MONSOON IN PUNJAB : मौसम विभाग ने ऐसे जानलेवा मौसम के पूरे हफ्ते बने रहने के बारे में आगाह किया
जालंधर। (MONSOON IN PUNJAB) गर्मी ने पूरे देश में हालत खराब कर रखी है। इंसान तो इंसान जानवर भी बेहाल हुए पड़े हैं। पंछी, पशु सब सुबह दस बजे छिप जाते हैं फिर शाम 6 -7 बजे ही दिखते हैं। लोगों ने बताया, एसी (AIR CONDITIONER) चलने के बावजूद कमरे का तापमान 35 डिग्री से ऊपर आ रहा है। गर्मी से काम-काज पर असर पड़ रहा है।
मौसम विभाग के अनुसार, अभी भी देश के बहुत से हिस्सों में तापमान 46-47 डिग्री से कम पर आता नहीं दिख रहा। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में अधिकतम तापमान 47.6 डिग्री सेल्सियस रहा। बच्चों और बुजुर्गों को घर में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। लू लगने के डर से स्कूल में छुटियाँ हैं पर बच्चे खेल नहीं सकते।
मौसम विभाग ने ऐसे जानलेवा मौसम के पूरे हफ्ते बने रहने के बारे में आगाह किया है। पंजाब की बात करें तो 17 जून को लुधियाना, जालंधर सहित कई जिलों में रेड अलर्ट घोषित किया गया था। प्रशासन ने कहा था ज़रूरी हो तभी निकलें। पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में रात के मौसम के गर्म रहने के आसार बताये गए हैं। 30 जून तक मानसून के आने की आशंका है। अगर बारिश हुई तो जुलाई राहत लेकर आएगी।
मौसम विभाग ने आने वाले दिनों में पंजाब के इलावा उत्तर प्रदेश के अधिकतर इलाकों, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली के कई हिस्सों, बिहार और झारखंड के कुछ इलाकों में भीषण लू या हीटवेव चलने की आशंका जताई है।
वहीं जम्मू, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में गंगा के कुछ मैदानी इलाकों में भी गर्म हवाएं महसूस की जा सकती हैं।
इससे एक दिन पहले भी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली के कई हिस्सों, दक्षिणी बिहार, दक्षिणी उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों को भीषण लू का कहर झेलना पड़ा।
MONSOON IN PUNJAB: मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान बढ़ने के कई कारण हैं।
कंक्रीट बढ़ रहा है।
फर्श सीमेंट से ढका जा रहा।
पानी वापस धरती में जा नहीं पा रहा।
नए पौधे नहीं लगाए जा रहे।
पुराने पेड़ों को काटा जा रहे है।
धुंआँ।
केमिकल।
प्रदूषित पानी।
प्लास्टिक।
DANGER : नाइट्रस ऑक्साइड गैस के उत्सर्जन में 40 फीसदी इजाफा
इसके अलावा ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि साल 1980 से 2020 के बीच धरती को गर्म करने वाली नाइट्रस ऑक्साइड गैस के उत्सर्जन में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है।
इस शक्तिशाली गैस के बड़े पांच उत्सर्जक चीन (16.7 फीसदी), भारत (10.9 फीसदी), अमेरिका (5.7 फीसदी), ब्राजील (5.3 फीसदी) और रूस (4.6 फीसदी) हैं।
प्रति व्यक्ति उत्सर्जन की बात करें तो यह अलग-अलग है। भारत में प्रति व्यक्ति नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन सबसे कम 0.8 किलोग्राम है, अन्य शीर्ष प्रति व्यक्ति उत्सर्जकों में चीन 1.3, अमेरिका 1.7, ब्राजील 2.5 और रूस 3.3 किलोग्राम है।
जर्नल अर्थ सिस्टम साइंस डेटा नामक पत्रिका में प्रकशित अध्ययन में कहा गया है कि वायुमंडल में नाइट्रस ऑक्साइड का बढ़ना ओजोन परत को नष्ट कर सकता है और जलवायु में बदलाव के प्रभावों को बढ़ा सकता है। धरती पर अतिरिक्त नाइट्रोजन मिट्टी, पानी और वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी करता है।
स्टडी में शामिल 18 क्षेत्रों में से केवल यूरोप, रूस, ऑस्ट्रेलिया, तथा जापान और कोरिया में नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आई है।
शोधकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा कि पेरिस समझौते के अनुसार, वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए मानवजनित गतिविधियों से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आनी चाहिए। नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन को कम करना ही एकमात्र समाधान है क्योंकि इस समय ऐसी कोई तकनीक मौजूद नहीं है जो वायुमंडल से नाइट्रस ऑक्साइड को हटा सके।
नई प्रणाली आधे घंटे पहले बता देगी कब और कहां गिरेगी बिजली
आकाशीय बिजली के चलते हर वर्ष हजारो लोगों और मवेशियों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। साथ ही यह बड़े पैमाने पर घरों और जंगलों में लगने वाली आग के लिए जिम्मेदार है। इससे बिजली की लाइनों, सौर और पवन ऊर्जा संयंत्रों एवं अन्य संरचनाओं को भी नुकसान पहुंचता है । इसके चलते अनेक बार विमानों को जमीन पर उतरना पड़ता है। हालांकि, अब शायद इन मसलों पर थोड़ी लगाम लग सके।
स्विट्जरलैंड में इकोल पॉलीटेक्निक फेडरल डि लौसाने (ईपीएफएल) के शोधकर्ताओं ने फरहाद रशीदी के नेतृत्व में एक सरल और सस्ती प्रणाली विकसित की है, जो 30 किलोमीटर के दायरे में करीब आधा घंटा पहले ही इस बात का पूर्वानुमान कर सकती है कि बिजली कहां गिरने वाली है। उनकी यह प्रणाली मौसम संबंधी डेटा और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित है।
इस सन्दर्भ में व्यापक शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल क्लाइमेट एंड एटमॉस्फियरिक साइंस में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं में से एक आमिर हुसैन मुस्तजाबी ने बताया कि, ‘बिजली को मापने की मौजूदा प्रणालियां धीमी और जटिल हैं तथा उनके लिए रडार या उपग्रह से आंकड़े लेने होते हैं, जो महंगा पड़ता है। जबकि हमारी यह प्रणाली किसी भी मौसम स्टेशन से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर काम करती है। इससे हम ऐसे दूरदराज के क्षेत्रों की भी निगरानी कर सकते हैं जो रडार और सैटेलाइट की रेंज से बाहर हैं और जहां संचार सम्बन्धी नेटवर्क उपलब्ध नहीं है। इसमें महत्वपूर्ण है कि इसमें डेटा आसानी से रियल टाइम में प्राप्त किया जा सकता है और तूफान के आने से पहले ही अलर्ट जारी किया जा सकता है।
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