पर्यावरणविदों ने यहां टनल बनाने का किया था बहुत विरोध
मज़दूर बीते 15 दिन से टनल में फँसे हैं
उत्तरकाशी के सिलक्यारा में जहां टनल बन रही है, वहां धसने से 41 मज़दूर फस गए थे। इनको निकालने के लिए वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू कर दी गई है साथ ही हाथ से भी खुदाई की जा रही है। मज़दूर बीते 15 दिन से टनल में फँसे हैं। यहां 60 साल पहले भी टनल बनाने के लिए सर्वे किया गया था, लेकिन पानी का स्रोत मिलने के कारण इस प्रोजेक्ट को रोक दिया गया था। इसके बाद यमुनोत्री के लिए रास्ता बनाया गया था।
पर्यावरणविदों ने यहां टनल बनाने का बहुत विरोध किया था, क्योंकि जहां टनल बन रहा है उसके ऊपर का पहाड़ गंगा यमुना का कैचमेंट एरिया है और इस इलाके से होकर फॉल्ट लाइन भी गुजरती है। यह फॉल्ट लाइन एक्टिव है, यानी दो प्लेटें आज भी एक दूसरे के खिलाफ जोर लगा रही हैं। इससे जमीन के नीचे एनर्जी जमा हो रही है। ऐसे इलाके भूकंप के लिए अति संवेदनशील होते हैं। इस टोंस फॉल्ट को दो और छोटे फॉल्ट काट रहे हैं। यानी यहां जमीन के नीचे काफी हलचल है।
ये टनल चार धाम यात्रा का एक मार्ग है। इससे लोग सिर्फ एक घंटा जल्दी पहुंच सकेंगे। इसके लिए इतना बड़ा जोखिम उठाना कहां की अक्लमंदी है? ऐसे कई टनल बनाए जा चुके हैं और कई अभी बनाए जाने हैं।
पर्यावरणविदों ने बहुत मना किया कि चारधाम प्रोजेक्ट के नाम पर पहाड़ों की यूनिफॉर्म कटिंग नहीं होनी चाहिए, लेकिन विरोध के बावजूद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोला। कोई कानूनी अड़चन न आए इसके लिए इस पूरी योजना को कई छोटी-छोटी योजनाओं के रूप में दिखाया गया, ताकि सब कुछ पर्यावरण के अनुकूल प्रतीत हो। सुप्रीम कोर्ट ने भी आंखें मूंद रखी हैं।
हज़ारों हरे-भरे पेड़ों को भी झूठ का सहारा लेकर काट दिया गया। वर्तमान सत्ता का काम करने का यही तरीका है।
प्राकृतिक और मानवीय दोनों वजहों से दुनिया की 30% लैंडस्लाइड की घटनाएं हिमालय में होती हैं। सिलक्यारा का ये दुस्साहस भी बहुत भारी पड़ रहा है।
सिलक्यारा टनल का ठेका नवयुग इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड के पास है। इसे 2020 में अदानी ने खरीदा था। तो क्या ये सोचा जाये कि सिर्फ किसी को फायदा पहुँचाने के लिए इतना बड़ा रिस्क लिया जा रहा है।