भारत के विदेश मंत्री दो दिन रहे नेपाल की आधिकारिक यात्रा पर
नई दिल्ली। भारत के विदेश मंत्री दो दिन नेपाल की आधिकारिक यात्रा पर थे। चार और पांच जनवरी को दौरे के दौरान भारत-नेपाल के बीच कई अहम समझौते किए गए। 10 हज़ार मेगावाट बिजली का आयात इसमें एक अहम समझौता है।
बाकी महत्वपूर्ण समझौतों में शामिल हैं -भारतीय रॉकेट से नेपाली सैटेलाइट मुनाल को लॉन्च करना, क्रॉस बॉर्डर ट्रांसमिशन लाइनें और भूकंप के बाद राहत आपूर्ति के लिए एक हज़ार करोड़ रुपये देना।
बात करते हैं समझौते की जिसमें भारत अगले दस साल के अंदर नेपाल से 10 हज़ार मेगावाट बिजली का आयात करेगा और नेपाल के अंदर जलविद्युत यानी हाइड्रो पॉवर इलेक्ट्रिसिटी के क्षेत्र में बड़ा निवेश करेगा। इसकी सफलता के लिए दोनों देशों को मिलकर बिजली को ट्रांसमिट करने के लिए पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा।
यह समझौता सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण से दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसके राजनीतिक और रणनीतिक अर्थ भी खोजे जा रहे हैं। 2015 की कथित नाकेबंदी, नक्शा विवाद जैसी कुछ घटनाएं बीते सालों में हुई हैं, जिससे भारत और नेपाल के बीच दूरियां बढ़ी हैं। ऐसे में चीन ने आगे बढ़कर नेपाल में निवेश किया, जिससे भारत असहज हुआ है।
लेकिन अब इस समझौते से भारत और नेपाल अपने बीच के रिश्तों को सामान्य बना रहे हैं। सवाल है कि इस समझौते की भारत के लिए क्या अहमियत है? क्या नेपाल में बढ़ते चीन के प्रभाव को भारत कम कर रहा है?
हाइड्रो पॉवर समझौते से लाभ
इस साल मई-जून में जब नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल भारत दौरे पर आए थे, तब भारत ने नेपाल से 10 सालों में 10 हज़ार मेगावाट बिजली खरीदने के समझौते को हरी झंडी दी थी। यह समझौता 25 साल के लिए है। उस दौरान इस समझौते पर औपचारिक हस्ताक्षर नहीं हो पाए थे, लेकिन इस काम को विदेश मंत्री की दो दिवसीय यात्रा के दौरान पूरा कर लिया गया।
सिक्किम यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति प्रोफेसर महेंद्र पी लामा का कहना है कि इस समझौते के बाद भारत नए रोल में आ गया है।
वे कहते हैं, “पिछले दस-पंद्रह साल में भारत और दक्षिण एशिया के देश बिजली पैदा करने के साथ-साथ ट्रांसमिशन लाइनें भी बिछा रहे हैं। इन सालों में भारत ने नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के बीच कई ट्रांसमिशन लाइनें बिछाई हैं, ताकि आसानी से बिजली का आदान प्रदान किया जा सके. इससे बड़े पैमाने पर इन पड़ोसी देशों में निवेश हुआ है। ”
प्रो. लामा कहते हैं, “10 हज़ार मेगावाट बिजली का समझौता तो कुछ भी नहीं है। मैं सोचता हूं कि अगले बीस साल में एक लाख मेगावाट बिजली का इन पड़ोसी देशों के बीच व्यापार होगा, जिससे ये देश एक दूसरे के करीब आएंगे और सरकार के साथ-साथ प्राइवेट प्लेयर भी मार्केट में उतरेंगे।”
नेपाल की पनबिजली ताकत को भारत इस समझौते की मदद से आगे ले जाना चाहता है।
दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर संजय भारद्वाज कहते हैं, “2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी सबसे पहले भूटान और फिर नेपाल गए थे. तब उन्होंने कहा था कि पहाड़ के पानी और जवानी को बर्बाद नहीं होने देंगे। ”
वे कहते हैं, “पहाड़ के पानी का इस्तेमाल न सिर्फ सिंचाई के लिए बल्कि पनबिजली प्रोडक्शन के लिए किया जाए और भारत के अंदर विकास के काम में नेपाल की वर्क फोर्स का इस्तेमाल किया जाए। ”
प्रो. भारद्वाज कहते हैं कि नेपाल के पास पनबिजली उत्पादन का जितना पोटेंशियल है, फिलहाल वह उसका सिर्फ दो प्रतिशत ही इस्तेमाल कर रहा है. भारत इसे आगे ले जाना चाहता है। भारत नेपाल की बिजली का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में आसानी से कर सकता है, जहां 50 प्रतिशत बिजली की अभी भी ज़रूरत है।