BEAUTY OF RELIGION : ‘कुरान और भगवन एक साथ’
BEAUTY OF RELIGION : महाराष्ट्र के कोल्हापुर और सांगली गाँवों में 40 साल से चल रही परंपरा
कोल्हापुर/सांगली। धर्म की सुंदरता और आपसी भाईचारे की मिसाल हैं महाराष्ट्र के कोल्हापुर और सांगली के गाँव। 40 सालों से हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की एक अनूठी परंपरा चल रही, गणेश उत्सव के दौरान यहां के गाँवों की मस्जिदों में गणपति की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
सांगली ज़िले के वालवा तहसील का गोटखिंडी एक ऐसा ही गांव है, जो इस परंपरा को निभाता चला आ रहा है।
यहां युवाओं के एक समूह ने मिसाल कायम करते हुए ‘न्यू गणेश मंडल’ ने झुझार चौक स्थित मस्जिद में गणपति की प्रतिमा स्थापित की है। इस साल मस्जिद में गणेश प्रतिमा की स्थापना का 44वां वर्ष है।
उत्सव के 10 दिनों के दौरान यहां के लोग हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को मजबूत करते हुए गणपति की पूजा करते हैं। इस अनूठी करामात को देखने लोग दूर दूर से आते हैं।
BEAUTY OF RELIGION : ‘गणेश मंडल’ नाम की समिति बनी
गोटखिंडी गांव के अशोक पाटिल इस घटना को याद करते हुए बताते हैं कि उनके पिता ने उन्हें साल 1961 के पहले गणेश प्रतिमा स्थापना के बारे में बताया था। उस साल के बाद 1986 तक गणेश प्रतिमा को फिर से मस्जिद में स्थापित नहीं किया गया।
गांव के युवा इससे प्रेरित हुए और सोचा मस्जिद में गणेश प्रतिमा को स्थापित करने की परंपरा को फिर से शुरू करेंगे। इस तरह ‘गणेश मंडल’ नाम की एक समिति का गठन हुआ। 1986 में वो रिवाज़ फिर से शुरू हुआ जिसकी शुरुआत 1961 में हुयी थी।
वर्तमान में गणेश थोराट, सागर शेजवाले और लखन पठान जैसे युवाओं के नेतृत्व में तीसरी पीढ़ी इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है।
लाखन पठान का परिवार गणेश उत्सव की शुरुआत से ही उसमें शामिल हो रहा है।
दोनों समुदाय के लोग गर्व से बताते हैं, “हमारा गांव एकता और सद्भाव से रहता है. हम जाति और धर्म के बँटवारे पर भरोसा नहीं करते.”
गोटखिंडी गांव में हिंदू और मुस्लिम त्योहार एक साथ मनाए जाते हैं। दो बार ऐसा हुआ कि मुहर्रम और गणेश चतुर्थी एक ही दिन पड़े, उस समय गांव वालों ने पीर और गणपति की शोभा यात्रा एक साथ निकाली।
अशोक पाटिल इस एकता ही भावना को दोहराते हैं, वो उन दिनों को याद करते हैं जब बक़रीद और गणेश चतुर्थी का त्योहार एक साथ मनाया गया था और हिंदुओं के सम्मान में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पशु की बलि देने से मना कर दिया था।
“यह किसी पर कोई थोपी गई बात नहीं है. हमारे मुस्लिम भाइयों ने प्यार और सम्मान के लिए यह किया था.”
BEAUTY OF RELIGION : ये सब इतना आसान नहीं था
इस गांव की सभी कहानियां शांतिपूर्ण नहीं रही हैं।
अशोक और माज़िद पठान एक घटना को याद करते हैं जब गांव के बाहर से कुछ धार्मिक नेता आए और उन्होंने मुस्लिम समुदाय से गणेश उत्सव में शामिल नहीं होने का अनुरोध किया। इन नेताओं ने चेतावनी देते हुए कहा कि यह इस्लामी शिक्षाओं के खिलाफ़ है।
हालांकि, गांव वाले अपनी बात पर अड़े रहे, और मिलकर त्योहार मनाने की पैरवी की। वो इसमें सफल रहे और नफरत हार गई।
एक बार ऐसा हुआ कि कुरुन्दवाड़ गांव से मात्र 18 किलोमीटर दूर मिराज में गणपति महोत्सव के दौरान दंगे हुए. हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ने से आसपास के क्षेत्र में अशांति फैल गई, कर्फ्यू लगा दिया गया। दंगों के बावज़ूद कुरुन्दवाड़ गांव में कोई भी बदलाव नहीं आया, गांव इस अराजकता से बचा रहा।
BEAUTY OF RELIGION : हिंसा के खिलाफ़ एकजुटता और अवज्ञा दिखाते हुए गांव के लोग शांति मार्च के लिए एकजुट हुए. इस घटना ने हिंदू-मुस्लिम एकता का एक बेहतरीन उदाहण पेश किया।
BEAUTY OF RELIGION : 10 दिन हिंदू और मुस्लिम परिवार करते हैं गणपति की आरती
गणेश उत्सव के शुरुआती सालों में गणपति का जुलूस बैलगाड़ी में निकाला जाता था. लेकिन वर्तमान में यह ट्रैक्टर में निकाला जाता है। लोगों का उत्साह अभी भी वैसा ही है। अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति की मूर्ति का विसर्जन करने के बाद पूरा गांव सामूहिक भोजन के लिए इकट्ठा होता है। 10 दिनों के दौरान हिंदू और मुस्लिम परिवार गणपति की आरती करते हैं।
पश्चिम महाराष्ट्र के कोल्हापुर ज़िले में बसे कुरुन्दवाड़ गांव में हर साल एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, गणपति उत्सव के दौरान यहां की पांच मस्जिदों में भगवान गणेश की प्रतिमा विराजी जाती है।
यह गांव, ये परंपरा एकता और साझा आस्था का एक प्रतीक है।
इस अनूठी परंपरा की शुरुआत गोटखिंडी गांव से मिलती-जुलती है। साल 1982 में गणपति उत्सव के समय भारी बारिश के दौरान एक मस्जिद के पास स्थापित गणेश की प्रतिमा को बारिश से बचाने के लिए मस्जिद के अंदर ले जाया गया था। उसी समय से भगवान गणेश की मूर्ति को त्योहार के समय कुरुन्दवाड़ गांव की सभी पांचों मस्जिदों में विराजा जाने लगा।
BEAUTY OF RELIGION : यहां कि लोग गर्व से बताते है कि, “इस परंपरा को शुरू करने के लिए हमें अपने पूर्वजों पर गर्व है. यह उनकी ही विरासत है जो हमारे गांव को आज के विभाजनकारी समय में भी सामाजिक सद्भाव के साथ एकजुट रहने को प्रेरित करती है। जबकि हमारे आस-पास की दुनिया ध्रुवीकृत हो सकती है, हमारा गांव भाईचारे और प्रेम से पनपता रहेगा.”
BEAUTY OF RELIGION : LORD GANESH LIVES IN MASJID
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