POK को एक दबाया हुआ विस्फोटक क्षेत्र बना
जीवन स्तर: पाकिस्तान में सबसे नीचे है POK की स्थिति
डॉ. संजय पांडेय
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) को लेकर पाकिस्तान लंबे समय से यह दावा करता रहा है कि वहां के लोग खुशहाल हैं और पाकिस्तान से प्रेम करते हैं। लेकिन इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप और एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार जमीनी हकीकत इससे ठीक उलट है। भोजन की किल्लत, बिजली की अनुपलब्धता, रोजगार का संकट, स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव और सैन्य दमन इन सभी ने मिलकर पीओके को एक दबाया हुआ विस्फोटक क्षेत्र बना दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार POK में खाद्य संकट सबसे गंभीर स्थिति में पहुंच चुका है। मुजफ्फराबाद, गिलोत, रावलकोट, मीरपुर, कोटली और हाजीरा जैसे इलाकों में खासतौर से अर्धशहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की ओर से जो सब्सिडी वाला आटा पहले दिया जाता था, वह महीनों से नहीं मिला है।
POK – शहरी इलाकों में भी स्थिति दयनीय
स्थानीय लोगों के अनुसार जब कभी यह आटा आता भी है तो वह 30-35 रुपए प्रति किलो के बजाय 100 से 120 रुपए किलो तक बिकता है। इससे गरीबों की थाली से रोटी ही गायब हो गई है। विश्व खाद्य कार्यक्रम ( डब्ल्यूएफपी ) की 2025 की निगरानी रिपोर्ट के मुताबिक POK के ग्रामीण इलाकों में 30% से ज्यादा परिवार ऐसे हैं जिन्हें दिन में एक वक्त का भोजन भी नसीब नहीं हो रहा है। सिर्फ गेहूं ही नहीं, दूध, दाल, सब्जियां और अन्य बुनियादी चीजें भी यहां दुर्लभ हो चुकी हैं।
थोक बाजारों में इनकी कीमतें पाकिस्तान के अन्य हिस्सों से लगभग डेढ़ गुना तक बढ़ चुकी हैं। इसका एक बड़ा कारण यह है कि पीओके की आपूर्ति शृंखला पर सेना का पूरा नियंत्रण है और स्थानीय नागरिकों को हाशिए पर धकेल दिया गया है। नीलम-झेलम जलविद्युत परियोजना पीओके के भीतर स्थित है और इससे पाकिस्तान को लगभग 970 मेगावाट बिजली मिलती है।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि जिस जमीन से यह बिजली पैदा हो रही है, वहीं के लोगों को 14 से 16 घंटे की बिजली कटौती झेलनी पड़ रही है। कभी-कभी तो तीन से चार दिन तक लगातार बिजली गुल रहती है। गर्मियों में जब तापमान 40 डिग्री के पार चला जाता है तो बिना बिजली के पंखा तक चलाना कठिन हो जाता है। फ्रिज, कूलर, मोबाइल चार्जिंग जैसी बुनियादी सुविधाएं आम आदमी की पहुंच से बाहर हो चुकी हैं।
मुजफ्फराबाद की एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था वॉइस का नीलम के अनुसार, हम अपनी जमीन और नदियों से बिजली बना रहे हैं, लेकिन वह कराची और लाहौर जा रही है। हमें क्या मिला? सिर्फ अंधेरा।
POK – जहां बीमारी और अज्ञानता साथ-साथ पलते हैं बच्चे
स्वास्थ्य सेवाओं की हालत POK में बेहद चिंताजनक है। पूरे मुजफ्फराबाद जिले के लिए सरकारी अस्पताल में मात्र तीन विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध हैं। यहां तक कि बेसिक मेडिकल जांच के लिए भी सैंपल रावलपिंडी भेजे जाते हैं, जिससे रिपोर्ट आने में लंबा वक्त लगता है और आमतौर पर हमेशा ही मरीज की हालत गंभीर हो जाती है। त
पेदिक (टीबी), कुपोषण और प्रसव के दौरान जटिलताओं से होने वाली मौतें यहां सामान्य हो चुकी हैं। दूसरी ओर शिक्षा व्यवस्था भी बदहाल है। कई सरकारी स्कूलों की इमारतें पाकिस्तान सेना की बैरकों में तब्दील हो चुकी हैं। जहां बच्चों को किताबें और शिक्षक मिलने चाहिए थे, वहां अब बंदूकें और सैनिकों की चहल-पहल है। छात्रों को यदि वे सरकार या सेना के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो उन्हें राष्ट्र विरोधी घोषित कर हिरासत में लिया जाता है और इसके बाद उन्हें गायब कर दिया जाता है।
POK – युवाओं की पीढ़ी बेरोजगारी में खो रही है
रोजगार की स्थिति भी बड़ी भयावह है। पाकिस्तान के इस्लामाबाद स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स के आंकड़ों के अनुसार पीओके में बेरोजगारी दर 32% से अधिक है। हालांकि स्थानीय युवाओं का कहना है कि बेरोजगारी की दर की बात करना हास्यास्पद है, क्योंकि यहां के 90 फीसदी युवाओं के पास कोई रोजगार नहीं है। रोजगार के सीमित अवसरों में सेना और पुलिस की नौकरियां ही प्रमुख हैं।वह भी सिर्फ उन्हीं को मिलती हैं जो क्षेत्र, जाति और राजनीतिक निष्ठा के आधार पर योग्य माने जाते हैं। स्थानीय व्यापार और ठेकों पर भी सेना के रिटायर्ड अफसरों और आईएसपीआर नेटवर्क का नियंत्रण है।
आम कश्मीरी युवक हताश और नाराज हो चुका है। उसके पास न आज की रोटी है, न कल का सपना।

जीवन स्तर: पाकिस्तान में सबसे नीचे है POK की स्थिति
संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में पाकिस्तान का औसत स्कोर 0.544 है, जबकि POKका अनुमानित स्कोर केवल 0.38 से 0.41 के बीच है। इसकी तुलना में भारत के जम्मू-कश्मीर का एचडीआई स्कोर 0.68 है, जो यह दर्शाता है कि दोनों तरफ के कश्मीर की जिंदगी और अवसरों में जमीन-आसमान का फर्क है।
इन आंकड़ों का सीधा मतलब है कि पीओके के लोगों की जिंदगी में गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और बदहाली ज्यादा है, जबकि भारत के जम्मू-कश्मीर में रहने वाले लोग जीवन के हर क्षेत्र में उनसे कहीं आगे हैं।दोनों तरफ के कश्मीरियों के जीवन स्तर में जमीन-आसमान का फर्क है।
POK में रहने वाले नागरिकों के लिए बुनियादी सुविधाएं भी अब किसी सपने से कम नहीं हैं। सड़कें टूटी हुई हैं, जल आपूर्ति सीमित है और सरकारी प्रशासन नाममात्र का है।
उबाल क्यों है, विद्रोह की जड़ें कहां हैं?
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार POK के लोग जिस विद्रोह की ओर बढ़ रहे हैं वह किसी साजिश की उपज नहीं, बल्कि निरंतर उपेक्षा और दमन की प्रतिक्रिया है। जब पेट में रोटी नहीं, घर में बिजली नहीं, अस्पताल में दवा नहीं, स्कूल में शिक्षक नहीं और दिल में सम्मान नहीं तो लोग आवाज उठाते हैं। वहां के लोगों का कहना है कि उन्हें बार-बार ‘हम पाकिस्तान से प्रेम करते हैं’ यह बोलने के लिए मजबूर किया जाता है, लेकिन उनके जीवन में पाकिस्तान की ओर से केवल दमन ही मिला है।
मीरपुर के एक नागरिक मोहम्मद रफीक ने कहा, हमें रोटी नहीं, बंदूक दिखाई जा रही है। अब अगर हम चुप रहें तो मरेंगे और बोलें तो भी शायद मरेंगे, लेकिन हिम्मत जुटाने से हो सकता है जिंदगी का रास्ता मिल जाए।
जिंदगी नहीं, बस जिंदा रहने की जद्दोजहद
रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान के कब्जे में रहते हुए POK के लोगों को ना सिर्फ उनकी जमीन से बेदखल किया जा रहा है बल्कि उनकी अस्मिता, स्वतंत्रता और मूलभूत मानवाधिकारों को भी रौंदा जा रहा है। इसलिए वहां भड़क रहा विद्रोह कोई राजनीतिक साजिश नहीं, एक कुचले हुए, भूखे,अंधेरे में जी रहे और असहाय समाज की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। यह उस ‘अमन’ का नकली पर्दा फाड़ चुका है जिसे पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ओढ़ रखा था। अब POK के लोग यह जान चुके हैं कि वे पाकिस्तान के नागरिक नहीं, केवल संसाधन हैं जिन्हें जब चाहे छीना जा सकता है।
दुनिया क्यों चुप है
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएन एचआरसी ) और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह मांग की है कि वे पाकिस्तान पर दबाव बनाएं कि POK में जमीन अधिग्रहण, गैरकानूनी हिरासत और मानवाधिकार उल्लंघनों की स्वतंत्र जांच कराई जाए। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि पाकिस्तान में मीडिया की सेंसरशिप और सेना के दबाव के कारण इन घटनाओं की आवाज बाहर नहीं आ पा रही है।
एमनेस्टी ने चेतावनी दी है कि यदि यह दमन यूं ही चलता रहा, तो POK में मानवीय संकट विकराल रूप ले सकता है।
मानवाधिकारों का संस्थागत हनन
द फॉरगॉटेन कश्मीर रिपोर्ट में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने स्पष्ट कहा है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सेना के नियंत्रण में आम नागरिकों के लिए कोई न्यायिक रास्ता उपलब्ध नहीं है।रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि 2022 से 2025 के बीच POK में करीब 600 से अधिक परिवारों को उनकी जमीनों से बेदखल किया गया, जिनमें से अधिकांश को ना मुआवजा मिला, ना कानूनी मदद। जो आवाज उठाते हैं उन्हें या तो गायब कर दिया जाता है, या राष्ट्रविरोधी का टैग लगाकर जेल में डाल दिया जाता है। जो गायब हो जाते हैं वह फिर कभी घर नहीं लौटते।
