HMPV भारत में चीन के पहले से ही सक्रिय
जालंधर /नई दिल्ली /गोरखपुर
HMPV ह्यूमन मेटा न्यूमोवायरस आजकल हरतरफ चर्चा का विषय है। सबसे ज्यादा चिंता में हैं स्टूडेंट्स। बोर्ड जो सर पर हैं। इसके बढ़ते प्रसार प्रचार के बीच चिंताएं तो हैं ही लेकिन एक अच्छी खबर सामने आई है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने कहा है कि फरवरी तक HMPVएचएमपीवी का फैलना लगभग समाप्त हो जाएगा। इसको लेकर एक रिसर्च भी की गई। इस अध्ययन में पाया गया कि बहुत कम लोग हैं खासकर बच्चे जो इससे प्रभावित हैं। एक अस्पताल में सांस की दिक्क्तों को लेकर भर्ती बच्चों पर किए गए निरीक्षण में पता चला कि केवल 1.4 प्रतिशत बच्चे ही एचएमपीवी से प्रभावित थे।
इस अध्ययन से यह भी स्पष्ट हो गया है कि भारत में चीन के पहले से ही एचएमपीवी सक्रिय है।
अभी ह्यूमन मेटा न्यूमोवायरस (एचएमपीवी) को लेकर दुनिया भर में गहमा-गहमी बढ़ गई है। मामला तब सामने आया जब चीन में इसके सबसे अधिक मामले सामने आने लगे। हालांकि भारत में भी इसके कुछ मामले दर्ज किए गए हैं, जो ज्यादातर बच्चों में पाए गए हैं।
वहीं आइसीएमआर की अगुवाई में किए गए एक शोध में कहा गया है कि इस वायरस से घबराने की जरूरत नहीं है। शोध के मुताबिक, फरवरी के बाद इसके प्रभाव में धीरे-धीरे कमी आने की बात कही गई है।
दूसरी तरफ सांस नली के संक्रमण तथा इससे जुड़े अलग-अलग तरह के वायरसों और इसके प्रभाव को लेकर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने मई 2022 से दिसंबर 2024 तक बाबा राघव दास मेडिकल कालेज गोरखपुर के बाल रोग विभाग में शोध किया।
एमडीपीआई ओपन-एक्सेस वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित शोध में एक महीने से पांच साल तक के 943 बच्चे शामिल थे। इसमें पाया गया कि 1.4 प्रतिशत बच्चों में श्वसन तंत्र में संक्रमण का कारण एचएमपीवी था, जबकि बाकी बच्चों में दूसरे वायरस होने की बात पता चली।
कौन-कौन से वायरस मिले?
शोध के मुताबिक, परीक्षण किए गए 943 नमूनों में से, पैराइन्फ्लुएंजा वायरस [105 (11.13 फीसदी) पीआईवी-1 (79), पीआईवी-2 (18), पीआईवी-4 (18)] के लिए सबसे अधिक मामले पाए गए।
इसके बाद एडेनोवायरस [82 (8.7 फीसदी ), आरएसवी-बी, [68 (7.21 फीसदी)], इन्फ्लूएंजा-ए [46(4.9 फीसदी), एच1एन 1 = 29, एच3एन2 = 14), सार्स सीओवी-2 [28 (तीन फीसदी], एचएमपीवी [13(1.4 फीसदी), आरइसवी-ए [4 (0.42 फीसदी) और इन्फ्लूएंजा-बी (विक्टोरिया वंश) 1 (0.10 फीसदी) शामिल थे।
शोध में कहा गया है कि श्वसन तंत्र की समस्या से जुड़ा यह वायरस पांच साल या उससे कम उम्र के बच्चों, कमजोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता वाले बच्चों और गंभीर रोग से पीड़ित लोगों को आसानी से अपनी चपेट में ले लेता है।
शोध के मुताबिक, संक्रमित बच्चों में बहुत कम को ही गंभीर श्वसन तंत्र की समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिसे आक्सीजन थेरेपी, उचित आहार और लक्षण के आधार पर इलाज करने से इस पर लगाम लगाई जा सकती है।
HMPV सामान्य वायरस, ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं
शोध के मुताबिक, एचएमपीवी वायरस सर्दी के मौसम में अधिक सक्रिय हो जाता है तथा इसका अधिक असर देखने को मिल सकता है। जबकि तापमान में बढ़ोतरी होने पर फरवरी से लेकर मार्च तक इसका असर धीरे-धीरे कम होने लगता है। शोध में कहा गया है कि यह एक सामान्य वायरस है, जिससे बहुत ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है।
साथ ही सुझाव देते हुए कहा गया है कि अगर किसी में एचएमपीवी का परीक्षण पॉजिटिव पाया जाता है तो सतर्कता बरती जानी चाहिए और इलाज के लिए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
अगर घर में कोई सदस्य एचएमपीवी वायरस से संक्रमित है तो मास्क उपयोग में लाया जाना चाहिए और साफ-सफाई का ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना चहिए।। संक्रामक श्वसन संक्रमण स्वास्थ्य के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बने हुए हैं, क्योंकि इसके कारण मनुष्य के श्वसन तंत्र पर बुरा असर पड़ता है। इसकी चपेट में सभी आयु वर्ग के लोग आ सकते हैं, खासकर छोटे बच्चों पर सबसे अधिक असर देखा जा सकता है। बच्चों में संक्रामक श्वसन संक्रमण के कारण निमोनिया हो सकता हैं।
इन संक्रामक रोगजनकों की भूमिकाओं को समझना काफी कठिनाई भरा काम है, क्योंकि इनमें कई तरह के वायरस शामिल हैं। जिसमें इन्फ्लूएंजा वायरस ए (फ्लू-ए), इन्फ्लूएंजा वायरस बी (फ्लू-बी), श्वसन सिंकिटियल वायरस (आरएसवी), पैराइन्फ्लुएंजा वायरस (पीआईवी), ह्यूमन मेटा न्यूमोवायरस (एचएमपीवी), ह्यूमन राइनोवायरस (एचआरवी) और ह्यूमन एडेनोवायरस (एचएडीवी) शामिल हैं। INPUT-DOWN TO EARTH