भाजपा ने एक साथ कई निशाने साधे
जालंधर । कुश्ती महासंघ में लंबे समय से जारी विवाद के बीच खेल मंत्रालय ने रविवार को न सिर्फ WFI की मान्यता रद्द की, बल्कि संघ के नवनियुक्त अध्यक्ष संजय सिंह को भी सस्पेंड कर दिया।
कई दिनों से केंद्र, महासंघ और खिलाडियों के बीच कुछ न कुछ रोज़ हो रहा है।
इस सभी घटनाक्रम पर नज़र रख रहे सियासी जानकारों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी ने कुश्ती संघ को निलंबित कर मामले की गंभीरता को देखकर एक साथ कई निशाने साधे हैं।
बता दें कि संजय सिंह को बृजभूषण शरण सिंह का करीबी माना जाता है। ऐसे में उनकी जीत के बाद पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती छोड़ने का ऐलान कर दिया था, जबकि बजरंग पुनिया ने सरकार को अपना पद्मश्री अवार्ड लौटा दिया था।
अब सारे घटनाक्रम को देखें। संजय का जीतना, मलिक का कुश्ती त्यागना, पुनिया का सरकार को इनाम वापस करना और अचानक सरकार का रुख। इस रुख से भाजपा ने चार राज्यों की तकरीबन 40 लोकसभा सीटें साधने की कोशिश की है। साथ ही इतने ही राज्यों की तकरीबन 150 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर समीकरणों को बिठाने की सियासी कवायद भी तेज कर दी है।
सबसे पहले उन्हें अगले साल के चुनाव दिख रहे हैं। सरकार की जो किरकिरी हो रही थी, उससे बचने की कोशिश भी है। कुश्ती संघ को निलंबित करना मतलब सीटें बचाने का लालच भी साफ़ दिख रहा है।
एक्सपर्ट की मानें तो बीजेपी ने यह निश्चित तौर पर जाटों को साधने की सियासत का एक बड़ा दांव खेला है। देश भर में जाट बहुत हैं। उनकी नाराजगी और ख़ुशी दोनों अगले इलेक्शन में रंग दिखा सकती हैं।
बड़ी संख्या में जनता मानती है कि हरियाणा के विधानसभा चुनावों में जाटों को इग्नोर करना बड़ी भूल हो सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक आरएस तंवर कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में जाट वोट खासी अहमियत रखते हैं। इन राज्यों में करीब 130 विधानसभा सीटों और 40 लोक सभा सीटों पर जाट वोट का असर है।
आंकड़ों के मुताबिक, हरियाणा में करीब एक चौथाई आबादी जाटों की है। वहीं राजस्थान में करीब पंद्रह फीसदी जाट आबादी है। उत्तर प्रदेश में जाटों की संख्या करीब ढाई फीसदी है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का अच्छा खासा दबदबा है। इन तीन राज्यों में बीजेपी को जाट समुदाय का समर्थन मिलता रहा है।
भारतीय कुश्ती संघ की छवि पर नकारात्मक असर

दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय कुश्ती संघ की छवि पर नकारात्मक असर पड़ना शुरू हो गया है। सरकार ने अपनी इमेज ठीक करने की कोशिश की है और साथ ही में लोगों में जो गुस्सा पनप रहा था उसे शांत करने का प्रयास।
राजनीति के खेल के जानकारों का कहना है कि अब इससे भारतीय जनता पार्टी की सियासत कितनी सधेगी यह तो चुनाव और चुनाव के परिणाम बताएंगे, लेकिन खेल मंत्रालय के इस फैसले की सियासत समझनी होगी।
मालूम हो, पहलवान साक्षी मलिक ने जैसे ही कुश्ती छोड़ने की घोषणा की, सरकार का हर तरफ विरोध शुरू हो गया था। खिलाड़ियों को भी पता चल गया है कि अगर मामले को ऐसे ही छोड़ दिया गया तो बात बनेगी नहीं। तो उन्होंने भी सोशल मीडिया का सहारा ले हर बात जनता के पास रखनी शुरू कर दी है। जिस तरह जैसे ही साक्षी मलिक को पता चला कि जूनियर नेशनल नई कुश्ती फेडरेशन ने नन्दनी नगर गोंडा में करवाने का फ़ैसला लिया है तो उन्होंने ये बात एक्स पर डाल दी। सरकार को भी आनन -फानन में संघ को निलंबित लड़ने जैसे फैसले लेने पड़े।
साक्षी मलिक का एक्स पर लिखा गया नोट –
मैंने कुश्ती छोड़ दी है पर कल रात से परेशान हूँ वे जूनियर महिला पहलवान क्या करें जो मुझे फ़ोन करके बता रही हैं कि दीदी इस 28 तारीख़ से जूनियर नेशनल होने हैं और वो नयी कुश्ती फेडरेशन ने नन्दनी नगर गोंडा में करवाने का फ़ैसला लिया है।
गोंडा बृजभूषण का इलाक़ा है। अब आप सोचिए कि जूनियर महिला पहलवान किस माहौल में कुश्ती लड़ने वहाँ जाएंगी।
क्या इस देश में नंदनी नगर के अलावा कहीं पर भी नेशनल करवाने की जगह नहीं है क्या
समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ।