Baloch – BLA के हमलों से टूट रही सैन्य पकड़
डॉ संजय पांडेय
नई दिल्ली – पाकिस्तान में दशकों से चले आ रहे Baloch विद्रोह ने अब खतरनाक सैन्य चुनौती का रूप ले लिया है। बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) न केवल पाकिस्तान के सुरक्षाबलों को निशाना बना रही है, बल्कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) जैसी अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं को भी पंगु कर रही है।
विशेषज्ञों के मुताबिक यह विद्रोह पाकिस्तान की सुरक्षा नीति, आंतरिक स्थिरता और विदेश नीति तीनों के लिए गंभीर खतरा बन चुका है। पिछले दो वर्षों में बलोच विद्रोह की रफ्तार में अभूतपूर्व तेजी आई है।बीएलए और उससे संबद्ध संगठनों ने 2023 और 2024 के दौरान पाकिस्तानी सुरक्षाबलों, अर्धसैनिक इकाइयों और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) से जुड़ी परियोजनाओं पर सिलसिलेवार हमले किए हैं। पाकिस्तान इंस्टिट्यूट फॉर पीस स्टडीज (पीआईपीए) की ताज रिपोर्ट 2025 के अनुसार इन दो वर्षों में बलूचिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों में 30% से अधिक वृद्धि दर्ज हुई है।
Baloch विद्रोह हो चुका हाइब्रिड विद्रोही नेटवर्क
2025 के शुरुआती 6 महीनों में यह गतिविधियां बढ़कर 45% से अधिक हो चुकी हैं। कराची यूनिवर्सिटी हमले के बाद बीएलए ने महिला आत्मघाती दस्ते ‘मजीद ब्रिगेड’ को और सक्रिय किया, जिससे सुरक्षा एजेंसियों की चुनौतियां कई गुना बढ़ गई हैं। अब बीएलए न केवल पारंपरिक गुरिल्ला शैली में बल्कि उन्नत रणनीति, शहरी नेटवर्क और साइबर प्रचार के जरिए भी काम कर रही है। तेज हो रहीं गतिविधियों पर टिप्पणी करते हुए अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ माइकल कुगलमैन (विल्सन सेंटर) कहते हैं,Baloch विद्रोह अब पाकिस्तान के लिए सिर्फ एक सीमित सुरक्षा चुनौती नहीं रहा, बल्कि यह एक विकसित हो चुका हाइब्रिड विद्रोही नेटवर्क है, जो सैन्य और कूटनीतिक दोनों स्तरों पर गंभीर चुनौती बन गया है।
पाकिस्तान की समस्या यह है कि वह Baloch विद्रोह को सख्ती से कुचलने की कोशिश में उसे और भड़का रहा है। कुगलमैन और अन्य विशेषज्ञ मानते हैं कि बलूच लिबरेशन आर्मी अब सिर्फ पहाड़ी ठिकानों तक सीमित नहीं है। इसकी शहरी शाखाएं, साइबर विंग और महिला आत्मघाती दस्ते इसकी नई ताकत बन चुके हैं। इसकी बदलती रणनीति और बढ़ता जनसमर्थन, विशेषकर ग्रामीण और शहरी बलूच युवाओं में, इसे पाकिस्तान के लिए एक दीर्घकालिक सुरक्षा संकट में बदल रहा है।
Baloch विद्रोह से पाकिस्तान सेना को हुआ भारी नुकसान बलोच विद्रोह के चलते पाकिस्तान की सेना और अर्धसैनिक बलों को गंभीर सैन्य क्षति उठानी पड़ी है। 2024-25 में यह आवृत्ति और बहुत तेजी के साथ बढ़ी है।
Baloch विद्रोह – पाकिस्तान की सुरक्षा प्रतिष्ठानों को रणनीतिक झटका
पीआईपीएस की रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ 2020 से 2024 के बीच बलूच उग्रवादी संगठनों द्वारा किए गए 650 से अधिक हमलों में करीब 850 सुरक्षाकर्मी मारे गए जिनमें पाक आर्मी, फ्रंटियर कॉर्प्स (एफसी), और इंटेलिजेंस यूनिट्स के जवान शामिल हैं। इस दौरान दर्जनों सुरक्षा चौकियों, सैन्य काफिलों और छावनियों पर हमले किए गए, जिनमें आईईडी धमाके, आत्मघाती हमले और एम्बुश तकनीक का इस्तेमाल किया गया। इसके अतिरिक्त ग्वादर हमला जैसे ऑपरेशनों ने पाकिस्तान की सुरक्षा प्रतिष्ठानों को रणनीतिक झटका दिया है। इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) ने भी कई हमलों में ऑपरेशनल लॉसेज को स्वीकार किया है, हालांकि कई बार आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया।
थिंक टैंक साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल (एसएटीपी) के अनुसार बलूचिस्तान में 2003 से लेकर 2025 के मध्य तक सुरक्षा बलों के करीब 2,500 से अधिक जवान मारे जा चुके हैं, जिससे यह पाकिस्तान के लिए सबसे लंबे और खर्चीले सुरक्षा संघर्षों में से एक बन चुका है।
बीजिंग की निवेश सुरक्षा और कूटनीतिक दबाव की दोहरी रणनीति एसएटीपी के अनुसार चीन की नीति बलूचिस्तान में जारी अशांति को लेकर अब स्पष्ट रूप से “सुरक्षा पहले” दृष्टिकोण पर आधारित है। चीन ने इस पूरे इलाके को रेड अलर्ट जोन घोषित कर दिया है। बीजिंग ने अपने नागरिकों, इंजीनियरों और तकनीकी कर्मियों को बलूच क्षेत्र से हटाने या केवल सुरक्षा घेरे में ही भेजने के आदेश दिए हैं।
Baloch विद्रोह अब केवल पाकिस्तान का आतंरिक मामला नहीं
ग्वादर पोर्ट और चीन-पाक आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) के अन्य हिस्सों पर काम करने वाली चीनी कंपनियों जैसे चाइना ओवरसीज पोर्ट होल्डिंग कंपनी ने निर्माण गति धीमी कर दी है और सुरक्षा एजेंसियों से स्थायी सैन्य तैनाती की मांग की है।इसके साथ ही चीन ने पाकिस्तान पर दबाव बनाया है कि वह सीपीईसी को अंतरराष्ट्रीय निवेश के लिए सुरक्षित गलियारा घोषित करे और बीएलए जैसी संगठनों को आतंकी संगठन मानते हुए निर्णायक सैन्य कार्रवाई करे। बीजिंग ने इस मुद्दे को शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर भी उठाया है, जिससे यह स्पष्ट संकेत गया है कि चीन बलूच विद्रोह को अब केवल पाकिस्तान का आतंरिक मामला नहीं मानता बल्कि अपनी रणनीतिक और आर्थिक सुरक्षा से जुड़ा मसला मान रहा है।
बीएलए लड़ाकों की क्षति और पाक की दमनकारी रणनीति बीएलए और उससे संबद्ध संगठनों ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया है कि अब तक उनके सैकड़ों लड़ाके पाकिस्तान की सैन्य कार्रवाई में मारे जा चुके हैं, हालांकि सटीक संख्या वे गोपनीय रखते हैं। बीएलए के प्रवक्ता जीहंद बलोच कहा कि संगठन ने कई वीरों को बलिदान किया है लेकिन उनका खून बलूचिस्तान की आज़ादी की जमीन को सींच रहा है।
इंडिपेंडेंट बलूचिस्तान ह्यूमन राइट्स ग्रुप्स के अनुमान के अनुसार 2000 से 2024 के बीच करीब 1,200 से 1,500 लड़ाकों की मौत सुरक्षा अभियानों में हुई है, जिनमें हवाई हमले, ड्रोन स्ट्राइक, और हिरासत में कथित हत्याएं शामिल हैं। इन्होंने पाकिस्तान सरकार और विशेष रूप से आईएसआई पर व्यवस्थित दमनात्मक रणनीति अपनाने के आरोप हैं।
एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्टों में बताया गया है कि बीएलए से जुड़ने के संदेह में सैकड़ों Baloch युवाओं को जबरन गायब किया गया, जिनमें से कई की लाशें कई महीनों बाद मिलती हैं या फिर वे कभी लौटते ही नहीं।
पाकिस्तान की सुरक्षा नीति किल और डंप यानी मारो और फेंक दो के तौर-तरीकों पर आधारित बताई गई है, जिसे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाएं बलूचिस्तान में ‘एनफोर्स्ड डिसअपियरेंस’ की महामारी करार देती हैं। पाकिस्तान के लिए नासूर बनता Baloch विद्रोह ब्रिटेन के रक्षा थिंक टैंक आरयूएसआई (रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टिट्यूट) ने चेतावनी दी है कि बलूच विद्रोह अब पाकिस्तान के लिए लो-इंटेंसिटी कॉन्फ्लिक्ट नहीं रह गया, बल्कि यह एक सस्टेन्ड एसिमेट्रिक वारफेयर बन चुका है
एसएटीपी के अनुसार Baloch विद्रोह पाकिस्तान के लिए एक जिंदा ज्वालामुखी है जिसे लगातार दबाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन हर दबाव के बाद यह और ज्यादा विस्फोटक हो रहा है। बलोच विद्रोह अब सिर्फ एक सीमित क्षेत्रीय आंदोलन नहीं रह गया, बल्कि यह पाकिस्तान की भू-राजनीतिक स्थिति, विदेशी निवेश और राष्ट्रीय सुरक्षा को सीधे प्रभावित कर रहा है। जब तक बलूचिस्तान के राजनीतिक, आर्थिक और मानवाधिकार सवालों का समाधान नहीं होता यह संघर्ष पाकिस्तान के लिए अंदरूनी अस्थिरता की सबसे बड़ी वजह बना रहेगा। एशिया सिक्योरिटी विश्लेषक डॉ. शेरिल वान डाइक का कहना है कि बलोच विद्रोह पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में वैसी ही दरार पैदा कर रहा है जैसी एक समय बांग्लादेश के विद्रोह ने की थी। फर्क सिर्फ इतना है कि आज की लड़ाई अंतरराष्ट्रीय निवेश, साइबर नेटवर्क और रणनीतिक बंदरगाहों की है।

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