High Court – उन जोड़ों के लिए बड़ी राहत है जिनकी शादी पुराने समय में हुई
High Court – विवाह का पंजीकरण केवल प्रमाण का साधन, वैधता का आधार नहीं
30 अगस्त, जालंधर : इलाहाबाद High Court ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए कहा है कि शादी का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट न होने पर भी तलाक की कार्यवाही रोकी नहीं जा सकती। कोर्ट ने साफ किया कि विवाह का पंजीकरण केवल प्रमाण का साधन है, वैधता का आधार नहीं। सिर्फ इसलिए कि आपकी शादी रजिस्टर्ड नहीं है, शादी को अमान्य नहीं माना जा सकता और ना ही इस वजह से तलाक की प्रक्रिया को रोका जा सकता है।
मामला क्या था?
आजमगढ़ के सुनील दुबे और उनकी पत्नी मीनाक्षी ने 23 अक्टूबर 2024 में आपसी सहमति से तलाक के लिए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने उनसे विवाह प्रमाणपत्र मांगा, जिसे वे प्रस्तुत नहीं कर पाए।
सुनील ने दलील दी कि उनकी शादी 27 जून 2010 को हुई थी, उस समय रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं था। पत्नी भी इस तथ्य से सहमत थीं। इसके बावजूद फैमिली कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद मामला High Court पहुंचा।
High Court ने दिया स्पष्ट फ़ैसला
जस्टिस मनीष कुमार निगम की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा—
रजिस्ट्रेशन सिर्फ एक सबूत है:- कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 8(5) के अनुसार, अगर किसी हिंदू विवाह का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है, तो भी वह पूरी तरह से वैध है। रजिस्ट्रेशन सिर्फ शादी का एक सबूत है, न कि उसकी वैधता का आधार।
फैमिली कोर्ट का फैसला गलत:– High Court ने फैमिली कोर्ट के मैरिज सर्टिफिकेट पर जोर देने को अनुचित बताया। कोर्ट ने कहा कि जब कानून खुद यह कहता है कि रजिस्ट्रेशन के बिना भी शादी वैध है, तो तलाक के लिए इसे अनिवार्य बनाना गलत है।
कानून का मकसद सुविधा देना है:- कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि शादी के रजिस्ट्रेशन का मकसद लोगों को सुविधा देना है, न कि उनके रास्ते में अड़चनें डालना।
लाखों जोड़ों को राहत
High Court का यह फैसला उन जोड़ों के लिए बड़ी राहत है जिनकी शादी पुराने समय में हुई थी और जिनके पास विवाह प्रमाणपत्र नहीं है। अब फैमिली कोर्ट सिर्फ कागजी कमी के आधार पर तलाक की अर्जी खारिज नहीं कर सकेंगी।
कोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए निर्देश दिया कि सुनील और मीनाक्षी की तलाक याचिका पर शीघ्र निर्णय लिया जाए।
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