Child Food Poverty : यूनिसेफ ने जारी की रिपोर्ट, देश के 76 फीसदी बच्चे नहीं हैं तगड़े
Child Food Poverty : यह समस्या अमीर परिवारों में भी, जंक फ़ूड बना रहा दुर्बल
जालंधर। (Child Food Poverty ) आज महंगाई सहित कई कारणों के चलते पूरी दुनिया में पांच वर्ष या उससे कम आयु का हर चौथा बच्चा खाद्य निर्धनता के गंभीर स्तर का शिकार है। इसका मतलब है, दुनिया में 5 वर्ष से कम आयु के 18.1 करोड़ बच्चे पेट न भरने की समस्या से जूझ रहे हैं। हैरानी की बात है कि इन देशों में भारत भी शामिल है। ऐसा नहीं है कि गरीबों के बच्चे ही फ़ूड पावर्टी का शिकार हैं, अमीरों के बच्चे भी इस लिस्ट में हैं।
यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘चाइल्ड फूड पावर्टी: न्यूट्रिशन डेप्रिवेशन इन अर्ली चाइल्डहुड’ में सामने आई है। यह रिपोर्ट दुनिया के करीब 100 देशों के बच्चों में पौष्टिक भोजन की कमी, उसके प्रभावों और कारणों को उजागर करती है।
भारत की स्थिति ज्यादा नाजुक
भारत की बात करें तो स्थिति ज्यादा नाजुक है, जहां 76 फीसदी बच्चे इस समस्या से जूझ रहे हैं। भारत में जहां 40 फीसदी बच्चे अपने जीवन के शुरूआती सालों में गंभीर खाद्य निर्धनता से जूझ रहे हैं, वहीं 36 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो खाद्य निर्धनता के मध्यम स्तर का सामना हैं। मतलब उन्हें खाना कभी मिल जाता है कभी नहीं मिलता।
यूनिसेफ के मुताबिक, जब बच्चों को अपने जीवन के शुरू में स्वस्थ, पोषण और विविधता से भरपूर भोजन सही मात्रा में नहीं मिल पाता, तो उस स्थिति को खाद्य निर्धनता के रूप में जाना जाता है।
भारत सहित लाखों माता-पिता अपने बच्चों को पौष्टिक आहार देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके कई कारण हैं जैसे कई देश अब भी महामारी के असर से पूरी तरह नहीं उबरे हैं। दूसरे देश से टकराव, जलवायु परिवर्तन और विषम परिस्थितियों के चलते स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
खाद्य निर्धनता से जूझ रहे 9.7 करोड़ बच्चे या 54 फीसदी मामलों में यह समस्या अपेक्षाकृत अमीर परिवारों में देखी गई। जहां खराब खानपान जैसे जंक फ़ूड खाना और उससे जुड़ी आदतें एक बड़ी समस्या है।
कई देशों में पोषण तो बहुत दूर की बात है, बच्चों को भरपेट भोजन भी नहीं मिल रहा। इसकी वजह से न केवल यह बच्चे बल्कि उनके परिवार भी गरीबी और अभावों के जाल में फंस जाते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, खाद्य निर्धनता के कुल मामलों में से करीब आधे ऐसे परिवारों में दर्ज किए गए हैं जो पहले ही गरीबी से जूझ रहे हैं।
बच्चों को पोषक, सुरक्षित आहार उपलब्ध कराने के लिए बनाई खाद्य प्रणालियों की विफलता भी इसके लिए जिम्मेवार है। इसके साथ ही बच्चों के MEAL के जरूरी तौर-तरीकों पर ध्यान न रख पाना भी इस समस्या को बढ़ा रहा है।
इस रिपोर्ट में खाद्य निर्धनता को वर्गीकृत करने का जो आधार है वो खाद्य पदार्थों के सेवन पर आधारित है। उदाहरण के लिए जब बच्चे हर दिन दो बार या उससे कम बार खाना खा पाते हैं तो उसे गंभीर खाद्य निर्धनता के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
इस स्थिति में हर पांच में से चार बच्चों को केवल मां का दूध, चावल, मक्का या गेहूं जैसे स्टार्चयुक्त आहार दिए जाते हैं। इनमें से 10 फीसदी से भी कम बच्चों को फल और सब्जियां दी जाती हैं। वहीं पांच फीसदी से भी कम बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें आहार में अंडे, मछली, मुर्गी या मांस जैसे पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ खिलाए जाते हैं।
इसी तरह हर दिन 3-4 खाद्य समूहों का सेवन करने वालों को मध्यम श्रेणी में जबकि पांच या उससे अधिक खाद्य समूहों का सेवन करने वाले बच्चों के बारे में यह माना गया है कि वो खाद्य निर्धनता का सामना नहीं कर रहे हैं।
यूनीसेफ के पोषण विशेषज्ञ हैरियट टॉरलेस्सी, ने बताया कि दुनिया भर में हर चौथा बच्चा पोषण के लिहाज से बेहद खराब आहार पर निर्भर है, और वो खाद्य समूहों में से केवल दो या उससे कम का ही सेवन कर पा रहा है।
उन्होंने अफगानिस्तान का उदाहरण देते हुए कहा है कि वहां एक बच्चा पूरे दिन में कुछ ब्रेड या किस्मत अच्छी हो तो दूध का ही सेवन कर पाता है। फल और सब्जियों नहीं। पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन नहीं है। उनके मुताबिक यह बेहद परेशान कर देने वाला है, क्योंकि बच्चे इस खराब आहार पर जीवित नहीं रह सकते।
रिपोर्ट में सोमालिया का जिक्र करते हुए लिखा है कि वहां 63 फीसदी बच्चे, गंभीर खाद्य निर्धनता से जूझ रहे हैं। गाजा में जारी जंग ने भी 90 फीसदी बच्चों के लिए खाद्य निर्धनता के स्तर को बढ़ा दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक आपदाएं और संघर्ष जिस तेजी से बच्चों को खाद्य निर्धनता में धकेल रही हैं, उससे बच्चों में कुपोषण का जोखिम बढ़ रहा है। साथ ही उनके जीवन पर भी खतरा मंडराने लगा है।
यूनिसेफ ने इस बात की भी पुष्टि की है कि जिन देशों में कुपोषण की दर अधिक है, वहां बच्चों में खाद्य निर्धनता का गंभीर स्तर तीन गुना अधिक आम है।
रिपोर्ट के मुताबिक संपन्न परिवारों के बच्चे भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। जो दर्शाता है कि आय ही इसकी एक मात्रा वजह नहीं है। बच्चों में जंक फ़ूड का बढ़ता चलन भी इस समस्या को बढ़ा रहा है। इसकी वजह से बच्चे कई अहम पोषक तत्वों से भरपूर आहार से वंचित रह जाते हैं।
देखा जाए तो यह वो बच्चे हैं, जिनके पास पर्याप्त पोषण युक्त आहार उपलब्ध नहीं या फिर उनके आहार में पर्याप्त विविधता की भी कमी है। इनमें 65 फीसदी बच्चे हैं जो केवल 20 देशों में रह रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि इस समस्या का कोई हल नहीं है लेकिन कोशिश करनी पड़ेगी। बुर्किना फासो में ऐसे मामलों में 50 फीसदी की गिरावट आई है।
बता दें कि बुर्किना फासो में जहां बच्चों में व्याप्त खाद्य निर्धनता दर 2010 में 67 फीसदी थी जो 2021 में घटकर 32 फीसदी पर पहुंच गई। नेपाल में भी गंभीर खाद्य निर्धनता दर 2011 में 20 फीसदी से घटकर 2022 में आठ फीसदी पर पहुंच गई है। रवांडा ने भी कोशिश में सफलता हासिल की है।
यूनीसेफ ने अपनी रिपोर्ट में वकालत की है कि बच्चों के लिए पोषक आहार सुलभता से उपलब्ध हो सके। साथ ही गरीबी से निपटने पर भी जोर देने की बात रिपोर्ट में कही गई है।
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