विश्लेषकों ने कहा- पाकिस्तान के युवााओं और जनता में है पूर्व प्रधान मंत्री इमरान का आधार, डर के मारे ले रहे ऐसे फैसले
इस्लामाबाद। पाकिस्तान के पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान को 10 साल जेल की सजा सुनाई गई है। इसे सेना द्वारा अपने प्रमुख आलोचकों में से एक को किनारे करने के अभियान के रूप में देखा जा रहा है। पूर्व विदेश मंत्री और खान के करीबी शाह महमूद कुरैशी को भी इसी मामले में मंगलवार को 10 साल की सजा सुनाई गई।
यह फैसला विशेष रूप से विवादास्पद चुनावी चक्र के बीच आया है। पाकिस्तान में 8 फरवरी को चुनाव हैं। विश्लेषकों का इस बारे में कहना है कि सेना ने खान के समर्थन को खत्म करने और पूर्व प्रधान मंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) की जीत का मार्ग प्रशस्त करने की कोशिश की है। हर हथकंडा अपनाया जा रहा है कि किसी तरह इमरान को और उनकी पार्टी को चुनाव से दूर रखा जाए। पाकिस्तान की ज्यादातर जनता अनपढ़ है। बैट चुनाव चिन्ह छीन लिया है ताकि लोग इमरान के समर्थक उमीदवार की पहचान ही न कर पाएं।
हालांकि यह पहली बार नहीं है कि सेना ने चुनाव में इस तरह की कार्रवाई की है, पर्यवेक्षकों का कहना है कि उसका हस्तक्षेप राजनीति में पहले से कहीं अधिक दिखाई दे रहा है। यह सज़ा, उस मामले में सुनाई गई जिसमें खान पर राज्य के रहस्यों को लीक करने का आरोप है।
पाकिस्तान के 76 साल के इतिहास में सबसे कम विश्वसनीय चुनाव
खान और उनके समर्थकों पर सेना की व्यापक कार्रवाई के कारण विश्लेषकों ने इस चुनाव को पाकिस्तान के 76 साल के इतिहास में सबसे कम विश्वसनीय बताया है। ये जगजाहिर है कि पाक में सेना लंबे समय तक देश की राजनीति का मार्गदर्शन करने वाला अदृश्य हाथ है। इमरान खान और सेना के बीच राजनीतिक टकराव तब शुरू हो गया था जब से इमरान ने कुछ फैसले सेना को विश्वास में लिए बिना किए। इस मतभेद ने पाकिस्तान को डेढ़ साल से संकट में डाल रखा है। खान और उनके समर्थकों ने सैन्य नेताओं पर उन्हें हटाने की साजिश रचने का आरोप लगाया है। हालांकि सेना इस आरोप से इनकार करती आई है।
चूंकि खान और उनके समर्थकों ने देश के जनरलों के खिलाफ आवाज उठाई है। इससे उनकी लोकप्रियता ऊंची बनी हुई है और सेना पर जनता का गुस्सा बढ़ गया है। पिछले मई में, सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने सैन्य प्रतिष्ठानों पर ऐसे हमला किया था जो कभी पाकिस्तान में अकल्पनीय थे। सेना को इस बात पर भी गुस्सा है कि इमरान को लोग ज्यादा पसंद करने लगे थे।
30 जनवरी को इमरान को सजा का फैसला एक विशेष अदालत द्वारा सुनाया गया जो पिछले साल स्थापित की गई थी और विश्लेषकों का कहना है कि यह सेना की इच्छाओं की पूर्ति है। खान ने मुकदमे को फिक्स्ड मैच कहा है। साथ ही ये भी कहा कि इसका परिणाम पूर्व निर्धारित था, और उनकी पार्टी ने कहा कि वह फैसले के खिलाफ अपील करेगी।
खान के वकीलों में से एक, तैमूर मलिक ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, कानून और संविधान की ऐसी बेशर्म अवहेलना पहले कभी नहीं देखी गई। साथ ही ये भी बोले, यह 10 साल की सज़ा अपीलीय अदालतों के सामने 10 दिनों तक नहीं टिकेगी। यही नहीं हाल के महीनों में, पाकिस्तान के अभिजात वर्ग के सदस्यों को पूर्व क्रिकेट स्टार खान के लिए समर्थन व्यक्त करने के बाद गिरफ्तार किया गया है।
बैट चुनाव चिन्ह छीना, लोग अनपढ़ हैं कैसे करेंगे इमरान के समर्थक उमीदवार की पहचान
उनकी पार्टी को मतपत्रों पर अपने उम्मीदवारों की पहचान करने के लिए अपने प्रतिष्ठित क्रिकेट बैट प्रतीक का उपयोग करने से रोक दिया गया है। ऐसे देश में एक महत्वपूर्ण झटका जहां निरक्षरता अधिक है और कई मतदाताओं के लिए उम्मीदवारों की पहचान करने के लिए दृश्य संकेत महत्वपूर्ण हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के ज्यादातर नेताओं ने सेना के दबाव में पार्टी से इस्तीफा दे दिया है।
रातों रात बदल गया सबकुछ
खान के कट्टर प्रतिद्वंद्वी नवाज शरीफ को विदेश से लाया गया है। 2017 में पद छोड़ने से पहले नवाज सेना के पक्ष में नहीं थे। निर्वासन में रह रहे थे। यहां तक कि उन्हें पिछले साल के अंत में देश लौटने की अनुमति तक नहीं दी गई थी। लेकिन क्योंकि सेना के पास कोई और था ही नहीं तो उनके लिए सब कुछ आसान कर दिया गया। उनपर लगे सारे आरोप और दोष खत्म हो गए। वैसे भी इमरान को खत्म करना था तो प्रतिद्वंद्वी को लाया गया।
राजनीति में सेना के बढ़ते हस्तक्षेप पर असामान्य रूप से लोगों में उग्र सार्वजनिक प्रतिक्रिया हुई है। पीटीआई के जनरलों के दमन की आलोचना करने वाले वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे हैं। देश के जनरलों का नाम लेकर आलोचना करने वाली खान की बयानबाजी ने पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था के प्रति युवाओं का मोहभंग भी गहरा कर दिया है।
विश्लेषकों का कहना है कि खान और पीटीआई को देश भर में व्यापक लोकप्रिय समर्थन हासिल है। वर्तमान में पाकिस्तान में चल रही आर्थिक मंदी ने सेना और पीएमएल-एन सहित देश के अन्य मुख्य राजनीतिक दलों में निराशा बढ़ा दी है, जिसने खान के सत्ता से हटने के बाद गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था।
खान की पार्टी और समर्थक किसी राहत की उम्मीद न करें -विश्लेषक
इस्लामाबाद के एक राजनीतिक विश्लेषक जाहिद हुसैन ने कहा, निश्चित रूप से, हम जो महसूस कर रहे हैं वह लोगों के बीच बढ़ता असंतोष है, सत्ता संरचना के प्रति बढ़ता असंतोष है। पाकिस्तानी समाज किसी तरह का पॉजिटिव बदलाव चाहता है।
विश्लेषकों का कहना है कि बढ़ती निराशा के बावजूद, राजनीति को आकार देने में सेना का हाथ हाल के महीनों में और मजबूत हुआ है, क्योंकि देश के जनरलों ने फिर से नियंत्रण स्थापित करने की मांग की है। मंगलवार को आए फैसले को व्यापक रूप से उसी प्रयास के हिस्से के रूप में देखा गया।
लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज में राजनीति विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर अस्मा फैज ने कहा, यह खान की पार्टी और समर्थकों को संदेश देता है कि उन्हें किसी राहत की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। फिर भी, खान के कई समर्थकों ने फैसले पर नाराजगी व्यक्त की और कहा कि उनकी पार्टी के दमन ने चुनाव से पहले उनके समर्थन को मजबूत किया है।
पंजाब की राजधानी लाहौर में पीटीआई सदस्य शब्बीर अहमद ने कहा, देश में हर कोई जानता है कि खान के खिलाफ सभी आरोप झूठे और बदले की भावना से प्रेरित हैं। खान के समर्थक अब राजनीतिक रूप से जागरूक हैं। वे 8 फरवरी को अपने वोटों के जरिए खान के खिलाफ सभी अन्यायों का बदला लेंगे।