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Reading: Uttarakhand में बादल फटने की घटनाएं, हिमालयी आपदाओं की नई चुनौती
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Uttarakhand में बादल फटने की घटनाएं, हिमालयी आपदाओं की नई चुनौती

The Telescope Times
Last updated: August 7, 2025 1:37 pm
The Telescope Times Published August 7, 2025
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Uttarakhand
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Uttarakhand – धराली गांव में बादल फटने का वैज्ञानिक विश्लेषण

-डॉ. संजय पांडेय

Contents
Uttarakhand – धराली गांव में बादल फटने का वैज्ञानिक विश्लेषणइसलिए बढ़ रही हैं हिमालय में बादल फटने की घटनाएंजलवायु परिवर्तन की भूमिकाक्या किया जा सकता हैबादल फटना उत्तराखंड की नियति बन गया है

Uttarakhand – नई दिल्ली। उत्तरकाशी के धराली गांव में 5 अगस्त, 2025 को अचानक आई बाढ़ और मलवे ने फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की घटनाएं क्यों लगातार बढ़ रही हैं। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार उत्तर-पश्चिम भारत के पहाड़ी इलाकों में पिछले 24 घंटों के दौरान 210 मिमी से अधिक बारिश दर्ज की गई, जो बादल फटने की परिभाषा में आती है।

उत्तरकाशी (Uttarakhand) की यह घटना कोई अपवाद नहीं है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन में प्रकाशित शोध बताता है कि ऊपरी गंगा बेसिन में अत्यधिक वर्षा के कारण अचानक बाढ़, भूस्खलन और जन-धन की हानि सामान्य होती जा रही है। इन क्षेत्रों में भौगोलिक जटिलता और बारिश के वितरण की स्थानीय समझ का अभाव, प्रशासनिक तैयारियों को बेहद चुनौतीपूर्ण बनाता है।

आईएमडी के अनुसार जब किसी 30 वर्ग किलोमीटर या उससे कम क्षेत्र में एक घंटे के भीतर 100 मिमी या उससे अधिक बारिश होती है, तो उसे फटना कहा जाता है। यह कोई सामान्य वर्षा नहीं होती बल्कि इसमें भारी जल राशि सीमित समय और स्थान पर गिरती है, जिससे अचानक बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएं होती हैं। हिमालयी क्षेत्र में मानसून के महीनों जुलाई-अगस्त के दौरान ऐसी घटनाएं सर्वाधिक होती हैं।

आंकड़ों के अनुसार 66.6 प्रतिशत बादल फटने की घटनाएं समुद्र तल से 1000-2000 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में होती हैं, जो आबादी के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील हैं।

इसलिए बढ़ रही हैं हिमालय में बादल फटने की घटनाएं

पोलर साइंस पत्रिका में प्रकाशित नवीनतम शोध के अनुसार वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण हिमालयी क्षेत्र में नमी और संवहन यानी कन्वेक्शन(ऊष्मा से ऊपरी वायुमंडल में उठने वाली हवा) की प्रक्रिया तेज हो गई है। गर्म हवाएं जब समुद्र से भारी मात्रा में नमी लेकर हिमालय की तलहटी तक पहुंचती हैं, तो पहाड़ इन हवाओं को ऊपर की ओर ले जाते हैं।

इस प्रक्रिया को ओरोग्राफिक लिफ्ट कहा जाता है।इससे विशाल क्यूम्यलोनिम्बस नामक बादल बनते हैं जो बारिश की बड़ी बूंदों को धारण कर सकते हैं। यह नमी से भरी हुई हवा का प्रवाह ऊपर उठता है और बादल बड़ा होता जाता है और बारिश की कोई संभावना न होने के कारण, यह इतना भारी हो जाता है कि एक बिंदु पर यह फटने लगता है। ऊपर उठते समय जब यह नमी ठंडी हवाओं से मिलती है तो तीव्र संघनन (कंडंजेशन) होता है और भारी वर्षा के रूप में गिरता है।

यदि किसी विशेष क्षेत्र में यह प्रक्रिया तीव्र हो जाए तो सीमित समय में अत्यधिक जलराशि गिरने लगती है जिसे बादल फटना कहा जाता है। पहाड़ों में प्रकृति के साथ ज्यादा से ज्यादा मानवीय दखल इस प्रक्रिया को और तेज कर रहा है।

जलवायु परिवर्तन की भूमिका

हिमालय में तापमान वृद्धि की दर वैश्विक औसत से अधिक है। इससे वाष्पीकरण बढ़ता है, वातावरण में नमी अधिक होती है और इससे भारी वर्षा की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से भी वायुमंडलीय नमी में वृद्धि होती है, जो स्थानीय स्तर पर अचानक बाढ़ की घटनाओं में योगदान देती है। पोलर साइंस के अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर कर रहा है, जिससे अल्ट्रा लोकलाइज्ड (अत्यधिक सीमित दायरे में होने वाली) वर्षा की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिन पर पूर्व चेतावनी देना अत्यंत कठिन है।

क्या किया जा सकता है

विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तराखंड और अन्य पहाड़ी राज्यों में उच्च गुणवत्ता वाली मौसम निगरानी प्रणालियों का नेटवर्क खड़ा करना आवश्यक है। संवेदनशील इलाकों में रियल-टाइम रडार सिस्टम और पूर्व चेतावनी तंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए।मानसून के दौरान निकासी प्रोटोकॉल पहले से लागू किए जाने चाहिए। ढलान व तलहटी वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को उच्च जोखिम की स्थिति में सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करने के लिए प्रशासनिक योजनाएं पूर्व निर्धारित होनी चाहिए।स्थानीय समुदायों को जागरूक करने, निर्माण कार्यों पर नियंत्रण लगाने और पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाए रखने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियां बनाई जानी चाहिए। विशेषज्ञों का यह भी सुझाव है कि क्लाउड बर्स्ट जोन (सीबीजेड) की स्पष्ट पहचान कर वहां विशेष सुरक्षा उपायों को लागू किया जाना चाहिए।

बादल फटना उत्तराखंड की नियति बन गया है

2015 से 2025 के दौरान उत्तरकाशी (Uttarakhand) में बादल फटने की कई घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ। 1 जुलाई 2015 को बिनसर में बादल फटने से 5 लोगों की मृत्यु हुई और कई सड़कें अवरुद्ध हो गईं। इसके बाद 17 जुलाई 2016 को डुंडा क्षेत्र में भारी भूस्खलन के साथ 3 लोगों की मौत हुई।

3 अगस्त 2018 को अगोडा गांव में बादल फटने से 6 लोगों की जान गई और पूरा गांव जलभराव से प्रभावित हुआ। 20 जुलाई 2019 को नौगांव में बादल फटा, हालांकि इसमें कोई हताहत नहीं हुआ, लेकिन भारी भौतिक नुकसान हुआ। 18 अगस्त 2021 को मोरी ब्लॉक में सबसे गंभीर घटना घटी, जहां 10 लोगों की मृत्यु हो गई और एक पुल बह गया। 10 जुलाई 2023 को बड़कोट क्षेत्र में बादल फटने से 3 लोग मारे गए और बिजली आपूर्ति बाधित हुई। धराली गांव में लगातार दो वर्षों में बादल फटने की घटनाएं हुईं।22 जुलाई 2024 को इसमें 2 लोगों की मौत हुई और कृषि भूमि नष्ट हो गई।

इन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उत्तरकाशी (Uttarakhand) जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएं अब नियमित आपदा का रूप लेती जा रही हैं।

Uttarakhand

डॉ. संजय पांडेय

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