GLOBAL WEATHER : इनमें से हर पांचवी मौत भारत में
GLOBAL WEATHER : भारत में लू की वजह से हर साल औसतन 31,748 मौतें
GLOBAL WEATHER : मौसम विभाग ने बुजुर्गों और बच्चों को घर के अंदर रहने की सलाह दी
GLOBAL WEATHER : जालंधर । नई दिल्ली । हर रोज़ तापमान बढ़ रहा है। सुबह दस बजे के बाद है से निकलना मुश्किल है। जितना मर्जी हाथ और मुँह ढक लो, तपिश से नहीं बच सकते। ये लू और गर्म हवाएं हर साल दुनिया भर में 153,078 जिंदगियों को निगल रही हैं। इससे ज्यादा परेशान करने वाला क्या हो सकता है कि इनमें से हर पांचवी मौत भारत में हो रही है। यदि आंकड़ों की मानें तो भारत में लू की वजह से हर साल औसतन 31,748 मौतें हो रही हैं। ऐसे में बढ़ती गर्मी और लू से बचाव के लिए कहीं ज्यादा संजीदा रहने की जरूरत है। मोनाश विश्विद्यालय ने अपनी एक नई रिसर्च में यह खुलासा किया है।
इसके अलावा पंजाब, हरियाणा,चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, विदर्भ, ओडिशा, उत्तराखंड, तटीय आंध्र प्रदेश और यनम तथा झारखंड के अलग-अलग हिस्सों में लू का प्रकोप जारी रहने की आशंका जताई गई है। मौसम विभाग ने बुजुर्गों और बच्चों को घर के अंदर रहने की सलाह दी है।
GLOBAL WEATHER : ऐसे में इस बात से कतई भी इंकार नहीं किया जा सकता कि देश दुनिया में पड़ती भीषण गर्मी और लू में जलवायु परिवर्तन का बहुत बड़ा हाथ है। लेकिन दिल्ली जैसे भारतीय शहरों में इतना ज्यादा तापमान और गर्मी की तपिश क्यों महसूस की जा रही है, क्योंकि सिर्फ जलवायु परिवर्तन इस बढ़ती गर्मी की वजह नहीं हो सकता।
आईआईटी, भुवनेश्वर ने अपनी रिपोर्ट में प्रकाश डाला है, जिसके मुताबिक भारतीय शहरों में बढ़ती गर्मी के लिए बढ़ता शहरीकरण और पेड़ों, जलस्रोतों का होता विनाश भी जिम्मेवार है। 140 से अधिक शहरों पर किए इस अध्ययन के मुताबिक शहरीकरण की वजह से देश के इन शहरों में गर्मी आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में औसतन 60 फीसदी अधिक है। ये जो हम पेड़ काटकर घर बना रह, सड़कें चौड़ी कर रहे वो सब गर्मी में इज़ाफ़ा कर रहे।
GLOBAL WEATHER : इस रिपोर्ट के मुताबिक जबलपुर, गोरखपुर, आसनसोल, जमशेदपुर, मंगलौर में पड़ती गर्मी पर शहरीकरण का सबसे ज्यादा असर देखा गया। इसी तरह ओडिशा के भुवनेश्वर में शहरीकरण ने बढ़ते तापमान में करीब 90 फीसदी का योगदान दिया है। दिल्ली में पड़ती भीषण गर्मी के 32.6 फीसदी हिस्से के लिए शहरीकरण को जिम्मेवार माना है। राजधानी में नित बन रही सोसाइटी एक कारक हैं।
उधर, उत्तराखंड जैसे ठन्डे इलाके भी इस साल गर्मी का रिकॉर्ड तोड़ने के करीब हैं। देहरादून में पारा 43 डिग्री तक पहुंच रहा, जो बीते दस साल में मई के सबसे गर्म दिन से सिर्फ़़ 0.1 डिग्री कम था। हालात यह हैं कि ग्लेशियर गलने की गति बढ़ने से अलकनंदा नदी में पानी इतना बढ़ गया कि रिवर फ़्रंट के काम रोकने पड़े।
वहीं, बारिश के अभाव में राज्य के जंगलों का जलना जारी है और जंगल की आग से होने वाले प्रदूषण की वजह से ग्लेशियरों पर ब्लैक कार्बन जम रहा है।
मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार देहरादून में मई माह में 8 दिन ऐसे रहे, जिनमें पारा 40 डिग्री या उससे अधिक रहा। इस तरह ये माह पिछले 10 साल की सबसे गर्म मई बन गई है, इससे पहले 2018 के मई माह में 4 दिन 40 डिग्री सेल्सियस या उससे ज्यादा गर्म रहे थे।
GLOBAL WEATHER : सामान्य से 4.5 डिग्री अधिक होने पर माना जाता लू वाला दिन
बता दें कि मौसम विभाग के अनुसार अगर मैदानी इलाक में पारा 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने और इसके सामान्य से 4.5 डिग्री अधिक होने पर हीट वेव या लू वाला दिन माना जाता है। अगर यह अंतर 6.5 डिग्री से ज्यादा हो जाए तो उसे लू का गंभीर प्रकोप या सिविअर हीट वेव कहा जाता है।
पहाड़ों में यह हद 30 डिग्री सेल्सियस और तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस की होती है।
मौसम विभाग के देहरादून केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह कहते हैं कि भले ही गर्मी का रिकॉर्ड न टूटा हो, लेकिन गर्मी लगातार बनी हुई है, क्योंकि पारा उतर ही नहीं रहा। आमतौर पर मई में बारिश हो जाती थी और फिर चढ़ने से पहले पारा कुछ लुढ़क जाता था, लेकिन इस बार पूरा अप्रैल और मई महीने में बारिश न होने की वजह से इतने ज्यादा दिन गर्म रहे हैं।
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