Report – अगली पीढ़ी की अगुवाई, चार शीर्ष समूहों की रणनीतिक तुलना
डॉ. संजय पांडेय
Telescope Report – बड़े औद्योगिक घरानों में उत्तराधिकार की प्रक्रिया से भारत का कॉर्पोरेट चेहरा बदल रहा है। रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा अनंत अंबानी को न्यू एनर्जी और पेट्रोकेमिकल कारोबार की कमान सौंपे जाने के बाद भारत के कॉरपोरेट परिदृश्य में उत्तराधिकार की रणनीति फिर से चर्चा में है।
ब्लूमबर्ग, फाइनेंशियल टाइम्स और इकोनॉमिक टाइम्स जैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया स्रोतों ने इसे भारत के बड़े औद्योगिक घरानों रिलायंस, टाटा, अडानी और महिंद्रा में नेतृत्व परिवर्तन की व्यापक प्रक्रिया का हिस्सा बताया है। यह Report इस बदलाव की गहराई को समझने, विभिन्न मॉडल की तुलना करने और यह जानने का प्रयास है कि भारत का अगला कॉरपोरेट नेतृत्व कैसा होगा, उसकी वैश्विक साख कैसी बन रही है और उत्तराधिकार अब पारिवारिक परंपरा से आगे बढ़कर रणनीतिक और राष्ट्रीय नीति का अंग कैसे बन रहा है।
Report के अनुसार रिलायंस इंडस्ट्रीज ने आकाश अंबानी और अनंत अंबानी को समूह की अलग-अलग शाखाओं में जिम्मेदारियां सौंपकर यह साफ संकेत दे दिया है कि अगली पीढ़ी अब कंपनी संचालन की मुख्यधारा में आ चुकी है। यह कदम केवल पारिवारिक उत्तराधिकार नहीं बल्कि कॉरपोरेट रणनीति, ब्रांड निर्माण और वैश्विक निवेशकों की धारणा के लिहाज से भी निर्णायक माना जा रहा है।
Report – उत्तराधिकार मॉडल को बहुत भिन्न और विशिष्ट तरीकों से अपना रहे
ब्लूमबर्ग और फाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक भारत के चार सबसे बड़े औद्योगिक घराने रिलायंस, टाटा, अडानी और महिंद्रा अपनी अगली पीढ़ी के उत्तराधिकार मॉडल को बहुत भिन्न और विशिष्ट तरीकों से अपना रहे हैं। इन सबके बीच रिलायंस की रणनीति विशेष रूप से चर्चा का केंद्र बनी हुई है।
धीरूभाई अंबानी के बाद रिलायंस को दो हिस्सों में बांटकर मुकेश और अनिल अंबानी के बीच वर्षों पहले नेतृत्व का पहला अध्याय पूरा हुआ। – Report
अब मुकेश अंबानी ने अगली पीढ़ी को सौंपने की प्रक्रिया को सार्वजनिक, क्रमबद्ध और विभाग-विशिष्ट बना दिया है। आकाश अंबानी को पहले ही जियो इन्फोकॉम का चेयरमैन बनाया जा चुका है जो भारत के 5जी विस्तार और डिजिटल संरचना के अगुआ बने हैं। अनंत अंबानी को हाल ही में रिलायंस न्यू एनर्जी लिमिटेड और पेट्रोकेमिकल बिजनेस की कमान सौंपी गई है। वे भारत के हाइड्रोजन मिशन, सोलर गीगा फैक्ट्रीज और ग्रीन एनर्जी योजनाओं से जुड़े हुए हैं।
वहीं ईशा अंबानी रिटेल और उपभोक्ता कारोबार की प्रमुख हैं, जहां जियोमार्ट और एजियो जैसे उपक्रम शामिल हैं। कॉरपोरेट दृष्टिकोण से देखा जाए तो रिलायंस ने उत्तराधिकार को संस्थान के भीतर ‘वर्टिकल विशेषज्ञता’ के रूप में बांट दिया है जिसमें हर उत्तराधिकारी को एक अलग साम्राज्य संभालना है।
यह संरचना पारंपरिक भारतीय कंपनियों की तुलना में काफी प्रगतिशील और रणनीतिक मानी जा रही है।
रिलायंस की अगली पीढ़ी को भारत सरकार की प्रमुख नीतियों से जुड़ने का मौका भी मिला है। आकाश अंबानी डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और 5G आत्मनिर्भरता जैसे अभियानों के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हैं, वहीं अनंत अंबानी ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, रिन्यूएबल एनर्जी क्लस्टर और गुजरात स्थित गीगा पार्क जैसी योजनाओं के केंद्र में हैं।
Report के अनुसार रिलायंस परिवार का यह राजनीतिक रणनीति संबंध भारत में नीति निर्माण और कारोबारी रणनीति के बीच सहजीवी मॉडल (सिंबायोटिक मॉडल) का उदाहरण बन चुका है। इसका तात्पर्य है कि दो अलग-अलग इकाइयों के बीच ऐसा सहयोगात्मक रिश्ता जिसमें दोनों को लाभ होता है।
अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों के अनुसार उभरते देशों में कारोबारी घरानों की सफलता केवल उनके पूंजीवादी ढांचे पर नहीं बल्कि उनकी राजनीतिक तंत्र के साथ सिंबायोटिक साझेदारी पर भी निर्भर करती है। इस संबंध में सीएनएन विश्लेषक फरीद जकारिया कहते हैं कि आधुनिक लोकतंत्रों में कॉरपोरेट वंश अब राजनीतिक वंशों की तरह दिखने लगे हैं। वे एक-दूसरे के विरोधी नहीं बल्कि सहयोगी हैं और अक्सर एक-दूसरे की वैधता को मजबूती देते हैं।
फाइनेंशियल टाइम्स में निवेशक और लेखक रुचिर शर्मा के अनुसार उभरते बाजारों में अरबपति अक्सर इसलिए नहीं उभरते कि उन्होंने क्या बनाया, बल्कि इसलिए कि उन्होंने राजनीतिक सत्ता के साथ कितनी अच्छी तरह मेलजोल बनाया। उनकी सफलता पूंजीवाद नहीं, एक सहजीवी गठजोड़ की देन होती है।
सांस्कृतिक छवि गढ़ने की रणनीति
रिलायंस परिवार विशेष रूप से अनंत अंबानी की सार्वजनिक छवि को धार्मिक, पारंपरिक और जनसामान्य से जुड़ी बनाने की दिशा में काम कर रहा है। उनके विवाह समारोह में तुलसी विवाह, नृत्य अनुष्ठान और शास्त्रीय संगीत जैसे प्रतीकों को प्रचारित किया गया। दूसरी ओर आकाश अंबानी का प्रोफाइल ग्लोबल कॉर्पोरेट स्ट्रैटेजिस्ट जैसा है।ब्राउन यूनिवर्सिटी, सिलिकॉन वैली नेटवर्क और वैश्विक निवेश साझेदारों से जुड़ा हुआ। यह दोहरा चेहरा रिलायंस को भारतीय संस्कृति और वैश्विक पूंजी के बीच सांस्कृतिक ब्रिज के रूप में पेश करता है।

अन्य भारतीय कॉरपोरेट घरानों की तुलना
रिलायंस की रणनीति को समझने के लिए जरूरी है कि उसकी भारत के तीन अन्य बड़े कॉरपोरेट घरानों टाटा, अडानी और महिंद्रा से तुलना की जाए।
टाटा समूह में उत्तराधिकार पूरी तरह से संस्थागत बोर्ड द्वारा तय किया गया है, जिसमें पारिवारिक पक्ष की कोई भूमिका नहीं रही। रतन टाटा के बाद सायरस मिस्त्री और फिर एन चंद्रशेखरन जैसे पेशेवरों को चेयरमैन बनाया गया। यह मॉडल पारदर्शिता और योग्यता आधारित चयन का उदाहरण है।अडानी समूह में गौतम अडानी द्वारा अपने पुत्र करण अडानी को नेतृत्व सौंपने की प्रक्रिया अपेक्षाकृत चुपचाप और केंद्रीकृत तरीके से चल रही है।
यहां पारिवारिक नियंत्रण प्रमुख है लेकिन संस्थागत या सार्वजनिक प्रकटीकरण का अभाव दिखाई देता है। महिंद्रा समूह ने मिश्रित मॉडल अपनाया है, जिसमें आनंद महिंद्रा चेयरमैन बने रहे जबकि सीईओ पद पेशेवरों को सौंप दिया गया, जैसे अनिश शाह। यह मॉडल पारिवारिक विरासत को बनाए रखते हुए पेशेवर संचालन की स्थिरता देता है।
वैश्विक निवेशकों की नजर में उत्तराधिकार मॉडल
ब्लूमबर्ग के अनुसार वैश्विक निवेशकों की दृष्टि से सबसे अधिक पारदर्शिता टाटा समूह में दिखाई देती है, जिसे ईएसजी (एनवायरमेंटल, सोशल, गवर्नेंस) मानकों में भी सबसे भरोसेमंद माना जाता है। महिंद्रा समूह भी स्थिर और लचीले मॉडल के लिए सराहा जाता है, जिसमें सामाजिक जिम्मेदारी और पेशेवर प्रबंधन दोनों मौजूद हैं। रिलायंस ने हाल के वर्षों में उत्तराधिकार की प्रक्रिया को सार्वजनिक और स्पष्ट बनाकर अपनी पारदर्शिता को मजबूत किया है। वहीं अडानी समूह को हिंडनबर्ग रिपोर्ट जैसी घटनाओं के बाद वैश्विक निवेशकों की ओर से जवाबदेही और खुलापन बढ़ाने की जरूरत महसूस हो रही है।
ब्रांड छवि और सॉफ्ट पावर की प्रतिस्पर्धा
ब्रांड छवि और सॉफ्ट पावर के स्तर पर टाटा समूह भारत की नैतिक शक्ति का पर्याय बन चुका है। रिलायंस की छवि नवाचार, आक्रामक विकास और वैश्विक पूंजी से जुड़ी हुई है। महिंद्रा समूह की छवि व्यवहारिक, भारतीय और आधुनिकता से संतुलित मानी जाती है, जबकि अडानी समूह की छवि सत्ता-सन्निकट और प्रोजेक्ट केंद्रित रही है। सॉफ्ट पावर के रूप में टाटा और महिंद्रा की छवि वैश्विक निवेशकों में अधिक स्थिरता और भरोसे का संकेत देती है।
उत्तराधिकार अब महज विरासत नहीं, एक रणनीतिक दिशा
विशेषज्ञों का कहना है कि कुल मिलकर उत्तराधिकार अब केवल पारिवारिक विरासत नहीं रहा बल्कि यह एक सुविचारित रणनीतिक निवेश बन चुका है। रिलायंस का उत्तराधिकार मॉडल भारत में एक नई पीढ़ी के नेतृत्व की पटकथा लिख रहा है। जहां टाटा समूह संस्थागत मूल्य आधारित उदाहरण है, वहीं महिंद्रा व्यावसायिक लचीलापन और संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है। अडानी समूह को फिलहाल गवर्नेंस और वैश्विक धारणा सुधारने की चुनौती है।
वहीं रिलायंस की विशेषता यह है कि वह उत्तराधिकार को सार्वजनिक भरोसे, राष्ट्रनीति और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के बीच संतुलित कर रहा है। यह केवल कंपनी बदलने की प्रक्रिया नहीं, आर्थिक सत्ता के नए चेहरे को गढ़ने का प्रयास है।
Report – युवा नेतृत्व की खासियत
Report के अनुसार कॉरपोरेट घरानों में जिन युवाओं ने नेतृत्व संभालना शुरू किया है, वे केवल वंश परंपरा के प्रतीक नहीं पेशेवर दक्षता, वैश्विक दृष्टिकोण और रणनीतिक समझ का समावेश भी हैं। उदाहरण के लिए आकाश अंबानी ने ब्राउन यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की है और रिलायंस जियो को सिर्फ एक टेलीकॉम कंपनी नहीं बल्कि भारत की डिजिटल संरचना के रीढ़ की हड्डी बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई है।
वहीं अनंत अंबानी, जिनका झुकाव हरित ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण की ओर है, रिलायंस न्यू एनर्जी के जरिए भारत के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन से गहराई से जुड़े हैं। येल और स्टैनफोर्ड से शिक्षित ईशा अंबानी ने अजियो और जियोमार्ट जैसे ब्रांड्स को नए मुकाम तक पहुंचाया है।
करण अडानी की बात करें तो उन्होंने यूएस से एमबीए किया है और अदानी पोर्ट्स एंड एसईजेड के सीईओ के रूप में समूह के इंफ्रास्ट्रक्चर विस्तार की कमान संभाली है। वे अपने पिता गौतम अडानी की कारोबारी शैली से प्रेरणा लेते हुए एक मूक लेकिन प्रभावी नेतृत्व शैली में विश्वास रखते हैं।
टाटा समूह के युवा चेहरों में रोहित घोडावत जैसे कार्यकारी, जो नए जमाने की सस्टेनेबिलिटी और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में समूह को आगे ले जा रहे हैं और चेयरमैन चंद्रशेखरन का नेतृत्व जो पेशेवर लेकिन दूरदर्शी नेतृत्व का प्रतीक है। वहीं महिंद्रा समूह में युवा नेतृत्व की भूमिका भले सीधे परिवार से न हो, लेकिन आनंद महिंद्रा की निगरानी में युवा सीईओ अनिश शाह जैसे लोग कंपनी की ग्रीन मोबिलिटी और टेक ड्रिवन इन्नोवेशन को दिशा दे रहे हैं।
इन युवाओं की विशेषता केवल शैक्षणिक पृष्ठभूमि नहीं है बल्कि उनकी वैश्विक समझ, ईएसजी मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता, स्टार्टअप संस्कृति के साथ सहकार और पारंपरिक मूल्यों के साथ संतुलन बनाए रखना है। वे न केवल कंपनियों के भीतर उत्तराधिकार को संस्थागत रूप दे रहे हैं देश की नीति, बाजार तथा समाज में तकनीकी और रणनीतिक भी बदलाव का नेतृत्व कर रहे हैं।
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