हैदराबाद। उच्च न्यायालय ने सोमवार को फैसला सुनाया कि एक बेटी को अपने पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा मांगने के अधिकार से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि उसकी वित्तीय स्थिति अच्छी है। वसीयतनामा के अनुसार, एक व्यक्ति ने तर्क दिया कि उसकी बहन की वित्तीय स्थिति अच्छी थी, और वह अपने पिता की संपत्तियों में किसी भी हिस्से की हकदार नहीं थी।
तेलंगाना की कानूनी वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, अपने माता-पिता की संपत्ति के बंटवारे के संबंध में अपनी बहन के पक्ष में जिला अदालत के फैसले के खिलाफ एक व्यक्ति ने अपील दायर की थी। उसको खारिज करते हुए, उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एमजी प्रियदर्शिनी ने उपरोक्त टिप्पणी की।
अदालत के समक्ष पेश किए गए एक कथित वसीयतनामा के अनुसार, याचिका में व्यक्ति ने तर्क दिया कि चूंकि उसकी बहन की वित्तीय स्थिति अच्छी थी, इसलिए वह अपने पिता की संपत्तियों में किसी भी हिस्से की हकदार नहीं थी।
उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के एक अन्य तर्क पर भी विचार किया, जिसमें कहा गया था कि उसकी बहन को कृषि भूमि का ‘आनंद’ लेने की अनुमति दी गई थी और इसकी बिक्री पर उसने आय प्राप्त की थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस पर अदालत ने टिप्पणी की कि इससे यह पता चलता है कि बहन को उसकी शादी के समय उसका हिस्सा दिया गया था।
अदालत ने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया गया कि महिला को जमीन की बिक्री करने की अनुमति दी गई थी।
अदालत ने कहा कि अगर महिला को उसकी शादी के समय पारिवारिक संपत्तियों में उसका हिस्सा आवंटित किया गया था, तो उसके भाई को संपत्ति की कथित बिक्री से प्राप्त आय को अपने पास रखने की अनुमति देने की आवश्यकता नहीं है।
उच्च न्यायालय ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि महिला का इरादा केवल अलिखित विभाजन के लाभ के कारण अपने भाई के स्वामित्व वाली संपत्तियों पर दावा करना था। अदालत ने कहा कि उस व्यक्ति ने किसी मौखिक या अलिखित बंटवारे का जिक्र नहीं किया।
अदालत ने इस तर्क को भी संबोधित किया कि उस व्यक्ति की मां ने 2010 में एक वसीयतनामा निष्पादित किया था जिसमें कथित तौर पर 1971 में उसकी शादी के समय उसकी बेटी को उसका हिस्सा मिलने का उल्लेख था।
रिपोर्ट के अनुसार, अदालत को यह आश्चर्यजनक लगा कि याचिका 2010 में दायर की गई थी और मां ने अपनी मृत्यु से एक साल पहले 2010 में ‘वसीयतनामा’ निष्पादित किया था। यह देखते हुए कि उस व्यक्ति और उसकी मां ने मुकदमे के जवाब में एक संयुक्त बयान दायर किया था, उक्त वसीयत विलेख का कोई उल्लेख नहीं था।
परिणामस्वरूप, अदालत ने जिला न्यायाधीश के फैसले को उचित पाया और अपील खारिज कर दी।