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Reading: अमृतसर में जन्मे सैम मानेकशॉ आजकल क्यों हैं चर्चा में
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Telescope Times > Blog > Art & Cinema > अमृतसर में जन्मे सैम मानेकशॉ आजकल क्यों हैं चर्चा में
Film on Manekshaw
Art & Cinema

अमृतसर में जन्मे सैम मानेकशॉ आजकल क्यों हैं चर्चा में

The Telescope Times
Last updated: November 27, 2023 11:54 pm
The Telescope Times Published November 27, 2023
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Vickey kaushal playing lead role in the Film on Manekshaw
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1914 में पंजाब के अमृतसर में जन्मे सैम मानेकशॉ की आजकल बहुत चर्चा हो रही है।

Contents
हसी -ठिठोली का कोई मौका नहीं छोड़ते थेइंदिरा गाँधी के साथ संवाद के क़िस्से मशहूर हैंपाकिस्तानी फ़ौज के जनरल को इंग्लिश बोल ही नर्वस कर दिया

कई कारण हैं। दो खास हैं। एक तो उनपर फिल्म बनी है जो एक दिसंबर को रिलीज़ हो रही है। दूसरा 16 दिसंबर को हर साल उनकी याद में विजय दिवस मनाया जाता है। 1971 के युद्ध में सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में मिली जीत की याद में हर साल यह विजय दिवस मनाया जाता है।

वो एक तालुक पारसी परिवार से हैं। सैम मानेकशॉ के नाम से मशहूर फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का पूरा नाम सैम होर्मुजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ था। उनका परिवार, दोस्त व क़रीबी उनको सैम या सैम बहादुर के नाम से ही पुकारते थे।

सैम पहली बार 1942 में सुर्ख़ियों में आए। तब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा मोर्चे पर एक जापानी सैनिक ने मशीन गन से उनकी आंतों, लीवर और किडनी में सात गोलियां मार दीं।
 उन्हें और बाकी घायल लोगों को वहीँ छोड़ने को कहा गया ताकि बाकी लोगों का हौसला न टूटे पर उनके अर्दली सूबेदार शेर सिंह उन्हें उठा कर ले आए। जब डाक्टरों ने इलाज के लिए मना किया तो शेर सिंह ने गोली तान दी कि इलाज तो करना ही पड़ेगा।

हसी -ठिठोली का कोई मौका नहीं छोड़ते थे

उनको नज़दीक से जानने वाले कहते हैं कि वो बहादुर फौजी तो थे ही साथ ही हसी -ठिठोली का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। बेबाक भी थे। उन्होंने इंदिरा गाँधी तक को एक बार कह दिया था कि वो ऑपरेशन रूम में नहीं आ सकती।

हालाँकि इंदिरा ने बात समझी और बुरा नहीं मनाया।

सैम के कद का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके एडीसी ब्रिगेडियर बहराम पंताखी की किताब ‘सैम मानेकशा- द मैन एंड हिज टाइम्स’ में उनके जीवन के कई पहलू उजागर हैं। मेजर जनरल वीके सिंह ने उनकी जीवनी लिखी है। इन किताबों से उनके बारे बहुत जानकारी मिलती है।

बीबीसी के अनुसार, उनकी बेटी माया दारूवाला कहती हैं कि वो घर में आते ही शरारतों में लग जाते थे।

उन्हें कई सम्मान मिले। भारत सरकार की वेबसाइट पर एक लेख में इस बारे में विवरण दिया गया है…

वह फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत होने वाले पहले भारतीय सैनिक थे।
1957 में, जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) को 26वें इन्फैंट्री डिवीजन का मेजर जनरल (कार्यवाहक रैंक) नियुक्त किया गया था।
1959 में, मानेकशॉ को सबस्टैंटिव मेजर जनरल के रूप में पदोन्नत किया गया।
उन्हें 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के लिए ‘भारत की जीत का वास्तुकार’ कहा जाता है।
1972 में भारत के राष्ट्रपति से पद्म विभूषण प्राप्त हुआ।

इंदिरा गाँधी के साथ संवाद के क़िस्से मशहूर हैं

साफ दिल सैम ने तो इंदिरा गाँधी को कह दिया था कि आप इस हेयर स्टाइल में अच्छी लग रही हैं। उनके इंदिरा गाँधी के साथ संवाद के क़िस्से मशहूर हैं।

1948 में जब वीपी मेनन कश्मीर के भारत में विलय के लिए महाराजा हरि सिंह से बातचीत करने श्रीनगर गए तो सैम मानेकशॉ भी उनके साथ थे. 1962 में चीन से युद्ध हारने के बाद सैम को बिजी कौल की जगह चौथी कोर की कमान सौंपी गई।

पद संभालते ही सैम ने सीमा पर तैनात जवानों को संबोधित करते हुए कहा, ‘आज के बाद आप में से कोई भी तब तक पीछे नहीं हटेगा जब तक आपको ऐसा करने का लिखित आदेश नहीं मिल जाता। ‘ ध्यान रखें कि यह ऑर्डर आपको कभी नहीं दिया जाएगा।

पाकिस्तानी फ़ौज के जनरल को इंग्लिश बोल ही नर्वस कर दिया

पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद सैम मानेकशा सीमा के कुछ क्षेत्रों के आदान-प्रदान पर चर्चा करने के लिए पाकिस्तान गए। उस समय जनरल टिक्का खान पाकिस्तान के सेना प्रमुख थे.

भारतीय कमिश्नर का पद थाकोचक पाकिस्तान के कब्जे में था, जिसे वह छोड़ने को तैयार नहीं था।

जनरल एसके सिन्हा बताते हैं कि टिक्का खान सैम से आठ साल छोटे थे और उनकी अंग्रेजी कुछ हद तक सीमित थी क्योंकि वह सूबेदार के पद से शुरू होकर इस पद तक पहुंचे थे। जब वो पहले से लिखा पत्र पढ़ने लगे तो सैम ने टोका कि जिसने लिखा है उसे कई चीजों की जानकरी नहीं। टिक्का खान सकपका गए और थाकोचक देकर चले गए।

भारत सरकार की वेबसाइट पर एक लेख के अनुसार, वह 15 जनवरी 1973 को सेवानिवृत्त हुए। 40 साल तक नौकरी की।

फिर पत्नी के साथ तमिलनाडु के वेलिंग्टन छावनी क्षेत्र में बस गये। वह कई कंपनियों में स्वतंत्र निदेशक और कुछ में चेयरमैन भी रहे।

27 जून 2008 को वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल में निमोनिया के कारण उनकी मृत्यु हो गई। तब वो 94 साल के थे।

फिल्म ‘सैम बहादुर’ में जो एक्टर उनकी भूमिका निभा रहे हैं वो भी पंजाब से हैं। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं विक्की कौशल की जो होशियारपुर से हैं। ट्रेलर में उनके काम की तारीफ हो रही है। 

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