दो अमेरिकी राष्ट्रपतियों के अधीन कार्य किया
राजनयिक हेनरी किसिंजर का 100 वर्ष की आयु में निधन हो गया। हेनरी ने दो राष्ट्रपतियों के अधीन सेवा की। अमेरिकी विदेश नीति पर उनकी छाप देखी जा सकती है। वो कनेक्टिकट स्थित घर में रह रहे थे। किसिंजर एसोसिएट्स इंक ने यह जानकारी दी। किसिंजर की पहचान एक विवादास्पद नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और कूटनीति जगत की हस्ती के रूप में है।
किसिंजर 100 साल की उम्र में भी बेहद सक्रिय थे।
उन्होंने व्हाइट हाउस में कई बैठकों में भाग लिया। लीडरशिप स्टाइल पर एक पुस्तक प्रकाशित की, और उत्तर कोरिया द्वारा उत्पन्न परमाणु खतरे के बारे में सीनेट कमेटी को सुझाव दिए। जुलाई 2023 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने के लिए वह अचानक बीजिंग पहुंच गए थे। उनकी उम्र कभी काम के आड़े नहीं आई।
हेनरी किसिंजर जर्मनी में जन्मे यहूदी शरणार्थी थे। उनके प्रयासों से चीन और अमेरिका के बीच कूटनीतिक रिश्तों की शुरुआत हुई। ऐतिहासिक अमेरिकी-सोवियत हथियार नियंत्रण वार्ता हुई, इजरायल और उसके अरब पड़ोसियों के बीच संबंधों का विस्तार हुआ और उत्तरी वियतनाम के साथ पेरिस शांति समझौता हुआ
विवादों में रहा किसिंजर को मिला शांति का नोबेल
1973 में हेनरी को और वियतनाम के ले डक थो को संयुक्त रूप से शांति के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था। थो ने इसे अस्वीकार कर दिया था और यह अब तक के सबसे विवादास्पद नोबेल पुरस्कारों में से एक था। नोबेल समिति के दो सदस्यों ने शांति पुरस्कार के लिए किसिंजर के चयन पर इस्तीफा दे दिया और कंबोडिया पर अमेरिकी बमबारी पर प्रश्न उठे।
1971 के युद्ध में दिया था पाकिस्तान का साथ
1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय सेना के सामने 90000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश का उदय हुआ था। तब हेनरी अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे। उन्होंने युद्ध में पाकिस्तान का साथ दिया था। उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को सलाह दी थी कि वह चीन से भारत की सीमा के नजदीक अपनी सेना तैनात करने के लिए कहें। अमेरिका को लगा कि इससे भारत पर दबाव बढ़ेगा और वह पूर्वी पाकिस्तान से अपनी सेना पीछे हटा लेगा। लेकिन, चीन ने भारतीय सीमा के नजदीक सेना तैनात करने से इनकार कर दिया।