Space Debris : भारत ने दुनिया को अंतरिक्ष से रॉकेट मलबा हटाना सिखाया
Space Debris: लगभग 1500 सैटेलाइट अगले 3 साल में और लॉन्च होंगे
Space Debris : पृथ्वी के चक्कर लगा रहे हैं दस लाख से ज़्यादा मलबे के टुकड़े
डॉ. संजय पांडेय
नई दिल्ली। Space Debris : वैज्ञानिकों के अनुसार धरती पर कचरे के बाद अब अगली सबसे बड़ी समस्या Space में कचरे/ Space Debris की है और यह तेजी से बढ़ती जा रही है। पृथ्वी की कक्षा में इंसान की बनाई हुई बहुत सी चीजें जैसे कृत्रिम उपग्रह, रॉकेट्स, यान आदि जो अब काम करना बंद कर चुके हैं, अंतरिक्ष में ही घूम रहे हैं।
अलग-अलग देशों ने Space में भारी मात्रा में मलबा जमा कर दिया है, जो भविष्य के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। यह बात चर्चा में इसलिए है कि भारत ने दुनिया को सिखाया है कि रॉकेट मलबा हटाया जा सकता है। भारतीय वैज्ञानिकों ने पीएसएलवी सी-56 रॉकेट के प्रक्षेपण की सफलता के बाद पूरी दुनिया को सिखाया कि अंतरिक्ष में बड़ी समस्या बन रहे रॉकेट मलबे को घटा सकते हैं।
इस रॉकेट के जरिए उपग्रहों को Space में करीब 535 किलोमीटर ऊंचाई पर सफलता पूर्वक स्थापित कर रॉकेट के बचे हुए हिस्से को वापस पृथ्वी की ओर 300 किलोमीटर ऊंची कक्षा में लाया गया। अब यह अगले दो महीने में पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर के नष्ट हो जाएगा। ऐसा न करते तो रॉकेट का मलबा कई दशकों तक अंतरिक्ष में चक्कर लगाता रहता। इससे अंतरिक्ष में मलबा घटेगा और उपग्रहों व मिशन को नुकसान की आशंका भी कम होगी।
Space में फैला मलबा

ऐसे कृत्रिम उपग्रह जिनका समय पूरा हो चुका है या वे अब काम करना बंद कर चुके हैं और अंतरिक्ष में बेमतलब घूम रहे हैं। रॉकेट स्टेज जो Space में पहुंचकर उपग्रह लॉन्च करने के बाद वहीं रह गए। रॉकेट के आगे के कोन, पेलोड के कवर, बोल्ट्स और काफी हद तक भरे हुए फ्यूल टैंक, बैटरीज और लॉन्चिंग से जुड़े अन्य हार्डवेयर आदि। इस कचरे में उल्कापिंडों के टुकड़े भी हैं। नासा के अनुसार अंतरिक्ष में इस समय 20 हजार से भी ज्यादा उपकरण कचरा बन चुके हैं और पृथ्वी की निचली कक्षा (लोअर आर्बिट) में चक्कर लगा रहे हैं।
किस देश का कितना मलबा
Space में इस समय रूस के 7032, अमेरिका के 5216, चीन के 3854, फ्रांस के 520, जापान के 117 और भारत के 114 सैटेलाइट्स और रॉकेट्स हैं। इनमें अधिकतर काम करना बंद कर चुके हैं। नासा के अनुसार करीब 8400 टन कचरा अंतरिक्ष में है, जिसमें अधिकतर 18 हजार से लेकर 28 हजार माइल्स प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की कक्षा में घूम रहे हैं। इन सभी के एक दूसरे से टकराने पर इनके और भी छोटे-छोटे टुकड़े हो गए हैं और यह सभी टुकड़े भी उसी रफ्तार से घूम रहे हैं। अंतरिक्ष में एक से 10 सेमी के बराबर करीब 5 लाख से भी ज्यादा टुकड़े या स्पेस जंक और 0.01 सेमी के बराबर अनगिनत टुकड़े धरती का चक्कर काट रहे हैं।
भारत से लगभग 20 गुना ज्यादा मलबा चीन का
अभी अंतरिक्ष में मलबे में इजाफा होना है, क्योंकि व्यावसायिक अंतरिक्ष उद्योग तेजी से बढ़ने वाला है। इन टुकड़ों में 42 प्रतिशत रूस के, 34 प्रतिशत अमेरिका के और बाकी अन्य देशों के हैं। भारत के मात्र 1.07 प्रतिशत टुकड़े हैं। कुल मिलाकर अंतरिक्ष में भारत के 206 टुकड़े हैं। नासा के मुताबिक भारत के 89 टुकड़े पेलोड और 117 टुकड़े रॉकेट के हैं।
भारत से लगभग 20 गुना ज्यादा मलबा चीन का है, उसके लगभग 3,987 टुकड़े अंतरिक्ष में घूम रहे हैं। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक अगर सभी चीजों को मिला लिया जाए तो अंतरिक्ष पर लगभग 5 लाख ऑब्जेक्ट मौजूद हैं, जो 0.11 सेमी से लेकर कई मीटर तक बड़े हो सकते हैं। नासा के ऑर्बिटल डिब्री प्रोग्राम ऑफिस के मुताबिक लगभग 21,000 बड़े ऑब्जेक्ट जो 10 सेमी से भी बड़े हैं इस समय पृथ्वी का चक्कर काट रहे हैं। अगर एक भी ऑब्जेक्ट गिरता है तो सोचिए कि जिस जगह यह गिरेगा वहां कितना विनाश हो सकता है।
क्यों बढ़ रहा है अंतरिक्ष मलबा

छोटे सैटेलाइट और क्यूबसैट्स के कारण अंतरिक्ष में लगातार मलबा बढ़ रहा है। क्यूबसैट एक खास तरह का स्पेस क्राफ्ट होता है। यह मिनिएचर सैटेलाइट 10 से 30 सेमी तक छोटे होते हैं और इनका 1.33 किलो प्रति यूनिट वजन होता है। ज्यादातर ये कमर्शियल ही होते हैं। नई तकनीक के कारण स्पेस मिशन की कीमत काफी कम हो गई है। ऐसे में प्राइवेट कंपनिया और कमर्शियल प्रोजेक्ट के लिए स्पेस सैटेलाइट मिशन शुरू किए जाने लगे हैं। लगभग 1500 सैटेलाइट अगले 3 साल में और लॉन्च किए जा सकते हैं।
10 सालों में अंतरिक्ष में 50 प्रतिशत कचरा बढ़ा
नासा के मुताबिक 10 सालों में अंतरिक्ष में 50 प्रतिशत मलबा बढ़ा है। सितंबर 2008 तक अंतरिक्ष में 12,851 टुकड़े मौजूद थे, जो नवंबर 2018 में 19,173 हो गए। अब संख्या 30 हजार टुकड़ों तक पहुंच गई है। अगर हर तरह के ऑब्जेक्ट्स को मिला दिया जाए तो यह संख्या 5 लाख से अधिक है।
अंतरिक्ष में कहां है सबसे भारी भीड़
उपग्रहों को उनके कार्यों के आधार पर पृथ्वी की निचली कक्षा, मध्यम कक्षा और उच्च कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है। पृथ्वी से लगभग 2 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित निचली कक्षा में सक्रिय और निष्क्रिय दोनों ही तरह के सैटेलाइट्स की भारी भीड़ है। निचली कक्षा में तेज रफ्तार से पृथ्वी का चक्कर लगाने वाले सैटेलाइट्स की भरमार है। कुछ तो केवल 90 मिनट में ही पृथ्वी का चक्कर लगा लेते हैं। ऐसे में एक छोटी-सी चीज भी इन सैटेलाइट्स को काफी नुकसान पहुंचा सकती है। सैटेलाइट्स या उनसे निकले टुकड़े भी लगभग 8 मीटर प्रति सेकेंड या 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से कक्षा में घूमते रहते हैं।
भीड़भाड़ वाली एक और जगह – क्लार्क बेल्ट
अंतरिक्ष में भीड़भाड़ वाली एक और जगह है, जिसे क्लार्क बेल्ट कहा जाता है। यह पृथ्वी से लगभग 35 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर है। भू-स्थैतिक उपग्रह और भू-समकालिक उपग्रह यहीं घूमते रहते हैं।क्लार्क बेल्ट वे कक्षा है जहां पर अगर कोई सैटेलाइट है तो वह पृथ्वी से हमेशा एक ही स्थान पर दिखाई देगा। प्रसिद्ध विद्वान आर्थर सी. क्लार्क के सम्मान में इस क्लार्क बेल्ट नाम दिया गया है। 1945 में इन्होंने कम्युनिकेशन सैटेलाइट की अवधारणा पेश की थी।
यह है इस कचरे के खतरनाक होने की वजह
एक बड़े सैटेलाइट को नुकसान पहुंचाने के लिए एक छोटे से टुकड़े की रफ्तार काफी है। कोई भी टुकड़ा किसी भी सैटेलाइट से टकराकर उसे खराब कर सकता है। इस तरह सैटेलाइट्स के लिए वातावरण असुरक्षित होता जा रहा है, क्योंकि बहुत से सैटेलाइट्स उसी कक्षा में स्थापित किए जाते हैं। तैरता हुआ अंतरिक्ष मलबा ऑपरेशनल सैटेलाइट्स के लिए संभावित खतरा है, क्योंकि इनसे टकराने पर सैटेलाइट नष्ट हो सकते हैं। अंतरिक्ष में इस समय केसलर सिंड्रोम की स्थिति बन गई है।
केसलर सिंड्रोम अंतरिक्ष में वस्तुओं और मलबे की अत्यधिक मात्रा संदर्भित करता है।अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के अनुसार अंतरिक्ष में घूम रहा कचरा आपस में टकराकर एक रिएक्शन कर रहा है, जिससे धरती के कम्युनिकेशन सिस्टम पर खराब असर पड़ सकता है। मलबे की वजह से सबसे ज्यादा जोखिम वाला स्थान पृथ्वी से 410 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन है। अगर कोई बड़ा टुकरा पूरी तरह नष्ट हुए बिना हमारे वायुमंडल में आ जाए तो विनाशक हो सकता है।
अमेरिकी सर्वेलेंस नेटवर्क अनुमान लगाया है कि केसलर सिंड्रोम के तहत अगर अंतरिक्ष में सैटेलाइट टकराने लगे तो मोबाइल, टीवी और दूसरे गैजेट्स काम करना बंद कर देंगे। मौसम का पूर्वानुमान भी नहीं लगाया जा सकेगा। इसके अलावा डिफेंस ऑपरेशन्स भी प्रभावित होंगे।
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