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Reading: 93% जिला न्यायालयों में शौचालय महिलाओं के अनुकूल नहीं, कहीं पानी नहीं, कहीं दरवाजे नहीं: रिपोर्ट
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Telescope Times > Blog > Trending News > National > 93% जिला न्यायालयों में शौचालय महिलाओं के अनुकूल नहीं, कहीं पानी नहीं, कहीं दरवाजे नहीं: रिपोर्ट
Less than seven percent of the country's district courts have women-friendly toilets
National

93% जिला न्यायालयों में शौचालय महिलाओं के अनुकूल नहीं, कहीं पानी नहीं, कहीं दरवाजे नहीं: रिपोर्ट

The Telescope Times
Last updated: May 4, 2024 11:49 pm
The Telescope Times Published January 8, 2024
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Less than seven percent of the country's district courts have women-friendly toilets
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सुप्रीम कोर्ट के सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग द्वारा प्रकाशित एक नई रिपोर्ट में जिला अदालत परिसरों में महिला शौचालयों की व्यवस्था करने को कहा गया है

Contents
“स्टेट ऑफ द जुडिशरी: रिपोर्ट ऑन इंफ्रास्ट्रक्चर, बजटिंग, ह्यूमन रिसोर्सेज एंड आईसीटी”19.7 फीसदी जिला न्यायालयों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था नहींमहिला शौचालयों की संख्या पुरुष शौचालयों की तुलना में काफी कमदेश की अधिकांश जिला अदालतों में थर्ड जेंडर के लिए नहीं अलग शौचालय

“स्टेट ऑफ द जुडिशरी: रिपोर्ट ऑन इंफ्रास्ट्रक्चर, बजटिंग, ह्यूमन रिसोर्सेज एंड आईसीटी”
19.7 फीसदी जिला न्यायालयों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं

सुप्रीम कोर्ट के सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग द्वारा प्रकाशित एक नई रिपोर्ट “स्टेट ऑफ द जुडिशरी: रिपोर्ट ऑन इंफ्रास्ट्रक्चर, बजटिंग, ह्यूमन रिसोर्सेज एंड आईसीटी” में कहा गया है कि देश के केवल 6.7 फीसदी जिला न्यायालय परिसरों में मौजूद शौचालय ही महिलाओं के अनुकूल हैं, जबकि देश के 19.7 फीसदी जिला न्यायालयों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है।

हालांकि देश के 80 फीसदी जिला अदालत परिसरों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था है, लेकिन 73.4 फीसदी जिला अदालतों के शौचालयों में सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। स्वच्छता और स्वास्थ्य अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए महिला शौचालयों में सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनें उपलब्ध होनी चाहिए। साथ ही इनमें मासिक धर्म अपशिष्ट निपटान की पर्याप्त व्यवस्था का होना भी बेहद जरूरी है।

“महाराष्ट्र के जिला अदालतों में तो केवल 18 सैनिटरी नैपकिन डिस्पेंसर मशीनें उपलब्ध हैं। वहीं 19.9 फीसदी जिला अदालतों में सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनों की उपलब्धता पर आंकड़े मौजूद नहीं”

महिला शौचालयों की संख्या पुरुष शौचालयों की तुलना में काफी कम

अदालत परिसरों में महिला शौचालयों की संख्या पुरुष शौचालयों की तुलना में काफी कम है। जिला न्यायालय परिसर पुरुष और महिला वकीलों के साथ आम लोगों के लिए सामान्य शौचालय की सुविधा प्रदान करते हैं। वहीं करीब 20 फीसदी जिला न्यायालय परिसरों में महिलाओं के लिए अलग शौचालयों की व्यवस्था नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित समारोह के अवसर पर एक सभा को संबोधित करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश, डॉक्टर न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने मौजूदा स्थिति को स्वीकार करते हुए कहा था कि, “मुझे बताया गया है कि महिला जिला न्यायाधीशों के पास शौचालय सुविधाओं का अभाव है। वे सुबह आठ बजे घर से निकल जाती हैं और शाम छह बजे घर लौटने पर ही इसका उपयोग कर पाती हैं। कुछ मामलों में, शौचालय अदालत कक्ष से दूर होते हैं, इसलिए जब न्यायाधीश को शौचालय जाना होता है, तो उन्हें वहां बैठे विचाराधीन कैदियों के पास से गुजरना पड़ता है, जो एक न्यायाधीश के लिए बेहद शर्मनाक है।”

स्वच्छ शौचालय की सुविधा एक बुनियादी मानव अधिकार है, रिपोर्ट में कहा गया है कि जिला स्तर पर 88 फीसदी अदालत परिसरों में पुरुषों के लिए शौचालय की सुविधा उपलब्ध है। वहीं 11.6 फीसदी परिसरों में इनका आभाव है, जबकि 0.4 फीसदी जिला अदालतों के बारे में आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

वहीं आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने तो उच्च न्यायालय परिसरों में शौचालयों की मौजूदा संख्या को तीन गुणा तक बढ़ाने की आवश्यकता व्यक्त की थी। इसी तरह 12 उच्च न्यायालयों ने जिला अदालत परिसरों में न्यायाधीशों, कर्मचारियों, वकीलों और वादियों के लिए शौचालयों की महत्वपूर्ण कमी को लेकर अवगत कराया है। जिला स्तर पर, अदालत परिसरों में न केवल पर्याप्त शौचालयों का आभाव है, बल्कि साथ ही ऐसे शौचालय भी हैं, जो महज नाम के लिए हैं। इनमें से कुछ काम नहीं कर रहे, दरवाजे टूटे हुए हैं और कुछ में पानी की आपूर्ति नहीं है।

देश की अधिकांश जिला अदालतों में थर्ड जेंडर के लिए नहीं अलग शौचालय

रिपोर्ट में नागालैंड के पेरेन जिले का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि वहां शौचालयों के रखरखाव की कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे कार्यालय के कर्मचारियों को ही सफाई की कमान संभालनी पड़ती है, जो एक चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है।

झारखंड के जिला न्यायालयों का विशेष रूप से जिक्र करते हुए रिपोर्ट में लिखा है कि नवनिर्मित न्यायालय भवनों में सशुल्क शौचालय भी उपलब्ध हैं, जो नियमित रखरखाव सुनिश्चित करते हैं। ऐसे में रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को नियमित रूप से अदालत परिसर में शौचालयों का निरीक्षण करना चाहिए, जिसमें सिस्टर्न, फ्लश सिस्टम और कमोड पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

थर्ड जेंडर के लिए अलग शौचालय एक ऐसा मुद्दा है जिसपर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता। इस बात को स्वीकार करते हुए रिपोर्ट में भी कहा गया है कि जिला अदालतों में आम तौर पर थर्ड जेंडर के लिए अलग शौचालय नहीं होते हैं। हालांकि इसके कुछ अपवाद भी मौजूद हैं।

उदाहरण के लिए केरल में दिव्यांगजनों के साथ थर्ड जेंडर के लिए साझा आधार पर शौचालय उपलब्ध हैं। वहीं उत्तराखंड की जिला अदालतों में थर्ड जेंडर के लिए चार शौचालय बनाए गए हैं। वहीं तमिलनाडु के केवल दो जिलों चेन्नई और कोयंबटूर में थर्ड जेंडर के लिए अलग शौचालय उपलब्ध हैं।

रिपोर्ट के अनुसार यह राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह थर्ड जेंडर की निजता के अधिकार की रक्षा करे और प्रत्येक जिला अदालत परिसर में लिंग समावेशी शौचालय प्रदान करके न्याय तक प्रभावी पहुंच सुनिश्चित करे। ताकि अदालत परिसर में बुनियादी सुविधाओं का उपयोग करते समय ट्रांसजेंडर वादियों, वकीलों या न्यायाधीशों के लिए एक आरामदायक और सुरक्षित वातावरण बनाया जा सके।

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