में जमा बर्फ की छठी सबसे छोटी सीमा है। वहीं कुछ अपवादों को छोड़कर, 2017 के बाद से मार्च में अंटार्कटिक में जमा समुद्री बर्फ सामान्य से कम रही है।

इस बारे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जानकारी साझा करते हुए कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस की उप निदेशक सामंथा बर्गेस ने लिखा है कि मार्च 2024, लगातार दसवां महीना है जब हवा और समुद्र का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।

Global Warming

HEAT WAVES DAYS ARE INCREASED

साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक नए अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में लू या हीटवेव की घटनाएं धीमी हो रही हैं और वे बड़े इलाकों में भारी तापमान के साथ लोगों को लंबे समय तक झुलसा रही हैं।

साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 1979 के बाद से, दुनिया भर में लू 20 फीसदी अधिक धीमी गति से चल रही हैं, जिसका अर्थ है कि अधिक लोग लंबे समय तक लू की चपेट में आ रहे हैं, ऐसा 67 फीसदी अधिक बार हो रहा है। अध्ययन में पाया गया कि लू के दौरान भारी तापमान 40 साल पहले की तुलना में अधिक है और गर्मी का क्षेत्र भी बढ़ गया है।

अध्ययन के मुताबिक, लू पहले भी खतरनाक हो चुकी हैं, लेकिन यह अधिक व्यापक है और न केवल तापमान और क्षेत्र पर गौर करती है, बल्कि भारी गर्मी कितने समय तक रहती है और यह महाद्वीपों में कैसे फैलती है, इस पर भी गौर किया गया है।

अध्ययन में कहा गया है कि 1979 से 1983 तक, दुनिया भर में लू के थपेड़े औसतन आठ दिनों तक चलते थे, लेकिन 2016 से 2020 तक यह 12 दिनों तक बढ़ गए।

Global Warming

अध्ययन में कहा गया है कि लंबे समय तक चलने वाली लू के थपेड़ों से यूरेशिया विशेष रूप से अधिक प्रभावित हुआ। अध्ययन के अनुसार, अफ्रीका में लू सबसे अधिक धीमी हुई, जबकि उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में समग्र परिमाण में सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई, जो तापमान और क्षेत्र को मापता है।

अध्ययन में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन लू को कई मायनों में और भी खतरनाक बना देता है। ठीक उसी तरह जैसे ओवन में, जितनी अधिक देर तक गर्मी रहती है, उतनी ही अधिक चीजें पकती हैं, लू के मामले में यहां लोग हैं।

https://telescopetimes.com/category/health-and-education-news/

https://www.nrdc.org/stories/global-warming-101

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TAGGED:GLOBAL WARMING IMPACTindiaMARCH TEMPRATUREWEATHER 2024
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