RAHUL DEV – भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा विषयक संगोष्ठी करवाई गई
“धर्मः जीवन में सनातन राग” था टॉपिक
वाराणसी, RAHUL DEV :
“सनातन को किसी एक समुदाय, भूगोल या दिनचर्या तक सीमित नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह सार्वभौमिक है। यदि यह सार्वभौमिक नहीं है तो वह सनातन नहीं है, और जो सार्वभौमिक है उस पर संकट आ ही नहीं सकता। हम संस्कृति के बाह्य आवरण को सनातन कहकर गलती करते हैं और सनातन एवं समसामयिक में फर्क नहीं कर पाते। सनातन को सामयिक बना देने से उसका स्वरूप छोटा हो जाता है।” यह विचार वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित “धर्मः जीवन में सनातन राग” विषयक संगोष्ठी के तीसरे दिन व्यक्त किए।
राहुल देव /RAHUL DEV ने कहा कि सनातन की अक्षुण्णता इसी में है कि वह समय, स्थान और परिस्थिति के पार है। यह जीवन की एक निरंतर धारा है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी बहती रहती है।
संगोष्ठी के ‘धर्म तथा समाज: आधुनिक विचारक—स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविंद, महात्मा गांधी, स्वामी करपात्री जी’ विषयक सत्र में वक्ताओं ने लोकजीवन, राष्ट्रीयता और आध्यात्मिक दृष्टि से धर्म की विविध व्याख्याएं प्रस्तुत कीं।
धर्म, लोक परंपराओं को बनाए रखता है : डॉ. विद्या बिन्दु सिंह
डॉ. विद्या बिन्दु सिंह ने ‘लोक जीवन में धर्म’ विषय पर कहा कि समाज में प्रत्येक जाति और वर्ग की अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका है और यह व्यवस्था लोक जीवन में सदैव विद्यमान रही है। धर्म, संबंधों को जोड़ने और लोक परंपराओं को बनाए रखने का कार्य करता है। उन्होंने लोककथाओं और लोकोक्तियों के उदाहरण देकर धर्म के स्वरूप को स्पष्ट किया।
डॉ. विश्वास पाटिल ने गांधी जी की धर्म अवधारणा पर कहा कि गांधी स्वयं को सनातन हिन्दू मानते थे और अपने विचारों की निरंतर समीक्षा करते थे। उनके अनुसार, हमें दूसरों के धर्म की बजाय अपने धर्म को परखने की प्रवृत्ति अपनानी चाहिए।
प्रो. अवधेश प्रधान ने स्वामी विवेकानन्द की दृष्टि को रेखांकित करते हुए कहा कि वे वेदान्त का संदेश जनजातीय और वंचित समाज तक ले जाना चाहते थे। विवेकानन्द के अनुसार धर्म, मनुष्य को पशुता से ईश्वरत्त्व तक ले जाने का मार्ग है।
अजयेन्द्र नाथ त्रिवेदी ने कहा कि श्री अरविन्द के लिए राष्ट्रीयता और सनातन धर्म अभिन्न थे। उनके विचार में, यदि सनातन धर्म समाप्त हो गया तो राष्ट्र भी टिक नहीं पाएगा।
स्वामी दयानन्द सरस्वती की धर्म दृष्टि का उल्लेख

प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री ने स्वामी दयानन्द सरस्वती की धर्म दृष्टि का उल्लेख करते हुए बताया कि उन्होंने चिकित्सा, शल्यक्रिया और पंचधा परीक्षा की अवधारणा को अपनाया।
सत्र का संचालन प्रो. प्रकाश उदय ने किया।
अंतिम पंचम अकादमिक/सम्पूर्ति सत्र में ‘धर्म और लोकजीवन: पुरुषार्थ; नैतिकता तथा मूल्य; प्रकृति तथा धर्म; पर्व, उत्सव, प्रार्थना, कथा, सत्संग, अध्यात्म और उदात्त जीवन’ पर चर्चा हुई।
डॉ. राजेश व्यास ने आचार्य विद्यानिवास मिश्र की हिंदू धर्म पर वैज्ञानिक दृष्टि को रेखांकित किया और कहा कि गुरु ही असली तीर्थ है, जो शिष्य को साथ लेकर संसार पार कराता है। डॉ. सुप्रिया पाठक ने स्त्री और धर्म पर लोक और शास्त्र के आलोक में विचार रखे। प्रो. चितरन्जन मिश्र, डॉ. कमल किशोर मिश्र, डॉ. मिथिलेश कुमार, महेन्द्र जी और राजेश कुमार व्यास ने भी विभिन्न आयामों पर अपने विचार व्यक्त किए।
इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. मुरली मनोहर पाठक, कुलपति, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने की और संचालन डॉ. अमित कुमार पाण्डेय ने किया। वक्ताओं का स्वागत डॉ. दयानिधि मिश्र, सचिव, विद्याश्री न्यास ने किया।
संगोष्ठी में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए विद्वान, शोधार्थी और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही। विद्वान, शोधार्थी और स्टूडेंट्स ने इस संगोष्ठी का लाभ उठाया और एक्सपर्ट्स के विचार ध्यान से सुने जो उनके लिए मार्गदर्शन का काम करेगा।
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