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Scientists ने किया आधुनिक मानव का बिना केमिकल्स बगैर मशीन ममीकरण… नतीजा चौंकाने वाला

The Telescope Times
Last updated: November 3, 2025 12:05 pm
The Telescope Times Published November 3, 2025
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Scientists
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Scientists : मिस्र की 3,000 साल पुरानी तकनीक आज भी करती है काम

डॉ. संजय पांडेय

Contents
Scientists : मिस्र की 3,000 साल पुरानी तकनीक आज भी करती है कामपांच सप्ताह में रामेसेस जैसा चेहरासुगंधित तेल, लिनन पट्टियां और महीनों की प्रतीक्षाScientists ने स्नैपर मछली पर भी आजमाया प्रयोगरोमांचक और हैरतअंगेज

नई दिल्ली/वाशिंगटन। अमेरिकी पुरातत्वविदों ने वर्ष 1994 में प्राचीन मिस्र की ममीकरण तकनीक को पूरी तरह दोहराने का साहसिक प्रयास किया। यह प्रयोग न सिर्फ वैज्ञानिक जिज्ञासा बल्कि इतिहास की गहरी परतों को उजागर करने वाला साबित हुआ अब लेखक सैम कीन की नई पुस्तक डिनर विद किंग टुट में इस विचित्र और सनसनीखेज प्रयोग के विस्तृत विवरण सामने आए हैं, जिसमें प्राचीन औजारों से एक आधुनिक मानव का ममीकरण किया गया।

पुस्तक के अनुसार अमेरिकी मिस्रविद (ईजीप्टोलॉजिस्ट) बॉब ब्रायर और सहयोगी रोजमेरी वाडे ने मिस्री शैली में शव को संरक्षित करने का संकल्प लिया। ब्रायर जानते थे कि प्राचीन मिस्री शव-संरक्षक नथुने के माध्यम से हुकनुमा औजार डालकर दिमाग निकालते थे।

Scientists – प्रयोग के दौरान उन्होंने पहले हुक से दिमाग को सीधे निकालने की कोशिश की, लेकिन यह असफल रही क्योंकि ऊतक बहुत मुलायम था और बाहर नहीं आ सका

इसके बाद ब्रायर और वाडे ने शव की नाक में पानी डालकर हुक की मदद से दिमाग को घोल दिया, जो स्ट्रॉबेरी मिल्कशेक जैसा बहकर बाहर आया। यह प्राचीन विधि की भयानक लेकिन वास्तविक झलक थी। प्रयोग मई 1994 में शुरू हुआ। ब्रायर ने मिस्र की सूखी घाटियों से खुद नट्रॉन जुटाया। यह वही प्राकृतिक नमक-सोडा मिश्रण है जिसका उपयोग प्राचीन मिस्र में शव सुखाने के लिए होता था। इसका रंग सफेद पाउडर जैसा होता है।

उन्होंने सैकड़ों पाउंड नट्रॉन इकट्ठा किया और जब इसे न्यूयॉर्क के जेएफके एयरपोर्ट से ले जाना पड़ा, तो यह उनके लिए सबसे रोमांचक और तनाव भरा पल था। वे इस पाउडर को फिल्म क्रू के उपकरणों के बीच छिपाकर ले गए,क्योंकि दिखने में यह किसी रहस्यमय पाउडर जैसा लगता था। शव के फेफड़े, यकृत, तिल्ली और आंतें निकालकर कटोरों में नट्रॉन में डाली गईं। शरीर के भीतर 29 लिनन बैग भरे गए और शरीर को 211 पाउंड नट्रॉन पर रखा गया, ऊपर से 583 पाउंड और डाला गया।

Scientists – वाडे के पुराने ऑफिस में मिस्र जैसा शुष्क वातावरण बनाने के लिए तापमान 104°F रखा गया और लगातार डी-ह्यूमिडिफायर चलाए गए

लिनन का तात्पर्य एक पारंपरिक, मजबूत और महीन कपड़ा है, जो सन (फ्लैक्स) के रेशों से बनाया जाता है। प्राचीन मिस्र में इसका खास महत्व था। ममियों को लपेटने, धार्मिक वस्त्रों और शाही परिधानों में यही कपड़ा सबसे अधिक इस्तेमाल होता था।

पांच सप्ताह में रामेसेस जैसा चेहरा

पांच सप्ताह बाद नट्रॉन ऊपर से सख्त हो गया और उसे लोहे की छड़ से तोड़ना पड़ा। गंध तीखी थी, पर ब्रायर ने इसे अप्रिय नहीं बताया। शव की त्वचा सिकुड़कर चमड़े जैसी हो गई, होंठ पीछे चले गए, बाल खड़े दिखाई दिए बिल्कुल प्राचीन फिरौन रामेसेस की तरह। केवल पांच सप्ताह में ममीकरण की प्रक्रिया ने स्पष्ट कर दिया कि मिस्री ममियां अपनी आकृति समय के कारण नहीं, बल्कि तत्काल निर्जलीकरण के कारण पाती थीं।

Scientists – रामेसेस मिस्र का महान राजा थे, जिनकी ममी आज भी मशहूर है और सबसे ज्यादा पहचानी जाती है

वजन 188 पाउंड से घटकर 79 पाउंड रह गया जिसमें 31 पाउंड केवल अंगों का वजन था। नट्रॉन में रखे अंग सिकुड़कर इतने छोटे हो गए कि उन्हें पतली गर्दन वाले कनोपिक जार में डालना संभव हो गया। इस प्रयोग ने एक ऐसे सवाल का जवाब दे दिया, जिसका रहस्य पहले तक वैज्ञानिकों और इतिहासकारों को समझ नहीं आता था।विशेष रूप से प्राचीन मिस्र में शव से निकाले गए बड़े-बड़े अंग बहुत छोटे-मुंह वाले कनोपिक जार में कैसे समा जाते थे?यह बात लंबे समय तक रहस्य थी। लेकिन इस प्रयोग में देखा गया कि नट्रॉन में रखने से अंग काफी सिकुड़ जाते हैं और आसानी से छोटे जार में फिट हो जाते हैं। यानी ममीकरण प्रक्रिया के दौरान अंग प्राकृतिक रूप से सिकुड़ते हैं। यह रहस्य इस प्रयोग से समझ में आ गया।

सुगंधित तेल, लिनन पट्टियां और महीनों की प्रतीक्षा

नट्रॉन से निकालने के बाद शव को कमल, देवदार और पाम के तेल से मालिश दी गई ताकि कठोरता कम हो। फिर हाथ-पैर की उंगलियों को अलग-अलग लपेटकर पूरा शरीर बांधा गया। लिंग को भी अलग से लपेटा गया। यह सूखकर छोटा हो गया था, इसलिए इसमें कठोर लिनन का कवर लगाया गया।शव अगले तीन महीने और सुखाया गया, वजन 51 पाउंड हो गया। बाद में पट्टियों के बीच ताबीज और मंत्र-लिखित पपीरस(प्राचीन मिस्री कागज) रखे गए, जैसे प्राचीन मिस्र में होता था।

यह ममी, जिसे ब्रायर-वाडे ने मिस्टर बाल्य नाम दिया, पिछले लगभग तीन दशकों से मैरीलैंड में एक धातु ताबूत में सुरक्षित है। दो बार खोलकर सड़न जांची गई, पर कुछ भी गलत नहीं मिला। ब्रायर ने कहा,ही इज डेड ऐंड वेल – Scientists

Scientists ने स्नैपर मछली पर भी आजमाया प्रयोग

लेखक सैम कीन ने मिस्री विशेषज्ञ सलिमा इकरम की सलाह पर स्नैपर मछली पर ममीकरण दोहराया।मुंह और शरीर को सफेद वाइन से साफ कर नट्रॉन से भर दिया गया। पहले दिन मछली से उबली मछली जैसी हल्की गंध आई, लेकिन सड़न नहीं। छह दिन बाद नट्रॉन में छोटे काले धब्बे दिखे, जिन्हें लेखक ने पहले कीड़ों या सड़े ऊतक के रूप में देखा, लेकिन निरीक्षण में मांस बिल्कुल ठीक निकला।कोई सड़न नहीं थी। 18 दिन में वजन आधा रह गया। कैस्टर, लेट्यूस और मिर्र तेल से मालिश के बाद लिनन में लपेटकर रखा गया।कई महीनों बाद भी मछली में खराबी नहीं आई।आंख और त्वचा जस की तस, कोई दुर्गंध नहीं। लेखक चकित हुए कि दुर्गंध के लिए बदनाम मछली भी पवित्र अवशेष जैसी बन गई।

आधुनिक युग के लिए सार्थक महत्व

लेखक के अनुसार प्राचीन ममीकरण की तकनीक समझना सिर्फ अतीत की जिज्ञासा नहीं, बल्कि मानव शरीर संरक्षण विज्ञान की महत्वपूर्ण दिशा है। आज भी युद्ध, आपदा, अत्यंत कठिन मौसम और अंतरिक्ष अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में दीर्घकालिक शरीर संरक्षण की आवश्यकता होती है। मिस्री-स्तर का जलरोधन और ऊतक-सुरक्षा दिखाती है कि प्राकृतिक खनिजों और बिना आधुनिक रसायनों के भी सूक्ष्मजीव-रोधी, तापअनुकूल और दीर्घस्थायी संरचना बनाई जा सकती है।

यह ज्ञान बायोकंजर्वेशन, फॉरेंसिक साइंस, मेडिकल टिश्यू प्रिजर्वेशन और हिस्टोरिकल बायो आर्काइव्स में नई तकनीकें विकसित करने के लिए आधार बन सकता है। यानी एक ऐसी प्रयोगशाला का दरवाजा प्राचीन मिस्र खोल रहा है, जिसका उद्देश्य आधुनिक वैज्ञानिक लाभ हैं। इसके अतिरिक्त, यह प्रयोग सांस्कृतिक-मानविकी और ऐतिहासिक सत्यापन शोध में भी मील का पत्थर है। अक्सर पुरातत्व में हजारों वर्ष पुराने शवों, कंकालों और दफन वस्तुओं की संरचना पर सिर्फ अनुमान लगाया जाता था। अब हमारे पास वास्तविक जैव-रासायनिक डेटा है कि त्वचा कैसे सख्त होती है, अंग कितने सिकुड़ते हैं और संरक्षित अवशेष किस तरह दीर्घकालिक स्थिरता बनाए रखते हैं।

इससे संग्रहालय संरक्षण तकनीक, विरासत प्रबंधन और वैज्ञानिक-नैतिक बहसों (जैसे मानव अवशेषों के सम्मानजनक संरक्षण) में भी दिशा मिलती है। प्राचीन प्रक्रिया को समझकर हम भविष्य के संरक्षण-विज्ञान को और अधिक मानव-सम्मत, टिकाऊ और वैज्ञानिक दृष्टि से सक्षम बना सकते हैं।

रोमांचक और हैरतअंगेज

विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रयोग ने सिद्ध किया कि प्राचीन मिस्रवासी वैज्ञानिक समझ और धार्मिक विश्वास का अद्भुत मिश्रण रखते थे। नट्रॉन, गर्मी और सटीक प्रक्रिया ने हजारों वर्षों तक शव को संरक्षित रखने का रहस्य उजागर करता है। इतिहास की प्रयोगशाला से निकला यह परिणाम आज भी रोमांचक और हैरतअंगेज है।

Scientists

डॉ. संजय पांडेय

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