महाराष्ट्र सरकार से छूट मांगे, गुजरात सरकार ने 15 अगस्त, 2022 को 11 दोषियों को सजा में छूट दी थी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की 2-न्यायाधीशों की पीठ ने आज यानी 8 जनवरी को गुजरात सरकार के अगस्त 2022 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को छूट दी गई थी।
कोर्ट ने उनकी रिहाई के फैसले को रद कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषी महाराष्ट्र सरकार से छूट मांगे। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि औरतें सम्मान की हक़दार हैं।
2002 के गुजरात दंगों के दौरान जब बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया तब वह पांच महीने की गर्भवती थीं।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने मामले में 11 दिनों तक सुनवाई करने के बाद पिछले साल 12 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सजा में छूट को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें खुद बिलकिस की याचिका भी शामिल थी। इस मामले में कई याचिकाकर्ताओं में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता महुआ मोइत्रा, सीपीआई (एम) की सुभाषिनी अली भी शामिल हैं।
दोषियों की रिहाई से बड़े पैमाने पर आक्रोश फैल गया। जेल से उनकी छूट और रिहाई भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ के साथ हुई, और यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले से राष्ट्र को संबोधित करने के कुछ घंटों बाद आई।
पीठ ने सभी 11 दोषियों को जेल लौटने और महाराष्ट्र सरकार से नई सजा माफी की मांग करने का निर्देश दिया है।
2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था। मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की गई थी और मुकदमा गुजरात से महाराष्ट्र स्थानांतरित कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का नियम है कि गुजरात सरकार दोषियों को सजा में छूट देने में सक्षम नहीं है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना कहते हैं, “यह उस राज्य की सरकार नहीं है जहां अपराध हुआ है या अपराधियों को कैद किया गया है, जो छूट के लिए उपयुक्त सरकार है, बल्कि उस राज्य की सरकार है जहां सजा हुई थी।”
दोषियों को 2008 में मुंबई (महाराष्ट्र) की एक ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
बिलकिस ने दोषियों की सजा माफी को चुनौती देने वाली याचिका दी जिस पर फैसला हुआ कि यह सुनवाई योग्य है। फिर एक बेंच गठित की गई और सुनवाई हुई।
अदालत ने उठाये सवाल
राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने 1992 की छूट नीति के अनुसार दोषियों को राहत दी। हालाँकि, 2014 में नीति 2014 में एक कानून द्वारा बनाई गई थी जो मृत्युदंड अपराध के मामलों में रिहाई को रोकती है।
इस पर एएसजी ने कहा, दोषियों को 1992 की नीति के तहत माना गया क्योंकि उन्हें 2008 में दोषी ठहराया गया था।
“उनकी मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था। ऐसी स्थिति में 14 साल की सजा के बाद उन्हें कैसे रिहा किया जा सकता था? अन्य कैदियों को रिहाई की राहत क्यों नहीं दी गई?” अदालत ने राज्य से पूछा।
वह 21 साल की थी और पांच महीने की गर्भवती थी और अपने परिवार के साथ 27 फरवरी, 2002 को राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों के डर से भाग रही थी। उनकी बेटी, जो तीन साल की थी, भीड़ द्वारा मारे गए सात पारिवारिक सदस्यों में से एक थी।