Jagannath Rath Yatra : धर्म नहीं, भक्ति देखते है भगवान।
जालंधर 5 जुलाई (Mehak): Jagannath Rath Yatra :पुरी की ऐतिहासिक जगन्नाथ रथ यात्रा जहां भक्ति, आस्था और परंपरा का पर्व है, वहीं यह यात्रा हर वर्ष एक ऐसी अनूठी मिशाल भी पेश करती है जो हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बन चुका है।
भगवान जगन्नाथ का रथ, अपनी सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार, आज भी कुछ पल के लिए उस मुस्लिम फकीर “साल बेग” की मजार के सामने रुकता है, जिसने कभी प्रभु की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया था।

कौन थे साल बेग?
साल बेग 17वीं शताब्दी के एक मुस्लिम भक्त थे, जिनके पिता मुग़ल सेना में अफसर थे और मां हिंदू थीं। एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़ने पर जब किसी उपाय से लाभ नहीं हुआ, तब उन्होंने श्रीजगन्नाथ का स्मरण किया और चमत्कारी रूप से ठीक हो गए। तभी से वे प्रभु के परम भक्त बन गए।
साल बेग भले ही मुस्लिम थे, लेकिन उन्होंने भगवान जगन्नाथ के लिए कई भजन रचे, जो आज भी ओडिशा में श्रद्धा से गाए जाते हैं।
मजार के सामने क्यों रुकता है रथ?
मान्यता के अनुसार, एक बार जब साले बेग Jagannath Rath Yatra / रथ यात्रा में भाग लेने के लिए पुरी आ रहे थे, लेकिन समय पर पहुँच नहीं पाए। उन्होंने मन ही मन प्रभु से प्रार्थना की और कहते हैं कि उसी वर्ष भगवान जगन्नाथ का रथ कुछ देर तक स्वतः रुक गया — जैसे कि वे साले बेग की प्रतीक्षा कर रहे हों।

आज उनकी मजार बड़ा डांडा मार्ग (रथ यात्रा मार्ग) के किनारे स्थित है, और परंपरागत रूप से हर वर्ष रथ यात्रा के दौरान जब भगवान का रथ मजार के सामने पहुँचता है, तो उसे कुछ पल के लिए रोका जाता है — यह परंपरा आज भी निभाई जाती है।
धार्मिक सौहार्द की मिसाल
Jagannath Rath Yatra : साले बेग की मजार पर आज भी हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग चादर चढ़ाते हैं। पुरी में यह स्थान भक्ति, एकता और भाईचारे का प्रतीक बन चुका है। यह दर्शाता हैं कि सच्ची भक्ति किसी धर्म की सीमा में नहीं बंधी होती।
क्या कहते हैं श्रद्धालु?
Jagannath Rath Yatra : रथ यात्रा में आए श्रद्धालु इस परंपरा को देखकर अभिभूत हो जाते हैं। भुवनेश्वर से आए एक श्रद्धालु रमाकांत नायक कहते हैं ।”यह रथ यात्रा सिर्फ भगवान जगन्नाथ की नहीं, यह भारतीय संस्कृति की उदारता और सर्वधर्म समभाव की यात्रा है।”तब से लेकर अब तक हर वर्ष रथ यात्रा के दौरान रथ मजार के आगे आकर कुछ देर के लिए रोका जाता है।