प्रगतिशील लेखक संघ लखनऊ इकाई द्वारा कैफ़ी आज़मी एकेडमी में आयोजन
लखनऊ। मुक्तिबोध/ MUKTIBODH की 107वीं जयंती पर प्रगतिशील लेखक संघ लखनऊ इकाई द्वारा कैफ़ी आज़मी एकेडमी में ” समय- समाज की चुनौतियां और मुक्तिबोध” नाम से परिसंवाद का आयोजन किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना जी ने की। वक्ताओं में फैजाबाद से वरिष्ठ आलोचक और कवि रघुवंश मणि, बनारस से वंदना चौबे और लखनऊ से सूरज बहादुर थापा जी ने भागीदारी की। कार्यक्रम का संचालन इरा श्रीवास्तव और धन्यवाद ज्ञापन रीता चौधरी जी ने पेश किया।
अपने वक्तव्य में रघुवंश मणि ने मुक्तिबोध की “मैं शैली” को समझने पर बल दिया। साथ ही बताया कि मुक्तिबोध का कवि के साथ साथ एक आलोचक के रूप में भी महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि उन्होंने आलोचना को कई बीज शब्द दिए।
वंदना चौबे ने उनके राजनीतिक लेखन और उनके कार्यकर्ता स्वरूप को सामने रखा और उनकी कविता को समझने के लिए उनके इस रूप को समझना जरूरी बताया। उन्होंने बेस और सुपर स्ट्रक्चर में बेस के रूप में काम कर रहे अर्थ तंत्र को समझने का आग्रह किया और उनकी कहानियों पर भी चर्चा की।
प्रेमचंद के प्रभाव पर बात रखी
प्रोफेसर सूरज बहादुर थापा ने मुक्तिबोध पर मराठी कवि हरि नारायण आप्टे और प्रेमचंद के प्रभाव पर बात रखी जिन्हें उनकी मां ने उन तक पहुंचाया और जिन्हें पढ़ समझ कर ही उनके भीतर एक क्रांतिकारी और विद्रोही मुक्ति बोध का निर्माण हुआ जिसने मुखर हो कर सत्ता में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखा।
अपने अध्यक्षीय भाषण में ख्यात वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने मुक्तिबोध को समझने के लिए उनके काव्य के लयात्मक पक्ष को समझने पर बल दिया और उनकी कुछ कविताओं की लय और ताल की व्याख्या करके सुर में उन्हें जब सुनाया तो लोग मंत्रमुग्ध हो गए।
कार्यक्रम में लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा, चंडीगढ़ से आए कुलदीप सिंह दीप, रंगकर्मी राकेश वेदा, दीपक कबीर, प्रदीप घोष, नलिन रंजन, ऊषा राय, अनूप मणि त्रिपाठी, अनिल कुमार श्रीवास्तव, फरज़ाना मेंहदी, आशीष सिंह सहित बड़ी संख्या में शहर के बुद्धिजीवियों, विद्यार्थियों और शोधार्थियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की।