‘आप नंगे हैं, बगलें बजाना बंद करें’
Jalandhar। हाल ही में गुरु नानक मिशन चौक में स्थित Notorious Club में टकराव के बाद इस घटना को छिपाने को लेकर जालंधर में पत्रकार और एक पुलिस अफसर की मिलीभगत फिर से चर्चा में हैं। इस घटना में FIR तो हुई पर इतनी देरी से हुई कि प्रशासन का “सुओ मोटो” सांप की लकीर को पीटने के इलावा कुछ नहीं ? इतने दिनों बाद मामला दर्ज होना भी कई तरह के संदेह पैदा करता है।
हुआ यूं कि दो बड़े बिल्डर परिवारों के बच्चों की क्लब में मारपीट हो जाती है। कुछ पत्रकारों को आदतन लगा कि यह मौका तो जेब भरने का है। घटना की डिटेलिंग तो आप जान चुके हैं, पढ़ चुके हैं। अब बात करते हैं इसके इर्द गिर्द की चर्चाओं पर। इस पुलिस अधिकारी के नाम पहले भी कई विवाद हैं। पत्रकार भी दूध का धुला नहीं है।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ। जनता जानती है कि ऐसी चर्चाएं होती रहती हैं। कुछ लोगों ने यह भी कहा, अब ऐसी बातें उन्हें हैरान नहीं करतीं। आज कल पत्रकारों का पैसे लेकर ख़बर लिखना, रोकना एक बेहद आम घटना हो गई है।
गौर करें-कोई भी घटना होते ही अक्सर पत्रकार पुलिस से भी पहले प्रकट हो जाते हैं, मगर खबर नहीं लिखी जाती, पुलिस रिपोर्ट नहीं बनाई जाती। तो इस मसले में किया क्या जाता है। अगर उक्त मामले को ही ले लें तो एक बड़ी अख़बार की कवरेज में एक बॉक्स लगाया गया है जिसमें साफ़ साफ़ लिखा गया है कि एक पत्रकार एसोसिएशन का प्रधान और पुलिस वाला खुद इस मसले को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। कौन है ये जोड़ी और इनकी सेना?
एक्शन न लिया जाना दे रहा बढ़ावा
अभी हाल में एक पत्रकार ग्रुप ने कहा था कि शहर के बहुत से पत्रकार ब्लैकमेलर हैं और प्रशासन ने ये पुष्टि की थी कि हाँ ऐसे पत्रकार हमारे मुलाजिमों के साथ मिलके ब्लैकमेलिंग करते हैं, यह पुष्टिकरण एक लोकल न्यूज़ पोर्टल पर छपा भी कि प्रशासन ने इस ब्लैकमेलिंग की पुष्टि की है। तो सबसे पहले सरकारी ब्लैकमेलरों पर एक्शन लिया जाना चाहिए था जो नहीं हुआ।
ब्लैकमेलर सिर्फ पत्रकार नहीं, बल्कि एक गिरोह है जो तरीके से यह काम करता है
हैरानी की बात यह है कि आज तक न तो पत्रकार ग्रुप वाले उन पत्रकारों के नाम बता पाए और न ही करप्ट मुलाजिमों पर प्रशासन ने कोई कार्रवाई की। क्या ये शोर शराबा, चर्चाएं, दूषणबाज़ी का बाजार और चिंता की नौटंकी लोगों की दिनचर्या का हिस्सा बन कर रह गईं हैं।
फ़िलहाल जय-वीरू की जोड़ी पर लौटते हैं।
सैयां कोतवाल इन ट्रेंडिंग उर्फ़ बिचौलियापा
अब शहर के कुछेक पत्रकार जब भी ऐसी घटना के बारे में जानकारी पाते हैं तो उसकी रिपोर्टिंग करने की जगह उन्हें ऐसा लगने लगता है कि ये बहती गंगा में हाथ धोने का समय है। पीड़ित लोग उन्हें कस्टमर लगते हैं। अब इस कस्टमर को डर कैसे बेचना है, इसपर काम शुरू होता है। पत्रकारों द्वारा पुलिस के साथ मिल कर दोनों पार्टियों को एक दूसरे के नाम से डराया जाता है कि ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ यह है कि दूसरी पार्टी आप पर परचा दर्ज करवा रही है’। हम आपके मसीहा हैं, हम निवारण करेंगे आपके दुखों का क्योंकि हमारे पास है हमारे सैयां कोतवाल। मतलब फलां पुलिस वाला यह काम करवा देगा।
ऐसे कस्टमरों की चर्चा अक्सर ही कोतवाल के पिछले कमरों में होती रहती है। बहुत बार देखा गया है कि पुलिस वालों के ऑफिस में, उनके निजी कमरों में कुछ पत्रकार ऐसे घूमते मिलेंगे जैसे छुट्टियां काटने आये हैं। अगर आपको कहीं ऐसे पत्रकार मिले जो आपको एक अवसर में बदलने की कोशिश में उनसे पूछें, कौन है आपके ‘सैयां कोतवाल’
Jalandhar – खैर हम बात कर रहे थे Notorious Club की। सुनने में तो ये भी आया है कि दस पंद्रह साल पहले किसी बड़े अख़बार के फोटोग्राफर/पत्रकार को चोरी के मोटरसाइकिल बेचने के कारण प्रशासन ने उठा लिया था और बाद में छोड़ दिया गया। इसमें भी जिस अधिकारी का नाम था, वहीँ हैं सैयां कोतवाल।
यह जो बिचौलियापा करवाया जा रहा है उसको रोका जाना चाहिए। क्यों पुलिस न्याय दिलवाने के अपने कर्तव्य से भटके। पत्रकार का काम तो ऐसे कामों की पोल खोलना है लेकिन जब इस स्तम्भ के ही लोग करप्ट हो जायेंगे तो बुरी बात है। बहुत से लोग जो थोड़ा बहुत छाप रहे हैं वो भी यह जाने को उत्सुक हैं कि जब कद्दू कटा तो कितना बटा-किन किन में बटा। कहाँ बटा ?
‘खबर नहीं, मांग पत्र लिखेंगे’
इस सब में कुछ और नुक्ते हैं जिसपर खुल के चर्चा हो रही है। अब पत्रकारिता में यह ट्रेंड है कि ज्यादातर पत्रकार ऐसी घटनाओं की ख़बर नहीं लिखते; इसके दो कारण हो सकते हैं – पहला घटना में शामिल दोनों पार्टियों से सीधी-बात, मन की बात और धन की बात। दूसरा खबर लिखेंगे तो ‘बिचौलियापा ब्रिगेड’ बुरा मान जायेगा। तो अगर सैयां कोतवाल नाराज़ हो जायेंगे तो क्या होगा। दोनों के पास एक दूसरे का कच्चा-चिटठा है, जो दोनों को लगता है ब्रह्मास्त्र है।
अनगिनत सवाल
क्या मांगपत्र देने वाले ज्यादातर पत्रकार सिर्फ सो-कॉल्ड गुड बुक्स में रहने का भरम है। क्या ऐसे प्रधान सिर्फ अधिकारियों को अपनी शक्ल दिखाने जाते हैं? इन पत्रों का या ऐसी संस्थाओं की एक समाज या पत्रकार समाज को क्या देन है? आप खबर लिखें, आर्टिकल लिखें, आपके पत्रकार भाईचारे के साथ क्या हो रहा वो लिखें, समाज में क्या गलत हो रहा वो लिखें। आपका लिखा खुद सरकार और उसके अफसरों के पास पहुंचेगा। इस मांगपत्र की प्रासंगिकता क्या है ? ऐसे अनगिनत सवाल जवाब के इंतज़ार में हैं।
सुनने में शायद अजीब लगे मगर हम पत्रकारिता के बहुत निचले दौर से गुज़र रहे हैं। सिर्फ पत्रकारिता ही नहीं बल्कि समाज के हर स्तर पर।
हमारा भी फ़र्ज़ है कि हम अपने अंदर उस बेबाक बच्चे की तलाश करें जो शरेआम राजा की महिमामंडन यात्रा में उसपर ऊँगली साध कर कहता है कि ‘राजा नंगा है’। अगर आपको भी ऐसे ठग मिलें उनके सैयां मिलें तो बेख़ौफ़ कहिये कि ‘आप नंगे हैं, बगलें बजाना बंद करें’।
क्योंकि हम एक ऐसे शहर में हैं जो पत्रकारिता के लिए जाना जाता है, जिसे मीडिया हब कहा जाता है, जिसने बड़े बड़े पत्रकार दिए हैं। उसमें अगर यह सवाल उठ रहा है कि क्या सचमुच पत्रकारिता के स्तम्भ ने अपनी गरिमा खो दी है तो समाज का हिस्सा होने के नाते शीशे के सामने खड़े होकर खुद से सवाल करें क्योंकि आने वाली पीढ़ियां हम सबसे पूछेंगी कि इस गिरावट में आपका कितना हाथ था ?
New trend of journalism in Jalandhar
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