रमन सिंह पूर्व सीएम रहे हैं। उनको बहुत अनुभव है। पार्टी ने जब अंत में उनको साथ दौड़ाया तो बिना किन्तु परन्तु वो सेवा में लग गए। उनको इसका फल मिल सकता है। लोग उन्हें चावल वाले बाबा भी कहते हैं।
71 वर्षीय रमन सिंह ने राजनीतिक करियर कॉलेज में शुरू किया। 1983 में पार्षद बने। विधानसभा में दो कार्यकाल पूरा करने के बाद, उन्होंने 1999 में लोकसभा चुनाव लड़ा और संसद के लिए चुने गए। इसके बाद उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया। लेकिन केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह, राज्य भाजपा प्रमुख अरुण साव, विष्णु देव साई और केदार कश्यप जैसे आदिवासी नेता भी कतार में हैं। ये लोग क्या जोड़-तोड़ लगते हैं ये तो वक़्त बताएगा।
51 गैर-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में प्रभाव वाले अरुण साव
54 साल के साव राज्य भाजपा अध्यक्ष और बिलासपुर सांसद भाजपा के सबसे बड़े अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) नेताओं में से एक हैं। साव साहू समाज से हैं जो छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ा ओबीसी समुदाय है। 51 गैर-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में प्रभाव है। पिछले साल सीएम बघेल को संतुलित करने के लिए उन्हें आदिवासी नेता विष्णुदेव साई की जगह राज्य इकाई का नेतृत्व करने का काम सौंपा गया था।
रेणुका सिंह पहली महिला आदिवासी मुख्यमंत्री हो सकती हैं
यदि पार्टी राज्य की पहली महिला आदिवासी मुख्यमंत्री नियुक्त करना चाहती है तो केंद्रीय जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री रेणुका सिंह (59 ) आदर्श विकल्प हैं। सरगुजा संभाग के प्रेमनगर से दो बार विधायक बनीं। वह 2013 में हार गईं। 2019 में सरगुजा से 1.57 लाख वोटों से लोकसभा चुनाव जीतीं। उनको उनके अनुभव के लिए सीएम बनाया जा सकता है।
आदिवासी नेता केदार कश्यप भी बस्तर में धर्मांतरण के मुद्दे पर आक्रामक रहे हैं। दो बार मंत्री रहे कश्यप 2003 से 2018 तक विधायक रहे हैं। इनके खून में नेतागिरी है तो इनके नाम पर भी विचार हो सकता है।
सबसे वरिष्ठ आदिवासी नेताओं में से एक साई
विष्णुदेव साई छत्तीसगढ़ के सबसे वरिष्ठ आदिवासी नेताओं में से एक हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री और चार बार लोकसभा सांसद, 59 वर्षीय साई अविभाजित मध्य प्रदेश में दो बार विधायक भी रहे। एक चुनावी रैली में अमित शाह ने कहा था कि अगर वह सत्ता में आए तो साई को ‘बड़ा आदमी’ बना देंगे।
व्यापारी समुदाय से निकटता वाले बृजमोहन अग्रवाल
अग्रवाल की एक बड़ी ताकत रायपुर शहर के व्यापारी समुदाय से उनकी निकटता है। 64 वर्षीय नेता सात बार विधायक बने। करियर 18 साल की उम्र में एबीवीपी के साथ शुरू किया और 1990 में, 31 साल की उम्र में, वह सबसे कम उम्र के विधायक बने और 1997 में अविभाजित मध्य प्रदेश में सर्वश्रेष्ठ विधायक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पूर्व आईएएस अधिकारी, जिन्होंने भाजपा के लिए कलेक्टरी छोड़ दी
एक पूर्व आईएएस अधिकारी, जिन्होंने भाजपा में शामिल होने के लिए कलेक्टर की नौकरी छोड़ दी, चौधरी, को सीएम की सीट की दौड़ में छिपा घोड़ा माना जाता है। अमित शाह ने उन्हें भी नाम और बड़ा काम देने का वादा कर रखा है। अब ये वादा वफ़ा होता है ये नहीं ये तो बाद में पता चलेगा।