राज्य का 78 फीसदी इलाका सूखे की चपेट में, पानी की बर्बादी सबसे बड़ा कारण
जालंधर/चंडीगढ़ – दुनिया में 1.84 बिलियन लोग सूखे से प्रभावित हैं। जलवायु परिवर्तन से पैदा हुई आपदाओं की वजह से पुरुषों की तुलना में महिलाओं और बच्चों की मृत्यु होने की संभावना 14 गुना अधिक होती है। भूमि उपयोग में परिवर्तन, ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन, जल की खपत में वृद्धि जैसे मानव जनित कारणों से बार-बार भयंकर सूखा पड़ रहा है।
अगर भारत देश के स्तर पर बात करें तो पानी का अति दुरूपयोग 60 फीसदी है। वही सबसे ज़्यादा पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में होता है। पिछले साल भी पंजाब को चेताया गया था कि यह राज्य 166 फीसदी पानी धरती से निकाल रहा। 76 फीसदी पानी का दहन ज़्यादा हो रहा। 72 और 61 फीसदी के साथ राजस्थान और हरियाणा दूसरे और तीसरे नम्बर पर हैं। पंजाब में पानी का रिचार्ज बहुत कम है, यानि कि सिर्फ 18 फीसदी। रिचार्ज का मतलब है किसी भी तरह पानी का वापस ज़मीन में जाना।
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट
अगर हम पंजाब की ही बात करें तो हालात कंट्रोल से बाहर होते दिख रहे। और सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट हमें अलर्ट भी कर रही।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2039 तक इस प्रांत में धरती के नीचे का पानी 1000 फ़ीट तक गिर जायेगा।
यह अभी 450 फ़ीट तक है। इसका सबसे बड़ा कारण है पानी का दुरूपयोग। बारिश के पानी का सही उपयोग न करना।
2000 में भी संभल जाते तो सब ठीक रहता। तब ज़मीन के नीचे का पानी 110 फ़ीट पर था।
रिपोर्ट की मानें तो पंजाब का 78 फीसदी इलाका डार्क जोन में है। क़रीब 12 फीसदी इलाका ऐसा बचा है जो सही है। बाकी बचते इलाके मिले जुले हालात वाले हैं।
एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ) की निगरान कमेटी ने बताया कि बरनाला, बठिंडा, फतेहगढ़ साहिब, जालंधर, मोगा, होशियारपुर, नवांशहर, पठानकोट, पटियाला, संगरूर सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं।
अगर यहां के प्रशासन और लोगों ने जल्द पानी नहीं संभाला तो वो दिन दूर नहीं जब लोग बूँद-बूँद पानी के लिए तरसेंगे।
एक और परेशान करने वाली खबर है।
कुछ महीने पहले एक रिपोर्ट में बताया गया था कि पंजाब के रोपड़ शहर में स्थित गांव हीरपुर के 70 ट्यूबवेल /नलकूप पूरी तरह से सूख गए हैं जो आने वाले सूखे के ख़तरे की एक चेतावनी है। एक्सपर्ट का कहना है, ग्राउंड वाटर रिचार्ज करने के लिए सख़्त और अनिवार्य कदम उठाने अति आवश्यक है। बहुत गहरी खुदाई भी सूखे का कारण बन रही। संगतपुर, सैदपुर और भनुआ गांव के किसानों ने बताया था कि एक टूबवेल सूखने पर उन्हें दूसरा बनवाना पड़ता है जिसमें क़रीब 5 लाख खर्च आता है।
किसानों को प्रोत्साहित करना होगा
सरकार को फसली चक्र बदलने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना होगा। जिन फसलों के उत्पादन में पानी कम लगता हो, उन फसलों के बीज उपलब्ध करवाने होंगे और उन पर एमएसपी (अधिकतम मूल्य ) भी देनी होगी ताकि किसान उन फसलों को बीजने में रुचि दिखाएँ।
सरकार को इस पर ध्यान देना होगा कि आम लोगों को शिक्षित किया जाये कि पानी अमृत है। इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती। जैसे हर जिला परिषद में 7 छोटे बड़े तालाब बनाये जाएं जिससे पानी जमीन में पानी रिसता जाये और पंजाब की मिट्टी में नमी और उपजाऊ शक्ति बनी रहे।
स्कूलों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज में पर्यावरण संभाल पर बच्चों को प्रैक्टिकल रूप से बाहर ले जाएं और सच्चाई से अवगत करवाएं।
इतना है काफी नहीं होगा। जल की खपत और प्रबंधन के प्रति गंभीर कदम उठाना लंबे समय में पंजाब को लाभ पहुंचा सकता है। उन देशों का अनुसरण किया जा सकता है जो कृषि, घरेलू और औद्योगिक स्तर पर अच्छे काम कर रहे हैं। जनता को आने वाली आपदा को रोकने के प्रति उनकी सामूहिक जिम्मेदारी के प्रति संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है। सभी को साथ लेना ही प्रभावी जल संरक्षण की कुंजी है। अब हर बूंद को बचाने का समय आ गया है।