लोगों ने कपिल मुनि मंदिर में प्रार्थना भी की, सरकार ने दीं सुविधाएं
कोलकाता। देश भर से लगभग एक करोड़ तीर्थयात्रियों ने गंगासागर मेले में भाग लिया और तड़के मकर संक्रांति पर गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर पवित्र डुबकी लगाई।
परंपरागत रूप से, हर साल मकर संक्रांति के दौरान, लाखों श्रद्धालु स्नान करने और श्रद्धेय कपिल मुनि मंदिर में प्रार्थना अनुष्ठान में शामिल होने के लिए पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 जिले में गंगासागर जाते हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से यह जानकारी दी गई है।
बयान में कहा गया, इस साल, गंगासागर में लगभग एक करोड़ तीर्थयात्रियों ने पवित्र जल में डुबकी लगाई। इसके अलावा, इन तीर्थयात्रियों ने कपिल मुनि मंदिर में प्रार्थना भी की। इस संख्या ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।
राज्य के बिजली मंत्री अरूप बिस्वास ने गंगासागर मेले को दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागमों में से एक बताते हुए केंद्र सरकार से इसे राष्ट्रीय मेला घोषित करने का आग्रह किया। पिछले हफ्ते, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसी अनुरोध के साथ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था।
हालांकि, एक पुलिस अधिकारी के अनुसार, पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में स्थित गंगासागर के लिए नौका सेवाओं को घने कोहरे के कारण मकर संक्रांति पर लगभग छह घंटे तक व्यवधान का सामना करना पड़ा।
सरकार रही अलर्ट पर
राज्य पुलिस के अलावा, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और तटरक्षक बल के कर्मियों को किसी भी संभावित आपात स्थिति से निपटने के लिए उचित उपकरणों के साथ तैनात किया गया था।
रविवार दोपहर तक लगभग 65 लाख तीर्थयात्रियों ने गंगासागर मेले का दौरा कर लिया था। समुद्र तट के पार फैला मेला मैदान अब लगभग 1,100 सीसीटीवी कैमरों और 22 ड्रोनों की निगरानी में है। 14,000 पुलिसकर्मियों सहित सुरक्षाकर्मी इस आयोजन की निगरानी कर रहे थे और 45 निगरानी टावर बनाए गए थे।
तीर्थयात्रियों को 36 जहाजों, 100 लॉन्च और 22 घाटों पर चलने वाले छह बजरों के माध्यम से सागर द्वीप तक पहुंचाया गया। विजिबिलिटी बढ़ाने के लिए रणनीतिक रूप से 300 फॉग लाइटें लगाई गईं।
जाने गंगासागर का इतिहास
कहा जाता है कि सब तीर्थ बार-बार गंगासागर एकबार। इसके पीछे कई किस्से हैं। मान्यताएं हैं। गंगासागर की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, गंगासागर के धार्मिक संस्कारों का उल्लेख “महाभारत” और “रामायण” के वृतांतों में भी मिलता है जो लगभग 400 ईसा पूर्व की घटनाएँ हैं। हर साल लाखों तीर्थयात्री मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर इस यात्रा के लिए निकलते हैं। 5वीं शताब्दी के महाकवि कालिदास की “रघुवंशम” जैसी साहित्यिक कृतियों में गंगासागर की भक्ति यात्रा का उल्लेख किया गया है। सतयुग के समय से ही सागर द्वीप की तीर्थयात्रा आस्था और मोक्ष की भावना से जुड़ी हुई है। यह समय से भी परे एक प्राचीन विरासत है जो आज भी शांति और निर्वाण की तलाश में अतृप्त आत्माओं की मुक्ति के लिए निरंतर जारी है।
पौराणिक महत्व
गंगासागर की कहानी हमें बताती है कि कैसे भगीरथ ने गंगा के पवित्र जल से अंतिम संस्कार करते हुए अपने पूर्वजों यानी 60,000 सागरपुत्रों की आत्माओं को नरक की यातना से मुक्त कराया था। यह जीवन और मृत्यु के थका देने वाले चक्र से मुक्ति और मोक्ष की कहानी है।
सामाजिक महत्व
मकर संक्रांति के दिन गंगासागर मनाया जाता है। यह केवल एक तीर्थयात्रा नहीं है बल्कि आस्था और आध्यात्मिकता का संगम है। यह देश के विभिन्न हिस्सों में फसलों की कटाई का मौसम है, एक नई शुरुआत का समय है। यह वह पावन समय है जब समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोग सूर्य देव को उनकी महिमा के लिए अपनी श्रद्धा अर्पित करने हेतु एक साथ आते हैं।
ज्योतिषीय महत्व
मकर संक्रांति का शुभ समय वह अवधि है जब सूर्य कर्क (कैंसर) से मकर राशि (कैप्रिकॉर्न) में प्रवेश करता है। यह सर्दियों के मौसम के खत्म होने और बड़े दिनों की शुरुआत का परिचायक है जो अपने साथ एक नए आरंभ की उम्मीद लेकर आता है। इसी पावन समय में गंगासागर का पर्व मनाया जाता है।