धनंजय को 7 साल की सज़ा, नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल का अपहरण कराया था
जौनपुर। लोकल अदालत ने नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल का अपहरण कराने, रंगदारी मांगने, षड्यंत्र तथा गालियां और धमकी देने के मामले में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेता धनंजय राजदेव सिंह को 7 साल की सज़ा सुनाते हुए जेल भेज दिया। संतोष विक्रम को भी सजा व आर्थिक ज़ुर्माना किया गया है।
दो बार विधायक और एक बार सांसद रहे धनंजय सिंह पर हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण और हफ़्ता वसूली के 24 से ज़्यादा आपराधिक मामले दर्ज थे। जब से भारतीय जनता पार्टी ने मुंबई के उत्तर भारतीय नेता कृपाशंकर सिंह को जौनपुर लोकसभा से उम्मीदवार बनाने की घोषणा की थी, तभी से धनंजय सिंह उनकी राह में सबसे बड़ी बाधा था। अब उनकी सीधी लड़ाई बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार से होगी। अगर समाजवादी पार्टी ने किसी को उम्मीदवार बना दिया और धनंजय की तीसरी पत्नी श्रीकला रेड्डी चुनाव मैदान में उतर गई तो मुक़ाबला चतुष्कोणीय हो जाएगा और कृपाशंकर तब मज़बूत प्रत्याशी हो सकते हैं।
धनंजय सिंह लोकसभा में दूसरी बार पहुंचने के लिए कुछ भी करने पर उतारू था। COURT ने उसे सोमवार को ही दोषी क़रार दिया था और तभी पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया था। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने कहा कि धनंजय सिंह की सही जगह जेल ही है।
यहां बताना बहुत ज़रूरी है कि कुछ साल पहले जब ख़बर आने लगी कि अपराधी मुन्ना बजरंगी भी जौनपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहता है तो जुलाई 2018 में, मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह के अनुसार, धनंजय सिंह ने उसकी बागपत जेल में हत्या करवा दी।
सीमा सिंह की शिकायत की पुलिस अभी तक जांच ही कर रही है और योगी आदित्यनाथ के कड़क शासन में धनंजय पर अभी तक कोई मुक़दमा दायर नहीं हुआ था।
धनंजय सिंह का जन्म जौनपुर के सिकरारा थाना क्षेत्र के बनसफा गांव के कलकत्ता में रहने वाले राजपूत परिवार में 16 जुलाई 1975 को हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा भी उसकी कोलकाता में ही हुई। धनंजय सिंह का परिवार 1990 से पहले ही जौनपुर के बनसफा गांव वापस आ गया। उसके बाद धनंजय ने तिलक धारी (टीडी) कॉलेज में एडमिशन ले लिया। लेकिन उसी साल उसका नाम पहली बार पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हो गया।
जौनपुर के महर्षि विद्या मंदिर स्कूल के अध्यापक गोविंद उनियाल की हत्या कर दी गई और हत्यारों की सूची में धनंजय सिंह का भी नाम आया, जब वह 15 साल का था और दसवीं कक्षा का छात्र था। हालांकि पुलिस को उसके ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिला।
12वीं कक्षी की बोर्ड परीक्षा उसने हिरासत के दौरान दी। बाद में उसने लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और राजनीति विज्ञान में मास्टर की डिग्री प्राप्त की। लखनऊ प्रवास के दौरान भी धनंजय आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहा।
धनंजय सिंह ने अभय सिंह के साथ मिलकर रेलवे ठेकेदारी में हाथ आजमाना शुरू किया। उस वक्त रेलवे ठेकेदारी में पूर्वांचल के माफिया अजीत सिंह का बड़ा नाम हुआ करता था। वह नहीं चाहता था कि रेलवे ठेकेदारी में धनंजय की एंट्री हो। इसके बावजूद उसने अजीत सिंह को भी पीछे धकेल दिया। तब पूर्वांचल में माफिया और रेलवे ठेकेदारी का कारोबार ही पैसे का ज़रिया होता था। धीरे-धीरे धनंजय ने अभय के साथ मिलकर रेलवे ठेकेदारी से पैसा कमाना शुरू कर दिया। 1997 तक उसका गुट बेहद मजबूत बन गया था लेकिन इसी दौरान लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की हत्या में उसका नाम आ गया।
दरअसल, कुछ अज्ञात बाइक सवार बदमाशों ने गोपाल शरण की हत्या कर दी थी। इस हत्या के आरोप के बाद धनंजय को भूमिगत हो गया। पुलिस ने उसके ऊपर 50 हज़ार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया। तब तक उस पर कई और आपराधिक केस दर्ज हो चुके थे।
एक समय ऐसा भी आया जब अभय उस पर भारी पड़ने लगा। एक तरफ अभय रेलवे ठेकेदारी से ठाकुर गैंग जमकर उगाही कर रहा था, तो दूसरी तरफ धनंजय पुलिस से बचता फिर रहा था। ऐसे में उगाही का सारा पैसा अभय के पास आने लगा। इसी बात को लेकर कुछ समय बाद दोनों में तकरार शुरू हो गई। दोस्ती पैसे के बंटवारे को लेकर दुश्मनी में बदल गई।
गोपाल शरण की हत्या के आरोप के बाद धनंजय सिंह पुलिस से बचता फिर रहा था। इसी दौरान पुलिस को सूचना मिली कि उसका गिरोह जौनपुर-मिर्जापुर रोड पर भदौही और औराई के बीच मोरवा नदीं के पास स्थित एक पेट्रोल पंप को लूटने वाला है। पुलिस के अनुसार उसकी पूरी टीम घटनास्थल पर पहुंच गई। दोनों तरफ से कई राउंड गोलियां चली और एनकाउंटर में चार अपराधी मारे गए। ख़बर आई कि धनंजय भी मुठभेड़ में मार दिया गया। पुलिस ने हत्या, हत्या की कोशिश, लूटपाट, किडनैपिंग, मारपीट जैसे दर्जनों मामलों में वांछित धनंजय की फाइल बंद कर दी।
इस घटना को चार महीने बीते थे कि किसी ने धनंजय सिंह को ज़िंदा देख लिया। बाद में उसने खुद पुलिस के सामने आत्मसमर्पण पर दिया। उसको ज़िंदा देखकर उत्तर प्रदेश पुलिस के होश उड़ गए। दरअसल, वह पूरा एनकाउंटर ही फर्जी था। पुलिस वालों ने आपसी खुन्नस निकालने के लिए निर्दोष लोगों को पकड़कर गोली मार दी थी।
झूठे दावे करने के लिए 34 पुलिस अधिकारियों पर मामले दर्ज किए गए। कई सस्पेंड हुए और उन पर लंबे समय तक केस भी चला। बहरहाल, एनकाउंटर एपिसोड के बाद धनंजय सिंह दबदबा और बढ़ गया। वह इलेक्शन मैटेरियल बन गया।
2002 में वह रारी से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरा और विधायक बन गया।
वर्ष 2007 में धनंजय ने फिर से एक बार रारी से ही विधान सभा चुनाव जीत लिया। इस बार वह निषाद पार्टी से विधायक बना था लेकिन उसकी नज़र दिल्ली की लोकसभा पर थी।
उसने इसी दौरान बीएसपी का दामन थाम लिया और 2009 लोकसभा चुनाव के लिए जौनपुर से पर्चा भरा। मायावती की लोकप्रियता के चलते उसने यहां भी जीत का परचम लहरा दिया। वह सांसद बन गया लेकिन दो साल बाद 2011 में मायावती से खटपट के बाद उसे बीएसपी से निकाल दिया गया। इसके बाद 2014 और 2019 में धनंजय सिंह ने चुनावे लड़ा लेकिन फिर उसे जीत हासिल नहीं हुई।
उसकी तीनों शादियां भी हमेशा ही खबरों में रहीं। उसकी पहली शादी 12 दिसंबर 2006 को मीनू सिंह से हुई। लेकिन शादी के सिर्फ़ 9 महीने बाद सितंबर 2007 में मीनू की लखनऊ के घर में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। कहा जाता है कि मीनू ने आत्महत्या कर ली थी।
धनंजय सिंह ने दो साल बाद वर्ष साल 2009 में जागृति सिंह से शादी कर ली। डेंटिस्ट डॉ. जागृति सिंह मूलतः गोरखपुर की थी। उसके पिता उमा शंकर सिंह परियोजना निदेशक के पद पर कार्यरत थे। वह ज्यादातर समय नोएडा में रहती थी। वहीं एक निजी अस्पताल में प्रैक्टिस करती थी। उसका जौनपुर जाना बहुत कम होता है। जागृति ने 2012 में मल्हनी विधान (रारी विधान सभा) से चुनाव भी लड़ा था लेकिन वह समाजवादी पार्टी के पारसनाथ यादव से हार गईं। 2013 में जागृति सिंह पर दिल्ली में घरेलू नौकरों से मारपीट और नौकरानी की पीट-पीटकर हत्या करने का आरोप लगा था। इस केस में सबूत मिटाने के आरोप में धनंजय की भी गिरफ्तारी हुई थी। बाद में जागृति और धनंजय के रिश्ते में खटास आ गई। दोनों ने तलाक ले लिया। दोनों का एक बेटा भी है, जो दिल्ली में रहता है।
वर्ष 2017 में फिर धनंजय सिंह ने शादी की। हैदराबाद की हाइप्रोफाइल बिजनेस फैमिली से ताल्लुक रखने वाली श्रीकला रेड्डी उसकी तीसरी पत्नी हैं। अभी कुछ साल पहले ही श्रीकला रेड्डी ने जौनपुर से पंचायत चुनाव में अपना नाम दाखिल करवाया था जिसमें उसने जीत भी हासिल की। बेहद महंगी और लग्जरी कारों का शौकीन धनंजय को बेहद अमीर नेताओं की श्रेणी में शुमार माना जाता है। कई बड़ी कारों के अलावा, फार्म हाउस, प्लॉट और मकान उसके नाम हैं।
धनजंय सिंह से जुड़ा एक और विवाद काफी सुर्खियों में रहा था। कई अपराधिक मामलों में लिप्त होने के बावजूद धनंजय सिंह लंबे समय Y श्रेणी की सुरक्षा लिए हुए, उनके साथ हमेशा चार गनर मौजूद रहते थे। इस मामले में उनके खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर हुई और हाईकोर्ट ने इस मामले में कड़ी टिप्पणी की थी, जिसके बाद 2018 में प्रदेश पुलिस ने धनंजय सिंह को मिली ‘वाई-सेक्योरिटी’ हटा ली।
बहरहाल, अदालत द्वारा 7 साल की सज़ा पाने के बाद धनंजय का राजनैतिक भविष्य अंधकार में है।