किसानों का आरोप-केंद्र एमएसपी को कानून बनाए तभी हटेंगे
नई दिल्ली/जालंधर /चंडीगढ़। 13 फरवरी को 78 किसान यूनियनों ने दिल्ली तक मार्च करने की योजना बनाई है, जबकि तीन दिन बाद 16 फरवरी को सीपीएम के किसान विंग, अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में संयुक्त किसान मोर्चा ने पूरे भारत में ग्रामीण बंद का आह्वान किया है।
किसानों का आरोप है कि पिछली बार केंद्र ने ये कहकर किसानों का धरना उठा दिया था कि सभी 3 बिल क़ानून बना देंगे पर अब मोदी मुकर गए हैं।
सभी किसान संघों का दावा है कि केंद्र एमएसपी को कानूनी गारंटी देने की अपनी प्रतिबद्धता से मुकर गया है, जैसा कि 2021 के मेगा विरोध प्रदर्शन के अंत में तय किया गया था।
पिछले सप्ताह पेश किए गए अंतरिम केंद्रीय बजट में, सीतारमण ने कहा, अन्नदाता के उत्पादन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य समय-समय पर उचित रूप से बढ़ाया जाता है।
किसान नेता रमनदीप सिंह मान ने कहा, किसान सीतारमण से सहमत हैं, लेकिन केवल आंशिक रूप से, क्योंकि मुख्य प्रश्न अभी भी बना हुआ है। एमएसपी की अभी तक कोई कानूनी वैधता नहीं है। यह हमारी प्राथमिक मांगों में से एक थी। हमने दो साल तक इंतजार किया है और अब चाहते हैं कि सरकार जवाब दे कि वे इसे स्वीकार करते हैं या नहीं,
जबकि सरकार रबी और खरीफ सीज़न से पहले 23 कृषि उपजों पर एमएसपी की घोषणा करती है। सिर्फ दो चुनिंदा फसलों धान और गेहूं पर इसे लागू किया गया वो भी पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के कुछ हिस्सों तक। हमारी मांग है कि अगर सरकार एमएसपी की घोषणा करती है तो इसे लागू भी किया जाना चाहिए।
अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव विजू कृष्णन का कहना है कि संयुक्त किसान मोर्चा 16 फरवरी के ग्रामीण बंद पर महीनों से काम कर रहा है।
ग्रामीण बंद के मद्देनजर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। नवंबर में तीन दिनों तक हमने सभी राजभवनों के बाहर धरना दिया। इस गणतंत्र दिवस पर 27 राज्यों में एक लाख से अधिक ट्रैक्टर राष्ट्रव्यापी रैली में शामिल हुए।
13 फरवरी के मार्च के पीछे के लोग भी किसानों को लामबंद करने के लिए पंजाब और हरियाणा के गांवों में बैठकें आयोजित करने में व्यस्त रहे हैं।
भारतीय किसान यूनियन (शहीद भगत सिंह) के अध्यक्ष अमरजीत सिंह मोरही ने कहा, 12 फरवरी को, पंजाब और हरियाणा के किसान अंबाला में शंभू सीमा पर इकट्ठा किसान अगले दिन दिल्ली की ओर मार्च करेंगे। अगर हमें रोका जाता है, तो हम तब तक धरने पर रहेंगे जब तक सरकार हमारी मांगें नहीं मान लेती।
मोरही का कहना है कि वे आंदोलन के अगले दौर के लिए 70,000-80,000 किसानों को जुटाने की योजना बना रहे हैं।
बमुश्किल दो साल पुराना मोरही का संगठन फरवरी 2022 में पंजाब के नेता गुरनाम सिंह चढूनी के नेतृत्व वाले भारतीय किसान यूनियन के एक अन्य गुट से अलग हो गया था। किसान संगठनों के बंटने पर नेताओं ने कहा कि तब भी मतभेद थे और अब भी मतभेद हैं, पर मकसद सबका एक ही है।